हिंदी मीडियम वालों की सबसे बड़ी दिक्कत


यदि मैं आपसे पूछूँ कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा क्या तो आप टपक से जवाब देंगे – हिन्दी। हो सकता है कि आप यह भी कहें कि राष्ट्रभाषा तो नहीं लेकिन केंद्र सरकार के कार्यकलापों से संदर्भ में कहा जाए तो हिन्दी हमारे देश की आधिकारिक राजकीय भाषा है। लेकिन जब हम देश की सबसे बड़ी नियुक्ति परीक्षा के बारे पढ़ते हैं तो पता चलता है कि वास्तविकता तो बिलकुल अलग है। साल दर साल जब आप यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों को देखते हैं तो आपको लगेगा कि शायद गलती से ही हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया गया है वरना क्या कारण है कि एक हिन्दी माध्यम का Aspirant सवालों से ज्यादा अपने माध्यम को लेकर चिंतित रहता है।


अनुवाद की समस्या - क्या सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट का हिंदी में मतलब असहयोग आंदोलन होता है? या आपने किसी हिंदी की किताबों में जनसंख्या की जगह समष्टि या प्लास्टिक की जगह सुघट्य जैसे कठिन और अव्यावहारिक हिंदी शब्द लिखा देखा है? अगर ऐसा नहीं देखा है तो शायद आपने हाल के सालों में देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा माने जाने वाले सिविल सर्विस परीक्षा का पेपर नहीं देखा होगा। यहां हिंदी में ऐसे ही शब्द दिखने को मिलेंगे। पिछले कुछ सालों मे कई मौके पर बेहद लापरवाह अंदाज और हिंदी की उपेक्षा करते हुए गूगल ट्रांसलेट के माध्यम से हिंदी में क्वेश्चन पेपर बन दिए गए हैं।


एक साधारण से परिवार में जन्‍म लेने वाला और सरकारी स्‍कूल-कॉलेज में पढ़ाई करने वाला बच्‍चा आखिर इतने कठिनतम अनुवाद को भला कैसे समझ सकता है? क्‍या इस पर बात नहीं होनी चाहिए? जिस बच्‍चे ने इतनी जटिल हिन्‍दी अपने शिक्षा के करियर में कभी पढ़ी ही ना हो या उसे पढ़ाई ही ना गई हो, तो भला वह यूपीएससी की परीक्षा में इतने जटिल शब्‍दों को कैसे समझ सकता है?

इस उपेक्षा के साइड इफेक्ट भी इस परीक्षा के अंतिम परिणाम पर देखे गए। एक तरफ जहां हिंदी को लेकर पूरा जोर दिया जा रहा है उधर पिछले दस सालों में यूनियन सिविल सर्विस कमीशन की ओर से आयोजित सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी माध्यम से सफल होने वाले स्टूडेंट की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है।


सिविल सर्विस परीक्षा के आंकड़े भी हिंदी के कमजोर होते ट्रेंड की बात को साबित करती है। साल 2000 में यूपीएससी की सिविल सर्विस पास करने वाले टॉप 10 स्टूडेंट में छठवें और सातवें स्थान पर हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी रहे। अगले कुछ सालों तक यह ट्रेंड रहा। लेकिन 2017 में हिंदी माध्यम से टॉपर का पूरे परिणाम में 146 वां 2018 में 337,2019 में 317,2020 में 246 वां रैंक रहा। जो हिंदी के गुम होते आंकड़े बताते हैं।


हिंदी में स्टूडेंट की कमी का दौर 2010 के बाद तेजी से शुरू हुआ। उस साल एक बार फिर परीक्षा में रिफॉर्म के नाम पर कुछ साल पहले सिविल सर्विस परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में सीसैट पेपर को लेकर छात्रों का उग्र आंदोलन हुआ था। इसमें आरोप लगा था कि हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं के स्टूडेंट को बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। परिणाम में इस आरोप के संकेत मिलते थे। क्षेत्रीय और हिंदी भाषी स्टूडेंट इस पेपर को हटाने की मांग पर दो साल तक आंदोलन करते रहे। संसद तक में यह मामला जोरदार तरीके से उठा था। सरकार लंबे समय तक इस मुद्दे पर उलझन की स्थिति में रही।


सरकार को अंतत: स्टूडेंट की मांगों के सामने झुकना पड़ा। लेकिन तब भी इसका असर नहीं हुआ। हिंदी के तेजी से कम होते रसूख का आंकड़ा यह है कि 2015 में हिंदी मीडियम से मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 2439 थी, जो 2019 में घटकर 571 और 2020 में 486 रह गई।


IAS एग्जाम की तैयारी करने वाले हिंदी मीडियम बैकग्राउंड के ज्यादातर छात्रों को उस लेवल की कोचिंग या ट्रेनिंग फैसिलिटी नहीं मिल पाती है, जो अंग्रेजी मीडियम से तैयारी करने वाले कैंडिडेट्स के पास होती है। हिंदी मीडियम के जो छात्र आईएएस की तैयारी करते हैं, उनमें गांव-देहात से आने वाले भी बड़ी संख्या में होते हैं और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति भी एक कारण होती है। बड़े-बड़े कोचिंग में उनके लिए भारी-भरकम फीस देना मुश्किल होता है। दूसरा दिल्ली जैसे शहर में सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का ही बोलबाला है, हालांकि अब यह स्थिति बदलने की पूरी संभावना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं में पढ़ाई को महत्व दिया जा रहा है। साथ ही गृह मंत्रालय भी सरकारी कामकाज में हिंदी को प्रमोट कर रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में इन दिनों राजभाषा समिति दौरा कर रही है और हिंदी में कामकाज की स्थिति का आकलन कर रही है।


हालांकि यह भी तथ्य है कि 1978 तक सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी मीडियम से परीक्षा देने का विकल्प नहीं था। तब मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार ने परीक्षा में रिफॉर्म किया और सभी को समान रूप से मौका मिला। इसके लिए अंग्रेजी के अलावा कई भाषा में परीक्षा देने का विकल्प दिया गया। इसके कुछ सालों बाद से हिंदी ने अपनी पैठ बनानी शुरू की थी और अगले 30 साल में लगभग 6000 सिविल सर्विस अधिकारी हिंदी मीडियम से चुन कर आए, जिनमें कई टॉप दस में भी जगह नियमित रूप से पाते थे।