आज की तारीख है 15 अप्रैल


एक कर्नल जो युद्ध के बारे में बताते हुए कहते है  “हमने अपने आखिरी बचे गोला बारूद का इस्तेमाल कर लिया था। हर कोई हमारी स्थिति को जानता था और चारों तरफ सिर्फ दहशत और अराजकता थी। महिलाओं ने सिंधु नदी में कूदकर आत्महत्या करना शुरू कर दिया और कई महिलाओं ने अपने सम्मान को बचाने के लिए जहर खा लिया । ऐसा ही एक उदाहरण था जब एक लड़की ने खुद को मारने के लिए सिंधु नदी में तीन बार छलांग लगाई लेकिन हर बार लहरें उसे किनारे तक पहुंचा देती। मेरे सैनिकों ने बहुत ही मुश्किलों के साथ लड़ाई लड़ी थी और 6 महीने 3 दिनों तक स्कार्दू पर कब्जा जमा कर रखा था। फिर आखिरी में आदेश के मुताबिक आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।” यह लेफ्टिनेंट कर्नल कोई और नहीं द हीरो ऑफ़ स्कार्दू शेर जंग थापा थे |


शेर जंग थापा का जन्म आज के ही दिन 15 अप्रैल , 1908 को एबटाबाद जो वर्तमान में पाकिस्तान है वहाँ हुआ था। बचपन के दौरान, उनका परिवार एबटाबाद से धर्मशाला चला गया जहाँ थापा ने अपनी शिक्षा जारी रखी और कॉलेज में एडमिशन लिया । पूर्वजों के पदचिन्हों पर चलते हुए, शेर जंग ने भी स्वेच्छा से एक सैनिक बनना पसंद किया। कश्मीर राज्य के प्रति उनकी निष्ठा और पुरुषों को कमान और नेतृत्व करने की क्षमता पर किसी का ध्यान नहीं गया। शेर जंग को 16 अगस्त, 1932 को जम्मू और कश्मीर इन्फैंट्री की 6वीं बटालियन में विभाजन के समय तक नियुक्त किया गया | लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में शेर जंग उस बटालियन की कमान संभाल रहे थे, जिसमें उन्हें कमीशन दिया गया था।


11 फरवरी, 1948 के दिन पाकिस्तान की 600 सैनिकों वाली सेना ने स्कार्दू शहर पर हमला बोल दिया। उस वक्त कर्नल शेर जंग थापा स्कार्दू की रक्षा के लिए अपने 50 जवानों के साथ वहां पर तैनात थे। संयोग अच्छा था कि पाकिस्तान द्वारा हमला करने के एक दिन पहले 10 फरवरी को कैप्टन प्रभात सिंह के नेतृत्व में 90 जवानों की टुकड़ी स्कार्दू पहुंच चुकी थी। पाकिस्तान द्वारा हमला करने के बाद शेर जंग थापा ने 130 जवानों के साथ 6 घंटे लंबी लड़ाई लड़कर पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे जाने पर मजबूर कर दिया था।


स्कार्दू में तैनात भारतीय सेना को पाकिस्तान सैनिकों का मुकाबला करने के साथ ही वहां की मुस्लिम आबादी का भी मुकाबला करना पड़ रहा , क्योंकि स्कार्दू की मुस्लिम आबादी पाकिस्तानी सैनिकों के साथ मिल गई और उनका सहयोग कर रही । पाकिस्तान द्वारा हमला किये अभी दो ही दिन हुए थे कि 13 फरवरी को कैप्टन अजीत सिंह के नेतृत्व में 70 सैनिकों की टोली और 15 फरवरी को भी लगभग इतने ही भारतीय सैनिकों की टोली स्कार्दू पहुंच गई | सैनिकों के पहुंचने से शेर जंग थापा को थोड़ी राहत तो जरूर मिली , लेकिन उन्हें यह भी ज्ञात था कि लड़ाई अभी लंबी है। इसीलिए उन्होंने श्रीनगर की सैन्य छावनी से अतिरिक्त सेना भेजने का आग्रह किया। स्कार्दू की रक्षा के लिए चोटी प्वाइंट 8853 पर भारतीय सेना की तैनाती जरूरी थी, लेकिन कर्नल शेर जंग थापा के साथ मात्र 285 सैनिक होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था।


इसलिए कर्नल शेर जंग थापा ने चोटी प्वाइंट 8853 पर भारतीय सैनिकों की तैनात के लिए श्रीनगर सैन्य छावनी से लगातार कई बार आग्रह किया। लेकिन किसी कारण यह संभव नहीं हो पाया। जिसके बाद कर्नल शेर जंग ने स्कार्दू के स्थानीय गैर मुस्लिम युवकों को इकठ्ठा किया, जिससे आगे चौकियों तक राशन और अन्य सामान पहुंचाये जा सके। कुछ दिनों के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने दोबारा हमला बोल दिया और चोटी प्वाइंट 8853 पर अपना कब्जा कर लिया। कब्जे के बाद पाकिस्तान सैनिकों ने भारतीय सेना की चौकियों को निशाना बनाकर गोलाबारी शुरू कर दी थी। पाकिस्तान सैनिकों की संख्या लगातार बढ़ रही थी , जिससे वह स्कार्दू छावनी की घेराबंदी कर सके। पूरे मार्च महीने भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया था।


16 फरवरी, 1948 को अपनी बटालियन के साथ निकले कर्नल पृथ्वीचंद भारी बर्फबारी के कारण 1 मार्च, 1948 को कारगिल पहुंचे । जहां उनकी मुलाकात कर्नल शेर जंग थापा की बटालियन से हुई। वहां उन्हें जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना ने स्कार्दू पर अपना कब्जा जमा लिया है, यह सूचना मिलने के बाद कर्नल पृथ्वीचंद बिना देर किए  लेह आ गए। जहां पर उन्होंने स्थानीय नागरिकों से मुलाकात की और तिरंगा फहराया।


स्कार्दू में बीते 6 महीने से पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ रहे भारतीय सैनिकों के पास अब राशन लगभग खत्म हो चुका था, उनके लिए एक समय का भोजन करना भी मुश्किल हो चुका था। साथ ही हर एक राइफलमैन के पास सिर्फ लगभग 10 कारतूस ही बचे थे। बिना गोली और राशन के उनके लिए लड़ना बहुत चुनौतीपूर्ण था। कर्नल शेर जंग थापा लगातार श्रीनगर से मदद की मांग कर थे, लेकिन रास्ता बंद होने के कारण मदद पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा था। अगले दिन श्रीनगर डिवीजन के कर्नल राम ओबेरॉय ने आत्मसमर्पण करने का आदेश दे दिया । 14 अगस्त, 1948 को आदेश के बाद कर्नल थापा, 4 अधिकारी, 1 जेसीओ और 35 अन्य रैंक के सैनिकों ने दुश्मनों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।


शेर जंग थापा को उनकी वीरता के लिए 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया। शेर जंग थापा ब्रिगेडियर के पद तक पहुंचे और साल 1961 में सेवानिवृत्त हो गये। अगस्त 1999 में 92 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।


  • 1469 में  सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म। 
  • 1563 में  सिखों के पांचवें गुरु गुरु अर्जन देव का जन्म। 
  • 1689 में फ्रांस ने स्पेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। 
  • 1923 में  डाइबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए इन्सुलिन बाजार में उपलब्ध हुआ। 
  • 1948 में  हिमाचल प्रदेश की स्थापना हुई |