PM और CM केवल नाम के होते है , देश तो ये चलाते हैं।


15 अगस्त 1947, आधुनिक भारत के उदय का सबसे ऐतिहासिक दिन, यानि हमारा स्वतन्त्रता दिवस। इस दिन भारत को चलाने की ज़िम्मेदारी भारतीय लोगों के हाथ में आई और साथ ही आयी एक चुनौती, यह होगा कैसे? एक ऐसा देश जहां हर 100 मील पर बोली, भाषा, खान पान, संस्कृति सब बदल जाती  है, आखिर उसे सुचारु ढंग से कैसे चलाया जाए? सब लोग इस दुविधा में डूबे हुए थे लेकिन देश के पहले गृह मंत्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल को पता था कि यह कैसे होगा?


दोस्तों, आपको ये जान कर आश्चर्य होगा की भारत के पहले प्रधानमंत्री उस वक्त देश की सिविल सेवा व्यवस्था को लेकर बहुत ज्यादा खुश नहीं थे और वे चाहते थे की इसे भंग कर एक नयी व्यवस्था तैयार की जाए लेकिन सरदार पटेल को सिविल सेवा और सिविल सरवेंट्स पर पूरा भरोसा था। उनका मानना था कि यदि भारत को fast पेस से तरक्की करनी है तो इसमे सबसे अहम भूमिका सिविल सरवेंट्स की ही होने वाली है।


उन्होंने 21 अप्रैल, 1947 को एक विशेष संबोधन में दिल्ली के मेटकाफ हाउस में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पहले बैच से बात की और कहा - ''आपके पूर्ववर्तियों का पालन-पोषण उन परंपराओं में हुआ, जो उन्हें आम जनता से अलग रखती थीं। आम आदमी के साथ अपने जैसा व्यवहार करना आपका परम कर्तव्य होगा।“ और उस दिन से लेकर आज तक यही बात हर civil servant के लिए एक motivation का काम करती है।


तब उन्होंने सिविल सेवकों को ‘भारत का स्टील फ्रेम’ कहा. इसका मतलब यह था कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सिविल सेवक देश की प्रशासनिक व्यवस्था के सहायक स्तंभों के रूप में कार्य करते हैं।


सिविल सेवा का महत्व  -


सिविल सेवा पूरे भारत में मौजूद है और इस प्रकार इसका एक मजबूत  चरितरे है जो पूरे भारत में लगभग एक जैसा है।

यह प्रभावी प्लोकी मेकिंग, इम्प्लिमैनटेशन और रेग्युलेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी, देश के राजनीतिक नेतृत्व को गैर-पक्षपातपूर्ण सलाह प्रदान करता है।

यह सेवा शासन के विभिन्न संस्थानों और विभिन्न विभागों, निकायों आदि के बीच प्रभावी समन्वय प्रदान करती है।

यह प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर सेवा वितरण और नेतृत्व प्रदान करता है।


सिविल सेवा का योगदान –


इकनॉमिक प्लानिंग : आधुनिक सरकारों ने आर्थिक विकास और कल्याणकारी राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने की एक विधि के रूप में प्लाननिग का सहारा लिया है। प्लानिंग actions से संबंधित नई जिम्मेदारियाँ, अर्थात् योजना निर्माण और कार्यान्वयन और विस्तृत आवश्यक प्रशासनिक मशीनरी के निर्माण ने स्वाभाविक रूप से सार्वजनिक प्रशासन के दायरे को व्यापक बना दिया है। हालाँकि, नए liberalised economic रेफ़ोर्म्स में, आर्थिक विकास की एक पद्धति के रूप में योजना और उससे संबंधित प्रशासनिक कार्य धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं।


आपदाएँ और संकट: भूकंप, बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने भी नागरिक सेवाओं के महत्व को बढ़ाया है। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने की स्थिति में, प्रभावित लोगों के जीवन और संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिए सार्वजनिक प्रशासकों को त्वरित कार्रवाई करनी होती है और बचाव अभियान चलाना होता है। इस प्रकार संकट प्रबंधन लोक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण कार्य है।


कल्याणकारी राज्य का उद्भव: एक कल्याणकारी राज्य के रूप में, सरकारों को सामाजिक सेवाओं के वितरणकर्ता, आवश्यक वस्तुओं के प्रदाता, प्रमुख उद्योगों और बैंकिंग सेवाओं के प्रबंधक और निजी आर्थिक उद्यमों और गतिविधियों के नियंत्रक और नियामक जैसे प्रमुख कार्य करने होते हैं। इससे स्वाभाविक रूप से सिविल सेवा का महत्व खुल कर सामने आया है।


सिविल सेवा में अधिकारी न तो न्यायिक होते हैं और न ही राजनीतिक। इतिहास में, उन्होंने अपने स्वामी के सेवक की भूमिका निभाई। इसी तरह के अधिकारी, जिन्हें राजुक और अद्यक्ष के नाम से जाना जाता था, मौर्य प्रशासन में समान शासन के प्रभारी थे। आधुनिक इतिहास में, ईस्ट इंडिया कंपनी में ऐसे सरकारी कर्मचारी थे जिन्होंने 1800 ई. में लॉर्ड वेलेस्ली के अधीन राजशाही की सेवा की थी। जबकि सरकारी कर्मचारियों के इस समूह ने स्वतंत्रता से पहले ब्रिटिश हितों को बढ़ावा दिया था, लेकिन अजडीओ के बाद भारत में सिविल सेवकों का एक नया स्वरूप सामने आया है जहां समाज के बीच से ही निकला हुआ एक व्यक्ति समाज को बदलने का बीड़ा उठा रहा है।