भारत के इन 5 गांव से निकलते हैं सबसे ज्यादा IAS 


महात्मा गांधी अक्सर कहा करते थे कि असली भारत तो गांवों में बसता है। उनका मानना था कि यदि भारत को सही ढंग से समझना है तो गांवों की यात्रा करनी चाहिए। गांवों के प्रति उनके ये विचार यूं ही नहीं बने थे। वे जानते थे कि भारत की उन्नति तभी हो सकती है जब गाँव के लोग आगे आ कर इसमे अपनी भूमिका निभाएँ। अब बाकियों का तो पता नहीं लेकिन यूपीएससी में जरूर गांधीजी के ये विहार दिखाई पड़ते हैं। तभी तो हर साल सफल होने वाले अधिकांश लोग ग्रामीण परिदृश्य से आते हैं। लेकिन एक चौंकने वाली बात ये भी है भारत में कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहां कि अधिकांश आबादी आईएएस या आईपीएस है। आज के Blog में मैं आपको ऐसे ही गांवों के बारे में बताऊँगी। तो आइए शुरू करते हैं।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटा सा गाँव है – माधोपट्टी। इस गाँव को आईएएस का गाँव भी कहा जाता है। इस गाँव में कुल 75 परिवार ही रहते हैं और उनमे से 47 परिवार ऐसे हैं जिनमे से कोई न कोई आईएएस या आईपीएस है। और तो और इस गाँव में एक परिवार ऐसा भी है जहां से पाँच लोग आईएएस या आईपीएस बने हैं। इस परिवार से साल 1964 में दो लोगों ने यूपीएससी Crack किया था उसके बाद 1968 और 1995 में अभी हाल ही में 2022 में इस परिवार का एक सदस्य आईएएस बना है।

अब उत्तर प्रदेश से निकल कर आइए चलते हैं बिहार। बिहार में एक जिला है सहरसा जिसमे बसा है एक छोटा सा गाँव बनगांव। वैसे तो यह गाँव भारत के नक्शे पर आपको बहुत ढूँढने पर मिल पाएगा लेकिन यह बड़े-बड़े ऑफिसर, इंजीनियर के साथ-साथ पुलिस के भी बड़े-बड़े अधिकारी का गांव है। जब भी यूपीएससी का रिजल्ट आता है, तो लोग पूछने लगते हैं कि इस बार बनगांव से कोई पास किया है की नहीं। गाँव वालों का मानना है कि इस गाँव पर माँ सरस्वती की असीम कृपा है तभी तो यहाँ पर आज़ादी से पहले से सिविल सेवक नियुक्त किए जाते रहे हैं। इस गांव में कई परिवार ऐसे भी हैं, जहां आजादी के बाद से एक-दो नहीं बल्कि तीन-चार लोग प्रशासनिक सेवा में बहाल हुए. यही वजह है कि सहरसा ही नहीं, पूरे कोसी क्षेत्र में इस गांव की चर्चा होती है. विश्व बैंक में वाटर ग्लोबल प्रैक्टिस के डायरेक्टर सरोज कुमार भी बनगांव के ही हैं।

इस लिस्ट में अगला गाँव भी बिहार से ही है। बिहार के शिवहर जिले के कमरौली गांव की खास पहचान है। 90 फीसद साक्षरता दर के साथ ही गांव से कई आइएएस अधिकारी निकले हैं। जिला मुख्यालय से महज चार किलोमीटर पूरब स्थित कमरौली पर विद्या की देवी सरस्वती की विशेष कृपा है। यहां के सियाराम प्रसाद सिन्हा उर्फ सीताराम प्रसाद को प्रथम आइएएस अधिकारी बनने का सौभाग्य मिला। इसके बाद किसान के पुत्र लक्ष्मेश्वर प्रसाद को सफलता मिली। वे भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। इसके अलावा कई लोग वैज्ञानिक, डॉक्टर और बैंक में अधिकारी बन भी नाम रोशन कर रहे हैं।  जिसके चलते इसका नाम ही 'कलेक्टरों का गांव' पड़ गया है। इनसे प्रेरणा लेकर भावी पीढ़ी भी आगे बढ़ रही है।

अब पूर्वी भारत से चल कर आते हैं भारत के पश्चिमी इलाके में। पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के गांव बामनवास को आईएएस, आईपीएस अधिकारियों का गांव कहा जाता है. यहां से अब तक 150 से भी ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी बने हैं. इनमें से एक परिवार तो ऐसा है जिसमें दो भाई पुलिस महानिदेशक बने, एक भाई राज्य का मुख्य सचिव भी बना, इसी परिवार का एक भाई कस्टम अधिकारी के रूप में मुंबई में भी तैनात है। इस गांव के लोग बड़े ही गर्व से कहते हैं कि हमारा गांव देश में सबसे अधिक प्रशासनिक अधिकारी देने वाला गांव है।

अब बात करते हैं चित्रकूट के रैपुरा गाँव की। इसकी कहानी भी बहुत Interesting है। यह गांव कभी डकैतों के लिए मशहूर था, लेकिन अब इसकी पहचान आईएएस और आईपीएस हैं. दरअसल गांव के लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक लोग इस समय आईएएस, आईपीएस, पीसीएस जैसी विभिन्न सेवाओं में उच्चाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. खास बात यह है कि रैपुरा गांव में हर घर में कोई न कोई सरकारी कर्मचारी-अधिकारी है।

अंत में यही कहना है कि यूपीएससी की तैयारी में गाँव- शहर से कोई फर्क नहीं होता और जो चीज मायाने रखती है वो है आपका समर्पण और आपकी मेहनत। तो आज से आप भी अपने मन में ठान लीजिये कि आपको यूपीएससी Qualify करना ही है ताकि आप भी अपने गाँव का नाम रोशन कर सकें।