UP में हुए एनकाउंटर्स की वजह से आज-कल यह शब्द काफी चर्चा में है | हाल ही में UP STF ने कई अपराधियों के एनकाउंटर्स किए | लेकिन क्या आपको पता है कि देश का पहला एनकाउंटर किसका हुआ था | साथ ही यह भी कहां जा रहा है कि पिछले साल आई MOVIE RRR से भी इसका कोई संबंध है | ऐसे में आइए जानते हैं कि देश का पहला एनकाउंटर कब, कहां और किसका किया गया था | और देश में एमकाउंटर को लेकर क्या-क्या नियम है |


बात है साल 1882(बयासी) की, जब अंग्रेजों ने मद्रास में वन अधिनियम लागू किया था | जिसके लगने से आदिवासियों को अपने इस्तेमाल के लिए लकड़ियां काटने से रोक दिया गया | इस अधिनियम के विरोध में साल 1922 में एक क्रांतिकारी ने आंदोलन शुरू किया , जिसे रंपा विद्रोह कहा जाता है | इस आंदोलन में जुड़ने वाले आपने सभी साथियों को उस क्रांतिकरी ने हथियार चलाना सिखाया और एकजुट किया | यह क्रांतिकरी कोई और नहीं आदिवासियों के हीरो 'अल्लुरी सीताराम राजू' थे | जिनपर पिछले साल आई फिल्म RRR का एक मुख्य किरदार बेस्ड है |


दो सालों में अंग्रेजों और हैदराबाद रियासत ने अल्लुरी सीताराम को ढूंढने के अभियान में 40 लाख रुपए खर्च कर दिए | वह अंग्रेजों के लिए एक अबूझ पहेली बने हुए थे, घने जंगलों में वह अपनी सेना के साथ कहां रहते थे, जिसका किसी को पता नहीं था | वह अपना ठिकाना बहुत तेजी से बदलते रहते थे | शासक वर्ग के खिलाफ उनके विद्रोह के चलते ब्रिटिश और हैदराबाद पुलिस ने उन्हें 7 मई, 1924 को गिरफ्तार कर लिया | और उन्हें पेड़ से बांधकर गोली मार दी गई | जिसको भारत का पहला रिकोर्डेड एनकाउंटर कहा जाता है |


देश के चर्चित एनकाउंटर


2020 : कानपुर में 8 पुलिस वालों की हत्या के आरोपी विकास दुबे ने उज्जैन में सरेंडर किया, उज्जैन  से कानपुर आते समय रास्ते में गाड़ी पलट गई और विकास दुबे ने पुलिस की पिस्टल छीनकर फायरिंग कर दी , जवाबी फायरिंग में विकास दुबे मारा गया |


2019 : हैदराबाद की डॉक्टर से गैंगरेप करने औऱ उसे मारने के आरोप में 4 आरोपियों को भागने की कोशिश के दौरान एनकाउंटर कर दिया |


2016 : अक्टूबर 2016 में कथित रूप से SIMI से जुड़े 8 लोग भोपाल जेल से फरार हो गए | पुलिस ने उन्हें ढूंढ निकाला और सरेंडर के लिए कहा पर उन्हें पुलिस पर फायरिंग कर दी, जिसके जवाब में पुलिस ने उनका एनकाउंटर कर दिया | इस एनकाउंटर  पर भी कई सवाल उछे पर जांच में सबको क्लीन चिट मिल गई |


2008 :19 सितंबर 2008 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने जामिया नगर के बटाला हाउस में एक ऑपरेशन किया था | जिसमें  इंडियन मुजाहिदीन के दो संदिग्ध आंतकी और एक इंस्पेक्टर मारे गए थे | इस एनकाउंटर पर भी कई सवाल खड़े हुए थए |


साल 2006 : राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भइया को साल 2006 में मुंबई पुलिस ने वाशी में पकड़ा और कथित रूप से वर्सोवा में एनकाउंटर कर दिया | साल 2013 में मुंबई सेशन कोर्ट ने लखन भइया की हत्या के लिए 21 लोगों को सजा सुनाई थी, जिसमें 13 पुलिस वाले भी शामिल थे |


साल 2006 : साल 2006 में गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन शेख का एनकाउंटर किया था | बताया जाता है कि वह लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े था |


साल 2006 : सोहराबुद्दीन का साथी तुलसीराम प्रजापति CBI के मुताबिक उसे गिरफ्तार करके मारा गया था | CBI ने इस मामले में 22 लोगों को आरोपी बनाया था, लेकिन साल 2018 में सभी निर्दोष साबित हुए |


साल 2004 : 15 जून 2004 को गुजरात पुलिस ने 19 साल की इशरत जहां और 3 लोगों को एनकाउंटर में मार गिराया था | जानकारी के अनुसार सभी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थेऔर उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने का प्लान बना रहे थे |


साल 2004 : अक्टूबर 2004 में तमिलनाडु की स्पेशल टास्क फोर्स ने वीरप्पन को एनकाउंटर में मार गिराया ... वीरप्पन हत्या , किडनैपिंग, तस्करी जैसे गंभीर मामलों का आरोपी था |


भारतीय कानून में एनकाउंटर


भारत में एनकाउंटर को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है | यही वजह है कि समय-समय पर पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं | भारत के कानून में कहीं भी एनकाउंटर को वैध ठहराने की बात नहीं है | लेकिन भारत का कानून पुलिस को यह अधिकार देता है कि जब अपराधी उनपर हमला करें तो वो जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं और इस जवाबी कार्रवाई में बदमाश की मौत हो जाती है तो इसमें पुलिस की गलती नहीं होगी | इंडियन पीनल कोड यानि IPC के सेक्शन 100 में इस बारे में जानकारी दी गई है | वहीं IPC के सेक्शन 97 के तहत आत्मरक्षा के लिए बल का इस्तेमाल किया जा सकता है |


आपराधिक संहिता यानि CrPC की धारा 46 के मुताबिक अपराधी पर पुलिस 3 हालात में ही हमला कर सकती है |


1. अपराधी खुद को गिरफ्तार होने से बचाने की कोशिश करता है 

2. अपराधी पुलिस गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है 

3. पुलिस पर हमला करता है तो पुलिस जवाबी कार्रवाई कर सकती है देश में एनकाउंटर के लिए नियम 

1. जब भी पुलिस को किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की सुचना मिले तो उसे केस डायरी या फिर इलेक्टॉनिक माध्यम में रिकॉर्ड किया जाए |

2. अगर पुलिस की तरफ से गोलीबार में किसी की मृत्यु की सूचना मिले तो इस पर तुरंत प्रभाव से धारा 157 के तहत बिना किसी देरी के कोर्ट में FIR दर्ज होनी चाहिए | 

3. इस पूरे घटनाक्रम की जांच CID से या किसी दूसरी पुलिस टीम से करवानी जरूरी है, जिसकी निगरानी एक सीनीयर पुलिस अधिकारी करें | 

4. धारा 176 के अंतर्गत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए ... इसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना जरूरी है | 

5. जब तक स्वतंत्र जांच में किसी तरह का शक पैदा नहीं होता , तब तक NHRC को जांट में  शामिल करना जरूरी नहीं है | हालंकि घटनाक्रम की पूरी जानकारी उस समय NHRC या राज्य मानवाधिकार आयोग के पास भेजना जरूरी है |


आपको बता दें साल 1997(सत्तानबे) में मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वेंकटचलैया ने कहा था कि हमारे कानून में पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को मार दे | ऐसे में जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि उन्होंने कानून के अंतर्गत किसी को मारा है, तब तक वह हत्या मानी जाएगी |