IAS Topper को UPSC में 50 % अंक ही क्यों मिलते हैं


दोस्तों, यूपीएससी एक मुश्किल परीक्षा है, यह तो आप सबको पता ही है और इस परीक्षा में पास करने वाले लोग जितने कम मार्क्स स्कोर कर पाते हैं उसकी वजह से यह आम लोगों को और भी मुश्किल लगती है। और इसीलिए आज का यह विडियो बेहद खास होने वाला है। आप लोगों ने कई बार हमें Comments में यह पूछा है कि आखिर क्या कारण है कि यूपीएससी में Toppers भी मुश्किल से पचास परसेंट मार्क्स ही स्कोर कर पाते हैं? और एक और सवाल जो आप लोगों ने कई बार पूछा है कि यूपीएससी मेंस में मर्किंग कैसे की जाती है? तो मैंने सोचा कि आपके इन दोनों सवालों का जवाब एक साथ ही दे दिया जाए ताकि आपको भी यूपीएससी मेंस के इवैल्यूएशन और स्कोरिंग के सारे Fundamentals क्लियर हो जाएँ।

दोस्तों, यूपीएससी में जिसने टॉप किया वो भी 50 प्रतिशत से ज्यादा मार्क्स स्कोर नहीं कर पाया। यह एक ऐसा सच है जो यूपीएससी के साथ आज से नहीं बल्कि कई दशकों से जुड़ा हुआ है। और इसी के कारण लोगों के मन में यह बात बैठ गयी है कि यूपीएससी एक बेहद मुश्किल परीक्षा है। अब जहां स्कूल और कॉलेज में 80 – 90 प्रतिशत मार्क्स आसानी से स्कोर किए जा साकते हैं, तो 50 प्रतिशत में टॉप करने वाली परीक्षा तो मुश्किल लगेगी ही। मगर स्कूल – कॉलेज और यूपीएससी की परीक्षा में एक फर्क यह है कि कॉलेज की परीक्षा में Competition Elimination का नहीं होता है और जो भी परीक्षा एलिमिनेशन पर आधारित होगी, उसमे मार्क्स स्कोर करना हमेशा ही मुश्किल होता है। तो यह कम स्कोरिंग वाली बात सिर्फ यूपीएससी ही नहीं बल्कि हर Competitive एग्जाम पर लागू होती है।

एक और बात जो लोगों के मन में आती है कि यदि टॉप करने वाले के सिर्फ 50 प्रतिशत अंक आते हैं तो इसका मतलब यह है कि यदि कोई आधे सिलैबस की अच्छी तरह तैयारी कर ले तो भी वह इस परीक्षा को पास कर सकता है। लेकिन यह भी सच नहीं है क्योंकि जो लोग इस परीक्षा में टॉप करते हैं वे पूरे सिलैबस की अच्छी तरह तैयारी करने के बाद 50 प्रतिशत अंक ही स्कोर कर पाते हैं तो यदि आप आधे सिलैबस की ही तैयारी करेंगे तो आप पास करना तो छोड़िए, इस परीक्षा में कहीं टिक भी नहीं पाएंगे।

तो अब सवाल यही रह जाता है कि आखिर इस परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक स्कोर करना भी इतना मुश्किल क्यों होता है? और यह जानने से पहले यह समझ लेते हैं कि यूपीएससी की copies की मर्किंग किन आधारों पर की जाती हैं।

जब मेंस के एग्जाम हो जाते हैं तो आपकी आन्सर शीट इवैल्यूएशन Centers पर पहुंचाई जाती हैं। इवैल्यूएशन के दिन पहले से ही निर्धारित होते हैं और तय दिन पर सभी Evaluators सेंटर पर आ जाते हैं। यहाँ कॉपी की चेकिंग शुरू करने से पहले Head Examiner के साथ उनकी एक मीटिंग होती है जिसमे उन्हें Marking Standards के बारे में समझाया जाता है कि किस क्वेस्चन में किन Facts और Figures को तलाश करना है और किस पॉइंट के कितने अंक दिये जा सकते हैं। इसके अलावा उन्हें इस बात के भी Instructions दिये जाते हैं कि आन्सर की Presentation के कितने मार्क्स दिये जाने चाहिए। जैसे आपका आन्सर यदि Paragraphs में है तो आपको कितने मार्क्स मिलने चाहिए, या बुलेट्स के लिए क्या स्कीम होनी चाहिए Etc .

अब जब कॉपी की चेकिंग शुरू होती है तो Evaluators इन्हीं Set Standrads का पालन करते हैं। और इसी के आधार पर मर्किंग करते हैं। जैसे मान लीजिए कि अपने किसी क्वेस्चन के आन्सर में कई Data प्रिसेंट कर दिये, और कई Facts भी Present कर दिये तो इसका मतलब यह नहीं हो गया कि आपको इसके पूरे नंबर मिल जाएंगे। Examiner आपकी आन्सर में यह देखेगा कि जो Obvious Facts हैं अपने उनको कैसे लिखा है और जो Facts ऐसे हैं जिन्हें शायद कम ही लोग जानते हों अपने उनको Mention किया है या नहीं? इन सब के आधार पर यदि आपका आन्सर उसे बहुत पसंद आया तो हो सकता है कि वो आपको 20 में से 15 या 16 मार्क्स दे दे। और चूंकि हर सवाल के जवाब में आप बिलकुल पर्फेक्ट आन्सर नहीं लिख सकते हैं इसलिए आपको हर जवाब के लिए 15 अंक नहीं मिलेंगे और किसी आन्सर के लिए हो सकता है आपको 20 में सिर्फ 6 या 7 अंक ही मिले। ऐसा करते करते आपका Average स्कोर हर जवाब के लिए 10 – 11 अंक तक आ जाता है। और आपका फ़ाइनल स्कोर 50 परसेंट तक सीमित रह जाता है। और हाँ यह Example मैंने आपको Toppers के कसे की दी है, जो लोग 50 या उससे नीचे  Rank लाते हैं, उनके लिए Average स्कोर और भी कम हो जाता है।