विदेश की धरती पर लाल बहादुर शास्त्री रहस्यमय मृत्यु आज तक रहस्य ही बनी हुई है। यह स्वतंत्र भारत के राजनीतिक माथे पर लगा हुआ एक अफसोसनाक दाग है, जिसे शायद ही कभी पूरी तरह से मिटाया जा सके। लेकिन उस दाग के मूल कारणों को जान लेना भी इसलिए जरूरी है, ताकि भविष्य में इतिहास दोहराया न जा सके। नई पीढ़ियाँ उसे समझेंगी तभी सतर्क होंगी और तभी इस प्रकार के संजालों के प्रति सावधान रहते हुए उसके समाधान की दिशा में प्रयासरत होंगी। शास्त्रीजी का प्रधानमंत्री होना भारतीय राजनीति का एक 'टर्निंग पॉइंट' था, जो मात्र अठारह महीनों का था, लेकिन एक मील का पत्थर तो गाड़ ही गया कि राष्ट्र को आत्म गौरव और शक्तिसंपन्न बनाने के लिए वही एक रास्ता है, जो इस 'टर्निंग पॉइंट' का संकेतक कहता है।


तो स्वाधीनता के कुछ वर्षों पहले से ही कांग्रेस की नीतियों का यह मूर्खतापूर्ण लचीलापन सभी को समझ में आने लगा था, जो स्वाधीन होने के बाद बिल्कुल मुखर हो उठा था । विदेशी ताकतें भी नहीं चाहती थीं कि भारत स्वतंत्र होकर भी भारत के हाथों में रहे। राजनीतिक दृष्टि से भारत भले ही सत्ता सँभाले, पर उसकी निर्भरता विदेशों पर बनी रहे। इसलिए कांग्रेस की ही एक लॉबी यह नहीं चाहती थी कि लाल बहादुर शास्त्री जैसा देसी नेता प्रधानमंत्री बने ।


- इसी उपन्यास से

ताशकंद में शास्त्रीजी की असामयिक रहस्यमय मृत्यु के तार अभी तक उलझे हुए हैं। इस औपन्यासिक कृति में उन घटनाओं, प्रकरणों और कुचक्रों पर प्रकाश डाला गया है, जिन्होंने शास्त्रीजी की 'हत्या' का षड्यंत्र रचा। भारतीय राजनीतिक इतिहास के एक काले अध्याय पर अंतर्दृष्टि डालती पठनीय कृति ।




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About the Author

नीरजा माधव

15 मार्च 1962 को जौनपुर जिले के कोतवालपुर गाँव में जन्म। अब तक 45 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें देनपा  तिब्बत की डायरी गेशे जंपा यमदीप भारत विभाजन का दंश (तेभ्यः स्वधा) अनुपमेय शंकर Corona रात्रि कालीन संसद जैसे बहुचर्चित उपन्यासों के अतिरिक्त छह कहानी- संग्रह तीन ललित निबंध-संग्रह चार कविता- संग्रह व पंद्रह वैचारिक पुस्तकें हैं।

तिब्बती शरणार्थियों और थर्ड जेंडर जैसे अछूते विषय पर भारत में पहली बार लेखनी चलाने तथा विश्वशांति की दिशा में विशेष योगदान देने के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा 'नारी शक्ति पुरस्कार - 2021 से सम्मानित । श्रीबड़ा बाजार कुमारसभा पुस्तकालय कोलकाता द्वारा प्रतिष्ठित डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्य महोपाध्याय' की मानद उपाधि । सन् 2018 में उन्हें व्याख्यान देने हेतु कनाडा आमंत्रित किया गया जहाँ उनके मौलिक लेखन के लिए लेजिस्लेटिव असेंबली ऑफ अल्बर्टा ने भी सम्मानित किया।

विभिन्न विश्वविद्यालयों में उपन्यास और कहानियाँ पाठ्यक्रमों में सम्मिलित ।