कितनी कम हुई भारत में बेरोजगारी


बेरोजगारी हमारे देश की एक बहुत ही जटिल और स्थायी समस्या है। स्थायी इसलिए क्योंकि यह समस्या शायद आज की नहीं बल्कि कई दशकों पुरानी है और जटिल इसलिए क्योंकि इस समस्या का समाधान कैसे होगा यह कोई भी नहीं बता पा रहा। आज़ादी के बाद से आज तक, इन 75 सालों में कई सरकारें आई और चली गयी लेकिन बेरोजगारी आज भी युवाओं के बीच सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। हालांकि अभी कुछ दिनों पहले सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमे बेरोजगारी से संबन्धित कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आए हैं लेकिन क्या यह समस्या अपने समाधान की ओर बढ़ रही है? आइए जानते हैं आज के Blog में।


भारत सरकार की सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने हाल ही में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) जारी की है। इस सर्वेक्षण की शुरुआत 2017 – 18 में की गयी थी। पीएलएफएस के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं:

1. वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना। 

2. प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की ओर से जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2022-2023 के अनुसार जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए सामान्य स्थिति में बेरोजगारी दर (UR) 2021-22 में 4.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.2 प्रतिशत हो गई। सामान्य स्थिति का मतलब है कि रोजगार, (किसी व्यक्ति की स्थिति) सर्वेक्षण की तारीख से पहले के 365 दिन के आधार पर निर्धारित किया गया है।

सर्वे के मुताबिक, 15 साल और उससे ज्यादा की उम्र के युवाओं में बेरोजगारी दर घटा है. इसमें सबसे कम बेरोजगारी दर चंडीगढ़ में यानी कि 5.6 प्रतिशत है. इसके अलावा अंडमान एंड निकोबार में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा यानी कि 33% है. वहीं, लद्दाख में 26.5 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 24 प्रतिशत है. यह डाटा जुलाई 2022 से जून 2023 तक किए गए सर्वे पर आधारित है. 2022-23 की अवधि के दौरान 5.7 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ दिल्ली दूसरे स्थान पर है. बड़े राज्यों में, राजस्थान में 23.1 प्रतिशत की महत्वपूर्ण बेरोजगारी दर दर्ज की गई, जबकि ओडिशा में 21.9 प्रतिशत की दर देखी गई है।

भारत में बेरोज़गारी दर का अनुमान सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) लगाता है. सीएमआईई के मुताबिक, भारत में बेरोज़गारी दर 7.95% है. शहरी भारत में यह 7.93% और ग्रामीण भारत में 7.44% है.

भारत में बेरोज़गारी दर 2018 से 2023 तक औसतन 8.15% रही. अप्रैल 2020 में यह दर 23.50% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी. वहीं, सितंबर 2022 में यह दर 6.40% के रिकॉर्ड निचले स्तर पर रही.

सीएमआईई के मुताबिक, पुरुषों में बेरोज़गारी दर 2017-18 में 6.1% से घटकर 2022-23 में 3.3% हो गई. वहीं, महिलाओं में बेरोज़गारी दर 5.6% से घटकर 2.9% रही.

ग्रेजुएट्स के बीच बेरोज़गारी दर 2022-23 में 13.4% रही. इससे पिछले साल यह दर 14.9% थी.

बेरोजगारी के प्रकार –


प्रच्छन्न बेरोज़गारी - जिसमें आवश्यकता से अधिक कार्यरत लोग, जो मुख्य रूप से कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

मौसमी बेरोज़गारी - यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी - यह उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच बेमेल से उत्पन्न होती है।

चक्रीय बेरोज़गारी - यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।

तकनीकी बेरोज़गारी - यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।

संघर्षात्मक बेरोज़गारी - संघर्षात्मक बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।

सुभेद्य रोज़गार - इसका तात्पर्य है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से कार्य कर रहे हैं तथा इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।

भारत में बेरोज़गारी के कारण


जनसंख्या वृद्धि: श्रम की आपूर्ति, उपलब्ध रोजगार के अवसरों से अधिक है, जिससे बेरोज़गारी दर में वृद्धि होती है

कौशल विकास का अभाव:प्राय: कार्यबल के पास मौजूद कौशल और उद्योगों द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच एक असंतुलन होता है, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से युवाओं में उच्च बेरोज़गारी दर होती है।

धीमा औद्योगिक विकास: उद्योगों में सीमित निवेश से नौकरी के अवसर कम हो सकते हैं, जिससे वर्तमान स्थिति और खराब हो सकती है।

कृषि पर निर्भरता: कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, अन्य क्षेत्रों में सीमित विविधीकरण भी उच्च बेरोज़गारी दर में योगदान करती है।

तकनीकी प्रगति: जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी ने शारीरिक श्रम का स्थान ले लिया है, तो कुछ नौकरियाँ अप्रचलित हो गई हैं, जिससे श्रमिक बेरोज़गार हो गए हैं।

आर्थिक असमानताएँ: कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त बुनियादी ढाँचे, उद्योगों और रोजगार के अवसरों का अभाव है, जिसके कारण उन क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर अधिक है।

अपर्याप्त शिक्षा प्रणाली: भारत में शिक्षा प्रणाली प्राय: व्यावहारिक कौशल और नौकरी-उन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए संघर्ष करती है, जिससे शिक्षा और रोजगार के बीच अंतर उत्पन्न होता है।

असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में रोजगार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जिसमें रोजगार सुरक्षा, सामाजिक-सुरक्षा लाभ और स्थिर आय का अभाव है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अनिश्चित रोजगार संभावनाओं का सामना करना पड़ता है, जो समग्र बेरोज़गारी को बढावा देती है।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बेरोज़गारी के कारण बहुआयामी हैं, और इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है जिससे शिक्षा और कौशल विकास को बढावा मिले, औद्योगिक विकास और निवेश को प्रोत्साहन मिले और इसके साथ ही रोजगार सृजन के लिए एक सक्षम वातावरण विकसित हो।