UPSC मे सबसे बड़ा डर किस चीज का लगता है


यूपीएससी, यानि भारत की सबसे मुश्किल परीक्षा। मुश्किल इसलिए क्योंकि इसमे अपियर होने वाले हर दस हज़ार स्टूडेंट्स में से Selection सिर्फ एक ही होगा। और बाकी के नौ हज़ार नौ सौ निन्यानबे लोगों का क्या? उनके लिए तो उनके सपने एक झटके में चकनाचूर हो जाते है और हाथ आती है निराशा, हताशा और एक ऐसी अंधेरी गली जिसमे आगे का रास्ता दिखता ही नहीं। उन्हें तो समझ ही नहीं आता की अब क्या करें? और शायद यही एक सवाल है जो किसी भी Aspirant को सबसे ज्यादा परेशान करता है।

रजत ने अपनी दसवीं की परीक्षा सिर्फ 15 साल की उम्र में पास कर ली और वह भी अपने स्कूल में टॉप कर के, इसके बाद बरहवीं और फिर कॉलेज, रजत ने हर जगह अपनी मेहनत से कामयाबी के झंडे गाड़ दिये। 21 की उम्र तक आते आते रजत को ये लगने लगा कि उसे यूपीएससी की तैयारी करनी चाहिए और अब उसने इसके लिए अपना पूरा समय Dedicate करना शुरू कर दिया। और यहाँ से शुरू हुआ वो सिलसिला जिसका अंत कहाँ होने वाला था यह कोई नहीं जनता था। पहले अटैम्प्ट में रजत को पीटी में सफलता मिल गयी लेकिन मेंस में वह बाहर हो गया। उसने सोचा कि इस बार और मेहनत करेगा और आईएएस बन कर ही रहेगा। उसने दोगुने जोश के साथ तैयारी शुरू कर दी। एक साल बाद परीक्षा दी फिर से पीटी Qualify किया, मेंस भी किया लेकिन Interview में बाहर हो गया। कोई बात नहीं एक कोशिश और सही। मगर इस बार तो पीटी में ही रजत बाहर हो गया। फिर एक और Attempt और एक और असफलता। अटैम्प्ट और असफलता का यह दौर चलता रहा और रजत भी किसी पागल की तरह एक जिद में इसमे लगा रहा। उसने बहुत तरह से खुद को तैयार किया मगर हर बार रिज़ल्ट सेम ही रहता। ऐसा करते करते कब 21 साल को वो जोशीला, नौजवान अपने जीवन के आठ साल गंवा चुका था, उसे पता ही नहीं चला। जब तक उसे अहसास हुआ कि वो आठ सालों से एक ही जगह पर है जबकि उसके सभी यार दोस्त जीवन में कितना आगे बढ़ गए तब तक उसके लिए शायद कई दरवाजे बंद हो चुके थे। अब अपने छह अटैम्प्ट के बाद उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि आगे वो क्या करे।

उसने अपने जीवन के बहुमूल्य साल उस चीज के लिए गंवा दिये जो शायद उसके लिए थी ही नहीं। और येकहानी किसी एक रजत की नहीं है। आप दिल्ल के ओल्ड राजेंद्र नगर, मुखर्जी नगर जैसे इलाकों में घूम लीजिये आपको ऐसे अनेक रजत मिल जाएंगे जो यूपीएससी की तैयारी के लिए अपना जीवन खपा रहे हैं और इतना नहीं हर साल ऐसे हजारो और रजत उस भीड़ में आकार शामिल भी हो रहे हैं।

लेकिन सवाल यहाँ ये उठता है कि क्या ये सही है? माँ बाप कितने अरमान से बच्चों को पढ़ाते हैं कि एक समय के बाद वो अपने पैरों पर खड़ा होगा और समाज और देश की उन्नति में अपना योगदान देगा लेकिन यदि आप यूपीएससी के इस भंवर में फसे तो शायद इसे निकलते निकलते आप वहाँ पहुँच जाएँ जहां आपके लिए बहुत ज्यादा स्कोप न बचा रह जाए। और कई साल गंवा देने के बाद आपके सामने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा होग – अब आगे क्या?

रजत अकेले नहीं है जो इस सवाल का सामना कर रहे हैं. भारत के कई सैकड़ों-हजारों नौजवान यूपीएससी के लिए आगे बढ़ते हैं और सफल नहीं हो पाते. उनके जोश, मेहनत से की गई तैयारी पर तो व्यापक रूप से बात की जाती है लेकिन नकारात्मक परिणाम आने के बाद जो कुछ वो झेलते हैं उस पर कोई बात नहीं करता. एकांत, शर्म और सम्मान की लड़ाई. इन सभी को साथ लिए वे आगे की लड़ाई लड़ते हैं.

ऐसे एस्पिरेंट्स अभी अपने बर्बाद हुए सालों को देखते हैं. साल जो उनके जीवन का सबसे अच्छा समय हो सकते थे, उन्होंने खो दिए. कुछ इस सफर में अपने दोस्त, अपना प्यार तक खो बैठे. फिर अपने पैरों पर खड़े होकर जिंदगी को पटरी में लाने में उन्हें समय लगा

ऐसे एस्पिरेंट्स अभी अपने बर्बाद हुए सालों को देखते हैं. साल जो उनके जीवन का सबसे अच्छा समय हो सकते थे, उन्होंने खो दिए. कुछ इस सफर में अपने दोस्त, अपना प्यार तक खो बैठे. फिर अपने पैरों पर खड़े होकर जिंदगी को पटरी में लाने में उन्हें समय लगा