सालों पहले की बात है एक युवक ब्रह्म समाज से जुड़े होने के बाद भी सामाजिक बुराइयों और रुढ़िवादी परंपराओं का खुलकर विरोध किया करता | उस दौर में विधवा महिलाओं की दोबारा शादी की परंपरा नहीं हुआ करती थी, लेकिन इस रुढ़िवादी सोच को खत्म करने के लिए उस युवक ने अपनी पत्नी की मौत के बाद एक विधवा से शादी करने का फैसला लिया | उसके इस फैसले से सामाज के साथ-साथ उसके परिवार वाले भी खासे नाराज हुए, लेकिन वह युवक अपने फैसले पर अडिग रहा और सामाजिक दबाव के आगे कोई समझौता न करते हुए उसने एक विधवा महिला से शादी की  यह युवक कोई और नहीं गरम दिल के नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक बिपिन चंद्र पाल थे, जिन्हें 'क्रान्तिकारी विचारों का जनक' भी कहा जाता है | नमस्कार आज की तारीख है 20 मई और आज ही के दिन गरम दल के क्रांतिकारी नेता बिपिन चंद्र पाल का निधन हुआ था |


7 नवंबर, 1858 को अविभाजित भारत के हबीबगंज जिले में एक संपन्न कायस्थ परिवार में बिपिन चंद्र पाल का जन्म हुआ | उनके पिता का नाम रामचंद्र और माता का नाम नारयाणी देवी था | बिपिन के पिता रामचन्द्र पाल जमींदार होने के साथ- साथ फारसी भाषा के भी विद्वान थे | जिस वजह से उन्होंने आारंभिक शिक्षा घर पर ही फारसी भाषा में पूरी की वहीं कुछ कारण के चलते उन्होंने ग्रेजुएट होने से पहले ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी | जिसके बाद वह कोलकाता गए और वहां के एक स्कूल में हेडमास्टर और एक पब्लिक लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन की नौकरी करने लगे |


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बचपन से ही बिपिन के विचारों में क्रांति और स्पष्टता साफ झलकती थी, वे अपनी बात रखने में कभी पीछे नहीं रहते | जितने स्पष्टवादी वे अपने जीवन में रहे उतने ही स्पष्टवादी और क्रांतिकारी अपने निजी जीवन में भी रहे | उन्होंने अपनी पहले पत्नी की मौत के बाद एक विधवा से शादी की जो उनके समय में बहुत ही बड़ी बात थी | कांग्रेस से जुड़ते ही पाल जल्दी ही एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गए | जिसके बाद उनकी दोस्ती लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक से हुई | तीनों ने मिलकर क्रांतिकारी परिवर्तन के विरोध के उग्र स्वरूपों को अपनाया और जल्दी ही देश में लाल-बाल-पाल के नाम से मशहूर हो गए | पूर्ण स्वराज, स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा देश के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख हिस्से हो गए, जिसमें आगे चल कर अरविंद घोष का भी नाम जुड़ गया |


बिपिन चंद्र पाल ने स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे उपायों के जरिए देश में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने की वकालत की  उन्होंने रचनात्मक आलोचना के जरिए देश के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने पर जोर दिया | बंगाल पब्लिक ओपिनियन, बन्देमातरम, स्वराज, बंगाली पत्रिकाओं में उनके ऐसे इरादे साफ तौर पर झलकते | साल 1905 के बाद लाल, बाल और पाल की तिकड़ी बंगाल विभाजन के विरोध में विशेष तौर से देश भर में लोकप्रिय हुई | पाल तो बंगाल में पहले से ही लोकप्रिय हो चुके थे | इस मौके पर अंग्रेजी सरकार के वे कड़े विरोधी हो गए |  उनके उग्र और सुधारवादी तरीकों से अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का काम करते रहे | अपने जीवन के आखिरी सालों में उन्होंने खुद को कांग्रेस से भी अलग कर लिया और एकांत जीवन चुन लिया | उन्होंने अपने पूरे जीवन में सामाजिक और आर्थिक कुरीतियों को खत्म करने के प्रयास किए | उन्होंने जातिवाद को खत्म कर विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया | मजदूरों के लिए उन्होंने सप्ताह में केवल 48 घंटे कार्य और उनके भत्ते में इजाफे की मांग की | वहीं आज ही के दिन यानि 20 मई साल 1932 को उनका निधन हो गया |


1784: पीस ऑफ पेरिस संधि के तहत नीदरलैंड ने भारत और इंडोनेशिया में अपने कब्जे वाली कुछ जगहें ब्रिटेन को दे दीं। 

1900: प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म हुआ। 

1902: क्यूबा को अमेरिका से आजादी मिली। अमेरिका ने 1899 में स्पेन के साथ युद्ध के दौरान क्यूबा पर कब्जा कर लिया था। 

1990: हबल स्पेस टेलिस्कोप ने अंतरिक्ष से पहली तस्वीरें भेजीं। 

2001: अफगानिस्तान में तालिबान ने हिंदुओं की अलग पहचान के लिए ड्रेस कोड बनाया। 

2002: पूर्वी तिमोर आजाद घोषित हुआ। 

2011: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मध्य प्रदेश के बीना में बनी ऑइल रिफाइनरी देश को समर्पित की।