कहानी है 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक मेजर की। जिसने  खुद की जान की परवाह किए बिना घायाल होकर भी  पाकिस्तान को उनके नापाक इरादों में कामयाब नही होने दिया ।इस जवान को देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.... ये मेजर कोई और नहीं एक बहादुर सेनिक मेजर होशियार सिंह थे |

नमस्कार आज की तारीख है 5 मई


आज ही के दिन  मेजर होशियार सिंह दहिया का जन्म 1936 को सोनीपत, हरियाणा के एक गाँव  में हुआ था। उनकी शुरूआती शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल में और उसके बाद जाट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। पढ़ाई में अच्छे होने के साथ-साथ होशियार सिंह खेल-कूद में भी आगे रहते थे। होशियार सिंह की सेना में जाने की नींव बचपन में ही पड़ गई थी | साल 1957(सत्तावन) में उन्होंने जाट रेजिमेंट में प्रवेश लिया और बाद में वे 3-ग्रेनेडियर्स में अफसर बन गए।


साल 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी होशियार सिंह ने अहम् भूमिका निभाई थी। बीकानेर सेक्टर में अपने क्षेत्र में आक्रमण पेट्रोलिंग करते हुए उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सूचना सेना तक पहुंचाई, जिसके कारण बटालियन को जीत मिली।


साल 1971(इकहत्तर) के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान शकरगढ़ पठार का इलाका दोनों ही देशों के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण था। जिस भी देश का इस इलाके पर कब्ज़ा हो जाता उसी की स्थिति युद्ध में मजबूत हो जाती। युद्ध के दौरान तीसरे ग्रेनेडियर को 15 दिसम्बर 1971(इकहत्तर )से शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी पर एक पुल का निर्माण करने का कार्य दिया गया । नदी दोनों तरफ से गहरी लैंड माइन से ढकी हुई थी और पाकिस्तानी सेना द्वारा अच्छी तरह से संरक्षित थी।


इस 3-ग्रेनेडियर्स को जरवाल और लोहाल गाँवों पर कब्जा करना था। 15 दिसम्बर 1971(इकहत्तर) को इस बटालियन की दो कम्पनियाँ, जिनमें से एक की कमान मेजर होशियार सिंह के हाथ में थी, हमले के लिए आगे बढ़ीं। इन दोनों कम्पनियों ने दुश्मन की ओर से हो रही भारी गोलाबारी, बमबारी और  मशीनगन की बौछार के बावजूद फ़तेह हासिल कर ली।


यह युद्ध कुछ दिनों तक  जारी रहा।पाकिस्तान पूरी तैयारी के साथ भारत पर जवाबी हमला कर रहा था पर होशियार सिंह ने अपनी सेना का मनोबल टूटने नहीं दिया। युद्ध में वह बुरी तरह घायल हो गए थे, फिर भी वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट  तक जाते और अपने जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। उन्होंने अपने जवानों से कहा,


“बहादुर लोग केवल एक बार मरते हैं। तुम्हें युद्ध करना ही है। तुम्हें विजय प्राप्त करनी है।”


उनके सैनिकों को उनकी बातों ने प्रेरित किया। मशीन गन पोस्ट में तैनात सैनिक गोली लगने से नीचे गिर पड़ा। मशीन गन फायरिंग के महत्व को देखते हुए उन्होंने खुद उस पोस्ट का मोर्चा लिया और पाकिस्तानी सेना पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। हमले से परेशान पाकिस्तानी सेना अपने पीछे 85 साथियों की लाशें छोड़कर भाग खड़ी हुई। इस हमले में उनका कमांडिंग ऑफिसर और तीन अन्य अधिकारी भी मारे गए।


17 दिसंबर 1971 को शाम 6 बजे दोनों सेनाओं को आदेश मिले कि 2 घण्टे बाद युद्ध खत्म  हो जाएगा। दोनों बटालियन इन 2 घण्टों में ज्यादा-से-ज्यादा वार करके दुश्मन को परे कर देना चाहते थे। हमला खत्म हो गया था। जरपाल पोस्ट पर भारतीय सेना का कब्जा था। मेजर होशियार सिंह बुरी तरह घायल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने सीजफायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से इनकार कर दिया। इसी युद्ध विराम के बाद बांग्लादेश के उदय पर बातचीत शुरू हुई।


इस युद्ध के दौरान मेजर होशियार सिंह ने विशिष्ट बहादुरी, अतुलनीय लड़ाई भावना और नेतृत्व का प्रदर्शन किया था। मेजर होशियर सिंह को उनकी बहादुरी और नेतृत्व के लिए भारत सरकार द्वारा 1972 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर होशियार सिंह ने पुरे समर्पण के साथ देश की सेवा की और ‘ब्रिगेडियर’ के रूप में सेना से रिटायर हुए। साल 1998 में 6 दिसंबर को उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। पर भारत देश हमेशा ही उनका और उनके जैसे और बहादुर सैनिकों का ऋणी रहेगा।


1916 में  भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का जन्म हुआ |

1935 में  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता तथा हिन्दी-गुजराती साहित्यकार आबिद सुरती का जन्म हुआ |

1953 में  भारत के पहले वित्त मंत्री आर. के. शनमुखम चेट्टी का निधन हुआ |

1954 में  हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता मनोहर लाल खट्टर का जन्म हुआ |

2005 में  ब्रिटेन में मतदान, टोनी ब्लेयर तीसरी बार प्रधानमंत्री बने | 

2017 में  इसरो ने सफलतापूर्वक साउथ एशिया सैटेलाइट लॉन्च किया ।