आज की तारीख है 19 अप्रैल ,
भारत में पहली सैटेलाइट आर्यभट्ट की कहानी शुरू होती है तब जब The Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) 1968 में बना ISRO विक्रम साराभाई अपने एक स्टूडेंट UR राव से मुलाक़ात करते हैं और उनसे कहते हैं कि वो भारत में सैटेलाइट टेक्नोलॉजी के विकास के लिए एक प्लान बनाएं. 60 के दशक में साराभाई सोवियत संघ और नासा का दौरा करके आए . उस समय सोवियत संघ में स्पेस प्रोग्राम को परदे के पीछे रखा जाता. लेकिन अमेरिका से उन्हें भरोसा मिला कि सैटेलाइट लांच में मदद मिलेगी. कुछ दिन बाद राव प्लान लेकर साराभाई के सामने पेश होते हैं. रिपोर्ट देखकर साराभाई कमेंट करते हैं, सब सही है, सिवाए एक चीज के. तुमने ये तो लिखा ही नहीं कि इस प्रोग्राम को लीड कौन करेगा. राव जवाब देते हैं कि ये तो आपको डिसाइड करना है. साराभाई राव को इस काम के लिए चुनते हैं. लेकिन राव मना कर देते हैं. राव उस वक्त अमेरिका में बतौर लेक्चरर पढ़ा रहे थे. उन्हें लगा ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. लेकिन साराभाई ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और आखिर राव को साराभाई की बात माननी पड़ी |
साल 1969 में प्रोग्राम की लीडरशिप लेने के बाद राव ने 20 इंजीनीयर्स की एक टीम इकठ्ठा की. उनका पहला काम सैटेलाइट का डिजाइन तैयार करना | राव की टीम ने निर्णय लिया कि एक 100 किलोग्राम की सैटेलाइट बनाएंगे और उसे अमेरिकी रॉकेट स्काउट की मदद से लांच किया जाएगा. नासा तब स्काउट रॉकेट को किराए में देने के लिए राजी हो गया | राव और उनकी टीम सैटेलाइट बनाने की तैयारी में लग गई. इस बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास मास्को में भारतीय राजदूत, DP धर से एक मैसेज पहुंचा सोवियत संघ सैटेलाइट लांच में भारत की मदद करना चाहता था | विक्रम साराभाई को जब ये पता चला तो एकदम से राजी हो गए. इसके एक महीने बाद भारतीय वैज्ञानिकों और सोवियत संघ के राजदूत निकोलाई के बीच मीटिंग हुई | प्लान सुनाने के बाद निकोलाई सैटेलाइट लांच के लिए सोवियत व्हीकल के इस्तेमाल के लिए राजी हो गए | उन्होंने ये तक कहा कि सैटेलाइट बनाने में सोवियत वैज्ञानिक भारत की मदद करेंगे. लेकिन एक शर्त पर राव ने पूछा कौन सी शर्त. तो निकोलाई ने जवाब दिया, भारत की सैटेलाइट चीन से भार में ज्यादा होनी चाहिए |
विक्रम साराभाई और राव के लिए ये एक नई चुनोति थी | अब तक वो मानकर चल रहे थे कि 100 किलो का उपग्रह बनाएंगे. और उसकी भी शुरुआत बिलकुल स्क्रैच से होनी थी | सोवियत संघ के हामी भरते ही राव और उनकी टीम काम में लग गए | उन्होंने 350 किलो के उपग्रह का एक डिज़ाइन बनाया, जो चीन के उपग्रह से भार में दोगुना था. इस उपग्रह के साथ में तीन पेलोड और जोड़े जाने थे | पेलोड यानी वो उपकरण जो स्पेस में इक्स्पेरिमेंट करने के काम आते हैं | जब एक बार सैटेलाइट का डिज़ाइन तैयार हुआ तो राव तीन वैज्ञानिकों की टीम लेकर अकैडमी ऑफ़ साइंस, मॉस्को में एक मीटिंग के लिए पहुंचे | सोवियत वैज्ञानिक को इस बात का पूरा भरोसा नहीं था कि भारत पहली बार में इतना महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पूरा कर लेगा | इसलिए उन्होंने एक प्रस्ताव रखा कि पहले भारत पेलोड बनाने पर काम करे. और उसे सोवियत सैटेलाइट के साथ लांच करे. जब इस काम में दक्षता हासिल हो जाए, तभी सैटेलाइट के बारे में सोचे |
लेकिन राव और साराभाई, दोनों इसके लिए तैयार नहीं हुए . वो चाहते भारत जल्द से जल्द सैटेलाइट टेक्नॉलजी में दक्ष होकर आत्मनिर्भर हो जाए. तीन दिन तक चली बहस के बाद अंत में सोवियत वैज्ञानिक इस बात के लिए राजी हो गए. अगस्त 1971 में दोनों देशों के बीच बातचीत पूरी हुई लेकिन आखिरी सहमति से पहले सोवियत वैज्ञानिक भारत का दौरा करने चाहते ताकि ये देख सकें कि भारत में फैसिलिटीज़ और इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है?
