देश की आज़ादी के लिए कई क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया . इस दौरान हर क्रांतिकारी अपने-अपने तरीकों से देश को आज़ाद कराना चाहता था . इन्हीं में से एक क्रांतिकारी ऐसे थे जो 1857 के ‘प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ के प्रमुख शिल्पकार रहे . उस क्रांतिकारी पर ब्रिटिश हुकूमत को 1 लाख रुपये का ईनाम घोषित करना पड़ा लेकिन फिर भी वह उस योद्धा को पकड़ने में नाकामयाब रहे | ये योद्धा कोई और नहीं भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार नाना साहब थे |
19 मई 1824 को नाना साहब का जन्म हुआ | नाना साहब के पिता का नाम माधवनारायण भट्ट था जो पेशवा बाजीराव द्वितीय के सगे भाई थे उनकी माता का नाम गंगाबाई था | पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ-साथ माधवनारायण भट्ट और उनकी पत्नी गंगाबाई भी कानपुर चले गए | पेशवा बाजीराव द्वितीय के कोई संतान नहीं थी इसी कारण उन्होनें नाना साहब को गोंद ले लिया । पेशवा बाजीराव की छत्रछाया में रहते हुए नाना साहेब ने घुड़सवारी, हथियार चलाना और कुशल राजनीति के गुण सीखे |
इस समय किसी को नहीं पता था कि नाना साहब के रूप में एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी तैयार हो रहा है | जो आने वाले समय में भारतीय इतिहास में देश प्रेम के लिए हमेशा के लिए अमर हो जाएंगा | पेशवा परिवार के साथ पले बढ़े नानासाहेब में बचपन से ही देश प्रेम कूट कूट कर भरा था | इतिहास में नाना साहेब को बालाजी बाजीराव के नाम से भी संबोधित किया गया है |
नाना साहेब की बुद्धिमता और कोशलता को देख कर पेशवा ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी तो नियुक्त कर दिया लेकिन उनकी मृत्यु के समय तक भारत की राजनीति में अंग्रेजों की नीतियाँ बदल चुकी थीं । लॉर्ड डलहौज़ी की “डाक्टराईन ऑफ लैप्स” की नीति के कारण कोई भी शासक स्वयं के पुत्र न होने पर किसी दूसरे के पुत्र को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर सकता था। इन्ही परिस्थितियों में 28 जनवरी 1851 के दिन पेशवा का स्वर्गवास हो गया। ब्रिटिश सरकार ने पेशवा के बाद नाना साहब को पेशवा का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानने से माना कर दिया।कानपूर के कमिश्नर को ब्रिटिश सरकार ने यह आदेश दिया कि वह नाना साहब को यह सूचना दे कि ब्रिटिश सरकार ने नाना साहब को पेशवा कि धन संपत्ति का ही उत्तराधिकारी माना है न कि पेशवा की उपाधि और उसके पद का । ब्रिटिश सरकार ने यह आदेश दिया कि नाना साहब पेशवा कि उपाधि प्राप्त करने का प्रयत्न न करें और न ही इससे संबन्धित किसी समारोह का कोई आयोजन करें । इन विपरीत परिस्थितियों में नाना साहब ने ब्रिटिश सरकार को चुनौती देते हुए पेशवा की उपाधि प्राप्त की और पेशवा की सारी सम्पत्तियों को उनके शास्त्रागार के साथ अपने नियंत्रण में ले लिया। लॉर्ड डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद उन्हे मिलने वाली 8 लाख की पेंशन भी बंद कर दी। इस पर नाना साहब ने आवेदन दे कर पेंशन फिर से चालू करने की याचना की जिसे ब्रिटिश सरकार ने खारिज कर दिया। भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा बात न सुने जाने के कारण नाना साहब ने अजीमुल्ला खाँ को अपना वकील नियुक्त कर के इंग्लैंड में महारानी विक्टोरिया के पास भेजा। लेकिन उनका यह प्रयास भी असफल रहा। अंग्रेजों के इस व्यवहार ने नाना साहब को ब्रिटिश सरकार का शत्रु बना दिया |
नाना साहब ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लंबे युद्ध की भूमिका बना ली। साल 1857 में जब क्रांति का आरंभ हुआ तो नाना साहब ने पूरे जोश के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी वीरों का नेतृत्व किया और विद्रोह को एक नयी दिशा दी । कानपुर में नाना साहब ने अंग्रेजों को एक किले में कैद कर दिया और उसपर विजय पताका फहराई । 1 जुलाई 1857 को ब्रिटिश सेना ने जब कानपुर से प्रस्थान किया तो नाना साहब ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया । नाना साहब की सेना और ब्रिटिश सेना में फ़तेहपुर और अंग्रेजो में जबर्दस्त युद्ध हुआ | नाना साहब की सेना ने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी लेकिन अंग्रेजों द्वारा कानपुर और लखनऊ के बीच मार्ग को बंद कर दिये जाने के बाद नाना साहब ने अवध छोड़ कर रूहेलखण्ड की ओर प्रस्थान किया। उनके इस प्रकार से चकमा देने से अंग्रेज़ समझ चुके थे की जब तक नाना साहब को पकड़ा नहीं जाता तब तक विद्रोह को कुचला नहीं जा सकता । साल 1857 के विद्रोह को कुचलने के बाद भी ब्रिटिश सरकार नाना साहब को पकड़ नहीं पाई। नाना साहब शिवाजी की भांति छापेमार युद्ध करते रहे। नाना साहब ने कई कष्ट सहे पर अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आये ।उनको पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इनाम की घोषणा भी की लेकिन वे अंग्रेजो के हाथ नहीं आए । विद्रोह के असफल होने पर नाना साहब सपरिवार नेपाल चले गए और वहा पर ही ने 34 वर्ष की अवस्था में बुखार से पीड़ित हो कर नाना साहब की 6 अक्तूबर 1858 में मृत्यु हो गई |
- 1904 में टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा का निधन
- 1913 में भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का जन्म हुआ।
- 1934 में अंग्रेजी भाषा के प्रसिद्ध भारतीय लेखकों में एक 'रस्किन बॉन्ड' का जन्म हुआ।
- 1950 में इजराइल के साथ अरब देशों का युद्ध हुआ।
- 2018: कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने शपथ लेने के 2 दिन बाद ही इस्तीफा दिया।