"वो मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं मार सकते. वो मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे". ये कहना था एक ऐसे क्रांतिकारी का जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नीव हिला दी और मात्र 24 साल के उम्र में ही देश के लिए शहादत दी। ये महान क्रांतिकारी और सचे देशभक्त कोई और नहीं सुखदेव थापर थे
सुखदेव का जन्म आज ही के दिन 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ । इनके पिता का नाम श्री रामलाल थापर और माता का नाम रल्ली देवी था। छोटी उम्र में ही सुखदेव के पिता का देहांत हो गया । वे अपने ताऊजी के पास पले-बढ़े। सुखदेव के मन में बचपन से ही ब्रिटिश हुकूमत की ज्यादतियों के खिलाफ क्रांतिकारी विचार उठने लगे जिसके कारण पढ़ाई में उनका ध्यान कम ही लगता और उनके दिमाग में बस एक ही विचार चलता रहता की देश को अंग्रजी दासता से कैसे मुक्त कराया जाए |
साल 1909 में जब जालियांवाला बाग में अंधाधुंध गोलियां चलाकर अंग्रेजों ने भीषण नरसंहार किया , तब सुखदेव महज 12 साल के थे उस वक्त लाहौर के सभी प्रमुख इलाकों में मार्शल लॉ लगा दिया गया । स्कूल, कॉलेज में छात्रों को अंग्रेज पुलिस अधिकारियों को सलाम करने को कहा जाता । सुखदेव के स्कूल में कई अंग्रेज अधिकारी तैनात रहते लेकिन सुखदेव ने पुलिस अधिकारियों को सैल्यूट करने से मना कर दिया जिसके बदले में उन्हें अंग्रेज अधिकारियों से मार भी खानी पड़ी। भारत में जब साइमन कमीशन लाया गया तो उसका भी सुखदेव ने जमकर विरोध किया।
लायलपुर के सनातन धर्म हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया, इस दौरान उनकी मुलाकात भगत सिंह और राजगुरू से हुई जिनके मन में भी अंग्रेजो के खिलाफ क्रांतिकारी विचार सुलग रहे। वे सभी अच्छे मित्र बन गए। सुखदेव का मानना था कि भारत से तानाशाही ब्रिटिश हुकूमत को समाप्त करने में नौजवानों को आगे आना पड़ेगा इसके लिए उन्होंने भगतसिंह के साथ मिलकर लाहौर में ‘नौजवान भारत’ नाम से एक संगठन शुरू किया जिसने देश के युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए कई सभाएं कर उन्हें प्रेरित किया गया। उनकी टीम में राजगुरू, शिववर्मा, जयदेव कपूर, भगवती चरण गौरा जैसे कई क्रांतिकारियों ने एकजुट होकर बढ़-चढ़कर अंग्रजों के खिलाफ जंग लड़ी। सभी क्रान्तिकारियों को संगठित करने के उद्देश्य से उन्होंने 9 सितम्बर 1928 को फिरोजशाह कोटला के मैदान में ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ बैठक की स्थापना की । जिसमें उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ रखे जाने का सुझाव दिया और वह इस संगठन के पंजाब प्रान्त के नेता के रुप में चुने गए।
सुखदेव महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय से बहुत प्रभावित थे , पंजाब में लाठीचार्ज के दौरान लाला लाजपत राय के निधन से उनका मन बहुत आहत हुआ जिसके बाद उन्होंने अपने मित्रों भगतसिंह, राजगुरू के साथ मिलकर इसका बदला लेने की ठानी। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने योजना बनाकर साल 1928 में अंग्रेजी हुकूमत के एक पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना ने जहां ब्रिटिश साम्राज्य की नीव हिला दी वहीं भारत में इन क्रांतिकारियों के जज्बे की बहुत सहरना हुई।
सेंट्रल असेंबली दिल्ली में अंग्रेजो के लाए जा रहे दमनकारी कानून पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिसप्यूट बिल पेश होने के विरोध की योजना भी सुखदेव ने ही बनाई। इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली बम फेंका गया जिसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि अंग्रेजों के कुशासन के खिलाफ आजादी का बिगुल बजाना था, यह बम असेंबली की खाली जगह पर फेंका गया जिससे कोई हताहत न हो। इस घटना को भगतसिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अंजाम दिया जिसके लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया। बाद में बटुकेश्वर दत्त को काले पानी की सजा और भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू सहित सांडर्स हत्याकांड का दोषी ठहराकर फांसी की सजा दी गई।
23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को लाहौर के जेल में फांसी दी गई। भारत की आजादी के लिए इन तीनो महान क्रांतिकारियों ने भारत की जयकार करते हुए हँसते-हँसते फांसी के फंदे को अपने गले लगाया। उस समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल के थी ।
फांसी पर जाते हुए ये तीनों वीर गर्व से देश के लिए गाना गा रहे थे - मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला |
- 1923 में भारत के हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर का जन्म हुआ।
- 1948 में अरब देशों ने इजराइल पर हमला किया।
- 2011 में किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत का निधन हुआ।
- 2018 आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी में नाव डूबने से 40 लोगों की मौत।