आज की तारीख है 4 अप्रैल, बात है साल 1858 की  इस समय तक पूरे भारत में अंग्रजों का शासन होना शुरू हो चुका था | इसी कड़ी में अब बारी थी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अपने महल के सातवें माले पर खड़ी, ठंडी पड़ चुकी आंखों के साथ अपनी जलती हुई झांसी को देख रही थी | एक साथ हज़ारों लोगों की चीखें आसमान को भेद रही थी | हर तरफ आग, खून, लूटपाट होते हुए वह अपनी झांसी के नागरिकों को देख रही थी |


झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई के हाथों में झांसी को संभालने की ज़िम्मेदारी तो आई, लेकिन तब तक वो वैसी रानी नहीं थीं जैसा हम उन्हें जानते हैं | उस वक्त वो पूजा-पाठ किया करती, ब्राह्मणों को हर रोज़ दान करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा होता | उन्होंने अंग्रेज़ों से दरख्वास्त की थी कि उन्हें काशी जाने दिया जाए | काशी जाकर वो सिर मुंड़वाकर एक विधवा की तरह सामान्य जीवन यापन करेंगी, लेकिन अंग्रेज़ों ने ऐसा नहीं करने दिया | किले में रहकर ही लक्ष्मीबाई अब सफ़ेद साड़ी पहनने लगीं, अपने केश खुले रखने लगीं और सुबह विधवाओं की तरह माथे पर राख पोतने लगीं |

इसके बाद से अंग्रेज़ों और रानी के बीच टकराव बढ़ता ही गया | पहले दत्तक पुत्र को लेकर, फिर पेंशन को लेकर और आखिर में काशी न जाने देने को लेकर | इसके बाद झांसी में अंग्रेजों द्वारा गो-हत्या को लेकर रानी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया | इन सब चीज़ों ने रानी को काफी आघात पहुंचाया और वो बागी बनने पर मज़बूर हो गई | रानी के बागी होने से अंग्रेज़ों ने झांसी पर हमला करने की योजना बनाई | योजना को आंजाम देने के लिए उन्होंने झांसी को घेर लिया | वो लगातार हमले कर रहे थे | इसी दौरान किसी नागरिक को लालच देकर उन्होंने झांसी के दक्षिण द्वार से प्रवेश करने का जुगाड़ कर लिया | लेकिन इससे भी रानी विचलित नहीं हुईं | वह महल के चक्कर काटतीं, हर मोर्चे पर खुद निगरानी रखतीं और सबके खाने-पीने का ध्यान भी रखा करती | यह सब लगातार 11 दिनों तक चला | इस लड़ाई में उन्होंने पड़ोसी रियासतों को पत्र लिखकर मदद मांगी, गोले-बारूद की वजह से किला क्षतिग्रस्त होता जा रहा था | लोगों को अपनी मौत सामने दिख रही थी, इस समय रानी ने न खाना खाया और न एक पल भी सोईं |


हर साल चैत महीने में झांसी में हल्दी-कुमकुम का त्यौहार होता था | इस बार इसकी उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब रानी को लगा कि झांसी वालों की ये आखिरी चैत हो सकती है तो उन्होंने त्यौहार का वो इंतजाम कराया, जो कभी नहीं हुआ | आखिरी दिनों में उनके ही किसी व्यक्ति ने उनसे धोखा किया और कहा कि अंग्रेज़ों का मनोबल टूट गया है | इतने दिन से झांसी के किले से कोई जवाबी हमला न होने की वजह से वे छोड़कर जाने लगे हैं | ये सुनकर रानी ने राहत की सांस ली | 11 दिनों बाद सेना ने अपनी रानी को ऐसे देखा तो सब खुश हुए, लेकिन ये खबर झूठी निकली | अंग्रेज़ वहां से हटे नहीं थे, बल्कि वे दूसरे गुप्त रास्तों से झांसी के महल में प्रवेश कर गए थे | रानी को जब ये पता चला तो उन्हें आघात पहुंचा और वे इस सब बातों का ज़िम्मेदार खुद को मानने लगीं | उस रात पहली बार रानी की आंखों में आंसू आए | सबको किला छोड़कर जाने के लिए कहते हुए उन्होंने तय किया कि वे खुद को महल के साथ बम से उड़ा लेंगी | तब किसी के समझाने पर रानी मानीं और 200 लोगों के साथ कालपी के लिए चल पड़ीं |


वहीं आज ही के दिन 4 अप्रैल साल 1858(अट्ठावन) को अंग्रेजी सेना के खिलाफ भीषण संघर्ष के बाद झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को झांसी को छोड़ना पड़ा | अंग्रेजों से डटकर लोहा लेने वाली लक्ष्मीबाई झांसी से निकलकर काल्पी पहुंचीं और फिर वहां से ग्वालियर रवाना हुईं | और अपनी झांसी फिर से वापस लेने की योजना बनाने लगी | और अंत में अपनी झांसी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गई |


आइए आखिर में जानते हैं देश और दुनिया की आज की तारीख यानि 4 अप्रैल की अन्य महत्वपूर्ण घटना के बारे में :- 

  • 1818 में अमेरिकी कांग्रेस ने राष्ट्रध्वज में ’13 लाल और सफ़ेद स्ट्रिप्स तथा 20 सितारे’ शामिल किए थे |
  • 1904 में हिंदी सिनेमा के हरदिल अजीज गायक और कलाकार कुंदन लाल सहगल का जन्म हुआ था |
  • 1949 में नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी पर 12 देशों ने साइन किए और नाटो का जन्म हुआ था | 
  • 1975 में बिल गेट्स और पॉल एलन ने माइक्रोसॉफ्ट बनाई थी | 
  • 1983 में अंतरिक्ष शटल चैलेंजर ने अपनी पहली उड़ान भरी थी |
  • 1994 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने उग्येन थिनली दोरजी को नए कर्मापा के रूप में घोषणा की थी |