दोस्तों, यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा तीन चरणों में आयोजित की जाती है, यह तो आप जानते ही होंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर तीन ही चरण क्यों, चार या दो क्यों नहीं। और तीनों चरणों का फ़ारमैट एक दूसरे से अलग क्यों है? और प्री की तरह ही क्या मेंस में भी negative marking का नियम लागू होता है? यदि हाँ तो क्यों और यदि नहीं तो आखिर क्यों नहीं? आज के वीडियो में हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे।
दोस्तों, प्री और मेंस के बीच का सबसे मूलभूत अंतर तो आप जानते ही होंगे कि प्री एक औब्जैकटिव परीक्षा होती है जबकि मेंस एक सब्जेक्टिव परीक्षा। अब इन दोनों चरणों के अलग अलग फ़ारमैट का उद्देश्य क्या है?
इस सवाल के जवाब को समझने के लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि यूपीएससी की आवश्यकता क्या है यानि यूपीएससी अपने candidates में क्या तलाश करता है। तो सबसे पहले आप यह समझ लीजिये कि यूपीएससी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप स्कूल और कॉलेज में topper थे या कोई साधारण स्टूडेंट, आप पीएचडी होल्डर हैं या सिर्फ एक साधारण से ग्रेजुएट। बल्कि यूपीएससी तो कुछ ऐसी qualities ढूँढता है जो किताबों और academics से नहीं मिल सकती, हाँ उन्हें अपने अंदर समय के साथ डिवैलप जरूर किया जा सकता है।
अगर आप मेंस के सिलैबस और पैटर्न पर गौर करें तो आपको पता चलेगा कि इस परीक्षा का उद्देश्य दरअसल आपकी क्रिटिकल थिंकिंग, एनालिटिकल स्किल्स, judgement, के साथ साथ नॉलेज की जांच करना है। इसीलिए तो इस परीक्षा में इतने सारे विषयों के papers को जगह दी गयी है और साथ ही स्टूडेंट्स के लिए एक optional subject का भी विकल्प दिया गया है ताकि वे अपनी पसंद कि किसी विषय में अपनी महारत दिखा सकें। अब आप इन कसौटियों पर कितना खरा उतर पाते हैं, इसकी जांच तो तभी हो सकेगे जब आयोग आपके answers की जांच करेगा। और यही कारण है कि मेंस को subjective बनाया गया है ताकि आप विस्तार से मगर फिर भी एक तय शब्द सीमा में अपनी बात, अपने विचार दूसरों को समझा सकें।
लेकिन जरा सोचिए कि जिस परीक्षा में हर साल दस लाख लोग अप्लाई करते हों और जिस परीक्षा में अंततः 7 से 8 सौ लोगों को ही चुनना हो, उसके लिए यदि कोई filtration stage नहीं लगाई गयी तो दस लाख लोगों की कॉपी की जांच करने और फिर उसके आधार पर एक result तैयार करने में कितना समय और संसाधन व्यर्थ हो जाएगा। बस इसी के लिए प्री का कान्सैप्ट इस परीक्षा में लागू किया गया है ताकि नॉन सिरियस और अधपकी तैयारी वाले लोगों को पहले ही बाहर किया जा सके और सिर्फ उन्हीं के answers की जांच हो जो प्री में qualify कर सके हों। अब आप सोच रहे होंगे कि यहाँ तक तो ठीक है मगर, negative marking की क्या जरूरत है? तो इसे ऐसे समझिए कि मान लीजिये कि आप 100 सवाल हल करते हैं और उसमे से आप सिर्फ 30 सवालों के ही जवाब सही कर पाते हैं और बाकी 70 सवालों में आपने तुक्का लगा दिया और उसमे से 50 सवाल सही हो गए तो आप कुल 80 सवाल सही कर देंगे और आपके selection के chances काफी high हो जाएंगे जबकि कोई दूसरा स्टूडेंट जिसने 60 सवालों को सही किया है और बाकी 40 में तुक्का लगाया और उसमे से सिर्फ 10 सावल ही सही कर पाया तो उसके कुल 70 सवाल सही होंगे जो आपसे कम होंगे और उसके selection के chances कम हो जाएंगे। यदि ऐसा ही होता है तो filtration का सारा उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। इसलिए प्री में negative marking का concept रखा गया है। इसके अलावा objective questions की खासियत होती है कि इसका एक ही कावब सही हो सकता है, यानि या तो आपका जवाब सही होगा या गलत जबकि subjective यानि मेंस पेपर में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती। मेंस की परीक्षा आपके ज्ञान के साथ साथ अपनी thinking capabilities की भी जांच करती है और इसके जवाब आप अपने विचारों के अनुसार तय कर सकते हैं। यानि मेंस में कोई एक सही जवाब नहीं हो सकता और यह examiner के ऊपर निर्भर करता है कि वे किस जवाब को सही और कितना सही मानते हैं।