मराठा साम्राज्य जो अपनी शान और प्रक्रमण के लिए जाना जाता है | लेकिन साल 1720 में मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा विश्वनाथ की मौत के बाद उनकी शान खतरें में पड़ने लगी, तभी पेशवा विश्वनाथ के बेटे को 20 साल की आयु में पेशवा के पद पर बैठाया गया | सभी को पेशवा के बेटे से कई उम्मीदें थी, कि वह भी अपने पिता की तरह वीर योद्ध होगा | और हुआ भी वैसा ही उनके बेटे ने अपने पिता से भी ज्यादा नाम कमाया, पेशवा के बेटे के पद पर आते ही छत्रपति शाहू नाम मात्र के शासक बन गए | मराठा साम्राज्य छत्रपति शाहू के नाम पर तो चल रहा था, पर असली ताकत पेशवा के बेटे के हाथों में ही थी | यह लड़का कोई और नहीं मराठा साम्राज्य के महान पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट थे | जिसने 41 लड़ाइयाँ लड़ीं और एक भी नहीं हारी |
नमस्कार आज की तारीख है, 28 अप्रैल आज ही के दिन भारत के वीर मराठा पेशवा बाजीराव ने अंतिम सांसे ली थी | उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनकी शोर्य की कहानी |
पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त साल 1700 को एक भट्ट परिवार में बालाजी विश्वनाथ और राधाबाई के घर में हुआ | उनके पिता, छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे | बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा | बाजीराव अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे | 1720 में बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद छत्रपति साहू ने 20 वर्षीय बाजीराव को पेशवा नियुक्त कर दिया | बाजीराव के अंदर मौजूद जोश इतना ज्यादा था की उनकी कम उम्र उनके सामने चुनौती नहीं बन सकी | यह अवसर बाजीराव के लिए काफी जरूरी था, क्योंकि पेशवा के बेटे को पेशवा बनाए जाने के बाद यह पद वंश परंपरागत बन गया | बाजीराव ने पेशवा के रूप में 20 सालों तक अपनी सेवाएँ दीं | राजनीति में आने के बाद बाजीराव का प्रभाव बहुत बढ़ गया, जिसके चलते शाहूजी सिर्फ नाम के ही शासक रह गए |
पेशवा बाजीराव ने दो शादियाँ की ,उनकी पहली पत्नी का नाम काशीबाई था जिसके 3 पुत्र थे- नानासाहेब, बालाजी बाजी राव, रघुनाथ राव जिसकी बचपन में भी मृत्यु हो गई | वहीं पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी का नाम था मस्तानी, जो छत्रसाल के राजा की बेटी थी | बाजीराव उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उनके लिए पुणे के पास एक महल भी बनवाया था, जिसका नाम उन्होंने 'मस्तानी महल' रखा | बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया |
साल 1724 के दौर में भारत पर मुग़लों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के अत्याचार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था, लेकिन ऐसे समय में बाजीराव ने अपने मराठा साम्राज्य का विस्तार कर इनके अत्याचारों को रोक दिया | बाजीराव की ओर से पूरे उत्तर भारत को अपने अधीन लाया गया | बाजीराव ने 1724 में शकरखेडला में मुबारीज़ खाँ को हराया, साथ ही साल 1724 से 1726 के दौरान मालवा और कर्नाटक पर जीत हासिल कर अपने शासन को स्थापित किया | जिसके बाद पालखेड़ के एक युद्ध में मराठों के शत्रु निजाम-उल-मुल्क को हरा कर बाजीराव ने उससे चौथ और सरदेशमुखी के रूप में कर वसूला |
इस युद्ध के बाद बाजीराव ने साल 1727 में मालवा और बुंदेलखंड के मुग़ल सेनानायकों गिरधरबहादुर और दयाबहादुर को हराकर अपने अधीन कर लिया | उनके अलावा बाजीराव ने मुहम्मद खाँ बंगश और त्रियंबकराव को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया | जैसे की हमाने आपको शुरूआत में बताया कि पूरे हिंदुस्तान के इतिहास में बाजीराव अकेला ऐसे योद्धा थे, जिसने 41 लड़ाइयाँ लड़ीं और एक भी नहीं हारी | वह अपने सभी अभियानों में अजेय रहे |
12 नवंबर 1736 को पेशवा बाजीराव ने पुणे से दिल्ली मार्च शुरू किया और वहां डेरा डाल कर मुग़लों को अपनी ताकत का लौहा मनवाया | उनके डर से 12वां मुग़ल बादशाह और औरंगजेब का नाती लाल किले से बाहर नहीं निकला और दिल्ली छोड़ कर भागने ही वाला था | लेकिन बाजीराव सिर्फ 3 दिनों तक दिल्ली को बंधक बना कर रखने के बाद वापस लौट गए | इस अभियान में बाजीराव के 500 सैनिकों ने मुग़लों के 8 से 10 हजार सैनिकों को बुरी तरह से परास्त किया था | यह अभियान मराठा शक्ति के उत्कर्ष का अभियान था | बाजीराव के अभियानों ने महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे पश्चिम भारत को मुग़लों के कब्जे से आजादी दिलाई | बाजीराव ने दक्कन के निजाम, जो अपने आप को मुग़लों से स्वतंत्र घोषित कर चुका था, को कई बार हराया | जिसके बाद उसने दक्कन के निजाम के ऊपर कई शर्ते लगाकर उसे अपने नियंत्रण में कर के छोड़ दिया | उसकी ओर से किए गए अभियानो में एक चतुर रणनीतिकार के सारे गुण मौजूद थे | धीरे-धीरे पेशवा बाजीराव ने अपनी तलवार का लोहा पूरे हिंदोस्तान में मनवाया |
साल 1740 में पेशवा बाजीराव मध्य प्रदेश में एक अभियान में गए और रावेरखेड़ी में आकर रुके | वहां उन्हें तेज़ बुखार ने जकड़ लिया, जो कई दिनों तक बना रहा और गंभीर होता चल गया | बुखार इतना गंभीर हो गया कि वो बाजीराव प्रथम की मृत्यु का कारण बन गया, आज ही के दिन यानि 28 अप्रैल 1740 को पेशवा बाजीराव ने अंतिम सांसे ली |
आइए आखिर में जानते हैं आज की तारीख यानि 18 अप्रैल की देश विदेश की अन्य महत्वपुर्ण घटनाओं के बारे में |
1910: इंग्लैंड में क्लोड ग्राहम वाइट नाम के पायलट ने पहली बार रात में विमान उड़ाया।
2001: अमेरिकी बिजनेसमैन डेनिस टीटो पहले अंतरिक्ष पर्यटक बने। उन्होंने छह दिन की अंतरिक्ष यात्रा के लिए दो करोड़ डॉलर खर्च किए।
2002: पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के जनमत संग्रह को वैध करार दिया।
2003: ऐपल ने आईट्यून्स स्टोर की शुरुआत की, जिससे उपभोक्ता इंटरनेट से गाने सीधे अपने फोन पर डाउनलोड कर सकते थे।
2003: दुनिया भर में कर्मचारी सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। इसी दिन काम पर मारे गए मजदूरों को भी याद किया जाता है।
2007: श्रीलंका को हराकर ऑस्ट्रेलिया चौथी बार विश्व क्रिकेट चैंपियन बना।
2008: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने पीएसएलवी-सी9 के साथ 10 सैटेलाइट एक साथ छोड़कर इतिहास रचा।