संघ लोक सेवा आयोग  की तरफ से बीते दिनों 2023 प्रीलिम्स का रिजल्ट जारी किया गया था। जिसको लेकर कुछ अभ्यर्थियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि आयोग की तरफ से रिजल्ट में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है इसलिए रिजल्ट को रद्द करके दोबारा से तैयार किया जाए। इस पूरे मामले में सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने आयोग को अपना पक्ष रखने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया लेकिन यूपीएससी के वकील द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने इस स्तर पर याचिका पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और मामले को 26 जुलाई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।


17 सिविल सेवा अभ्यर्थी की तरफ से दायर की गई है याचिका


यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2023 को रद्द करने और प्रारंभिक परीक्षा और सामान्य अध्ययन पेपर 1 और 2 को फिर से आयोजित करने की मांग को लेकर 17 सिविल सेवा अभ्यर्थियों द्वारा दायर याचिका जस्टिस मनोज जैन की बेंच के पास सुनवाई के लिए आई है ।


याचिकाकर्ताओं ने वकील राजीव कुमार दुबे के माध्यम से कहा है कि वे पूरे भर्ती चक्र के संचालन में आयोग की "मनमानी" से व्यथित हैं। याचिका में प्रारंभिक परीक्षा के परिणामों के संबंध में 12 जून के UPSC प्रेस नोट को भी चुनौती दी गई है और आंसर-की प्रकाशित करने का अनुरोध किया गया है।


आंसर-की देने की मांगः याचिका में फैसले को मनमाना बताया गया है और यूपीएससी को तत्काल प्रभाव से उत्तर कुंजी प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई है. वकील ने यह भी तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के पास सिविल सेवा के उम्मीदवारों की शिकायत पर फैसला करने का अधिकार क्षेत्र है. दूसरी ओर UPSC की ओर से पेश वकील नरेश कौशिक ने याचिका की विचारणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाई और कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम वर्जित है. भर्ती प्रक्रिया से संबंधित विवाद का निपटारा उच्च न्यायालय करेगा.


कट ऑफ कम करने की मांगः वकील राजीव ने आगे कहा कि विवादित प्रेस नोट भी भर्ती का एक हिस्सा है और इस प्रकार उच्च न्यायालय के पास याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है. आगे यह प्रस्तुत किया गया कि उम्मीदवारों के पास केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने का मूल उपाय है, जहां उम्मीदवारों का एक अन्य समूह पहले ही भाग-2 (CSAT) परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए कट ऑफ को 33 प्रतिशत से घटाकर 23 प्रतिशत करने की मांग कर चुका है.छात्रों की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यूपीएससी द्वारा उनके द्वारा दी गई परीक्षा की उत्तर कुंजी प्रदान नहीं करना, इसके लिए एक विशेष समय विंडो प्रदान किए जाने के बावजूद उम्मीदवारों के अभ्यावेदन पर विचार नहीं करना और असंगत रूप से अस्पष्ट प्रश्न पूछना, उम्मीदवारों की क्षमता का परीक्षण करना है. केवल अनुमान के आधार पर उत्तर देना न केवल मनमाना है बल्कि निष्पक्षता, तर्क और तर्कसंगतता के सभी सिद्धांतों की अवहेलना है.