UPSC क्लियर करने के बाद DM बनने में कितना समय लगता है ?
आईएएस पास करने वाले स्टूडेंट्स को लेकर आम धारणा यह है कि वे ट्रेनिंग पूरी करते ही डीएम बना दिये जाते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि एक आईएएस अधिकारी अपने पूरे कैरियर के दौरान अलग अलग roles में काम करते है और डीएम उन्हीं कई roles में से एक है। तो यह भी संभव है कि आईएएस बनने के बाद किसी को डीएम बनने का मौका ना भी मिले, हालांकि ऐसा बहुत ही कम होता है। तो आइए जानते हैं कि आईएएस की परीक्षा पास करने से लेकर डीएम बनने तक का सफर कैसा होता है?
आईएएस की ट्रेनिंग की शुरुआत मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (जिसे लबासना कहते हैं) में फाउंडेशन कोर्स से होती है। इसमें आईएएस पद के लिए सेलेक्टेड कैंडिडेट्स के अलावा आईपीएस, आईएफएस और आईआरएस के लिए चुने गए कैंडिडेट्स भी शामिल होते हैं. इस कोर्स में बेसिक एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल सिखाए जाते हैं। एकेडमी में कई तरह की एक्टिविटीज होती हैं जिनसे कैंडिडेट को फिजिकली और मेंटली मजबूत बनाया जाता है। इन्हीं में से एक है हिमालय की ट्रैकिंग. इसके अलावा यहां इंडिया डे भी मनाया जाता है। इसमें कैंडिडेट्स को अपने-अपने राज्य की संस्कृति का प्रदर्शन करना होता है। इसमें सिविल सेवा अधिकारी पहनावे, लोक नृत्य या फिर खाने के जरिए देश की 'विविधता में एकता' दिखाते हैं।
फाउंडेशन ट्रेनिंग के बाद अन्य सभी अधिकारी अपनी-अपनी एकेडमी में चले जाते हैं और केवल आईएएस अधिकारी ही लबासना में रह जाते हैं। प्रोफेशनल ट्रेनिंग के दौरान ही अधिकारियों को देश का भ्रमण कराया जाता है जिसे 'भारत दर्शन' के नाम से भी जाना जाता है। उसके बाद शुरू होती है प्रोफेशनल ट्रेंनिंग के दौरान एजुकेशन, हेल्थ, एनर्जी, एग्रीकल्चर, इंडस्ट्री, रूरल डिवेलपमेंट, पंचायती राज, अर्बन डेवलपमेंट, सोशल सेक्टर, वन, कानून-व्यवस्था, महिला एवं बाल विकास, ट्राइबल डेवलपमेंट जैसे सेक्टर पर क्लास ली जाती है। क्लास लेने के लिए देश के जाने-माने एक्सपर्ट और सीनियर ब्यूरोक्रेट आते हैं।
ट्रेंनिंग के दौरान आईएएस अधिकारी को कैडर के हिसाब से स्थानीय भाषा सिखाई जाती है। यह बेहद जरूरी है क्योंकि हजारों लोग अपनी समस्याएं अधिकारियों के सामने लेकर आते हैं और अपनी भाषा में समाधान पाने की उम्मीद रखते हैं। उन आम लोगों की समस्याओं को सुनने और समझने के लिए स्थानीय भाषा का ज्ञान होना जरूरी है। इसी दौरान उन्हें देश का भ्रमण भी करवाया जाता है जिसे ' भारत दर्शन ' के नाम से जाना जाता है।
एक साल की एकेडमिक ट्रेनिंग और फिर फील्ड ट्रेनिंग के बाद उन्हें जेएनयू की तरफ से पब्लिक मैनेजमेंट में मास्टर्स की डिग्री दी जाती है। एकेडमिक ट्रेनिंग के बाद आईएएस अधिकारी एक साल की ऑन जॉब प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए अपने कैडर के राज्य जाते हैं, जहां स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव एकेडमी में राज्य के कानूनों, लैंड मैनेजमेंट वगैरह की ट्रेनिंग दी जाती है।
इसके बाद हर ट्रेनी आईएएस को ऑन जॉब ट्रेनिंग के लिए किसी एक जिले में असिस्टेंट कलेक्टर और एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के रूप में भेजा दिया जाता है, जहां एक साल की ट्रेनिंग होती है। इसके बाद राज्य प्रशासन में वो उप जिलाधिकारी (एडीएम) के रूप में काम शुरू कर देते हैं, उन्हें एक जिले या तहसील का प्रभार दिया जाता है। राज्यों को इस बात का पूरा अधिकार मिलता है कि किसे किस जिले में पद दिया जाए, किसे राज्य सचिवालय में पदस्थापित किया जाए, किसे ट्रांसफर किया जाए, किसे महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी जाए और किसे अन्य पदों पर बैठाया जाए। यहां पर राज्यों के पास किसी भी अधिकारी पर विशेष अधिकार हासिल होते हैं।
5 से 6 साल एडीएम या एसडीएम के पद पर काम करने के बाद उन्हें पूरे जिले का प्रभार दिया जा सकता है और इसी समय उन्हें जिला अधिकारी या district magistrate बनाया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की यदि सरकार चाहे तो उन्हें डीएम ना बनाकर सचिवालय या किसी अन्य विभाग में निदेशक की भूमिका में भी नियुक्त कर सकती है।