ये हो पाता इससे पहले ही मिशन को एक और झटका लगा. जिसके बाद लगने लगा कि भारत का स्पेस मिशन दिक्कत में पड़ सकता है. दिसम्बर 1971 में विक्रम साराभाई की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई.साराभाई की मृत्यु के बाद MGK मेनन को इसरो का अंतरिम चीफ़ बनया गया और साल 1972 में सतीश धवन ने इसरो की जिम्मेदारी संभाली. मिशन की सारी थियोरिटिकल तैयारी के बाद सवाल उठा बजट का. सैटेलाइट बनाने का जिम्मा भारत का था और इस मिशन का बजट 3 करोड़ रूपये आ रहा. भारत तब एक गरीब देश था, लेकिन इंदिरा एटॉमिक और स्पेस मिशन में कोई भी कमी नहीं बरतना चाहती थीं | इसलिए उन्होंने तत्काल सदन से 3 करोड़ का बजट स्वीकृत करवाया | इसके बाद रूस और भारत के बीच एक एग्रीमेंट साइन हुआ और 2 साल बाद यानी 1974 में लांच की डेट रखी गई. रॉकेट लांच टेस्टिंग आदि का काम तब तक केरल में थुंबा से हुआ करता | लेकिन धवन ने इसरो की जिम्मेदारी संभाली तो उन्होंने साथ में शर्त रखी कि सैटेलाइट बनाने का काम बंगलुरु से किया जाएगा |
इस बात की खबर फ़ैली तो केरल में हंगामा मच गया. वहां नेताओं को लग रहा था कि सारी नौकरियां बंगलुरु चली जाएंगी | इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव का भरपूर विरोध किया | अंत में जब सदन ने आश्वासन दिया कि एक बार सैटेलाइट का काम पूरा होने के बाद टीम थुम्बा लौट जाएगी | तब जाकर केरल की सरकार इसके लिए राजी हुई |
लेकिन विरोध के चलते बहुत सारे उपकरण बंगलुरु नहीं ले जाने दिए गए. अंत में सतीश धवन की मदद से विदेश से उपकरण खरीद कर लाए गए | धवन बंगलुरु में काम शुरू करना चाहते , क्योंकि वहां इंडस्ट्री थी. वहां वेल्डिंग आदि के लिए टेक्नीशियन और सामान मिलना आसान था | पीनया इंडस्ट्रियल एरिया में चार शेड्स को साइट के तौर पर चुना गया | एक शेड का क्षेत्रफल 5 हजार स्क्वायर फ़ीट था. सैटेलाइट को बनाने में कई परेशानियां आई लेकिन उन्होंने काम जरी रखा |
साल 1974 में उपग्रह लांच की तारीख को आगे बढ़ाकर अप्रैल 1975 तक आगे बढ़ा दिया | मार्च 1975 में सैटेलाइट बनकर तैयार हो चुकी | तब टीम को अहसास हुआ कि उसका नाम तो रखा ही नहीं क्योंकि आख़िरी सहमति प्रधानमंत्री इंदिरा को देनी थी, इसलिए ऑप्शन के लिए तीन नाम सुझाए गए. मैत्री (भारत और सोवियत संघ की दोस्ती), आर्यभट्ट (भारतीय इतिहास के महान गणितज्ञ) और जवाहर, भारत के पहले प्रधानमंत्री के नाम पर सबको लगा इंदिरा स्वाभाविक कारणों से जवाहर नाम ही चुनेंगी लेकिन उन्होंने आर्यभट्ट नाम चुना |
लांच की तारीख रखी गई आज ही के दिन यानी 19 अप्रैल 1975 वोल्गोग्रैड रशिया के नजदीक कपुस्तिन यार कॉस्मोड्रोम से आर्यभट्ट उपग्रह को लांच किया जाना था. UR राव और सतीश धवन सहित भारत के तीस वैज्ञानिक लांच के लिए रशिया पहुंचे . बंगलुरु के ग्राउंड स्टेशन पर भी इसरो के वैज्ञानिकों का जमावड़ा लगा. दोपहर 12 बजे काउंटडाउन 10 से शुरू होकर 1 तक पहुंचा और फिर आवाज आई “पयाकलि”. USSR में हर लांच से पहले इस फ्रेज़ का इस्तेमाल किया जाता . इसका अर्थ होता है, ‘let us go’. .
लांच के 12 मिनट बाद रॉकेट अपनी यात्रा की लास्ट स्टेज शुरू करता है और कुछ देर में धरती से 600 किलोमीटर ऊपर कक्षा में आर्यभट्ट को स्थापित कर देता है. जैसे ही आर्यभट्ट से पहला सिग्नल मिलता है, राव की आंखों में आंसू आ जाते हैं. वो अपनी टीम के सभी लोगों को गले मिलकर बधाई देते हैं. भारत स्पेस में पहला कदम रख चुका था. हालांकि आर्यभट्ट केवल चार दिन तक सिग्नल भेज पाया और आखिरकार पांचवें दिन सैटेलाइट से संपर्क टूट गया। हालांकि, बाद में संपर्क फिर से जुड़ गया। अंतरिक्ष में करीब 17 साल रहने के बाद सैटेलाइट आर्यभट्ट 10 फरवरी 1992 को पृथ्वी के वातावरण में लौट आया। आर्यभट्ट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना भारत और सोवियत संघ दोनों के लिए बड़ी उपलब्धि थी। रिजर्व बैंक ने इस ऐतिहासिक दिन को सेलिब्रेट करने के लिए 1976 और 1997 में 2 रुपए के नोट पर इस सैटेलाइट की तस्वीर छापी थी।
1864 में पंजाब के प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद महात्मा हंसराज का जन्म।
1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सैयद हसन इमाम का निधन।
1971 में भारत ने वेस्टइंडीज को हराकर टेस्ट क्रिकेट सीरीज जीती।
1972 में बांग्लादेश राष्ट्रमंडल का सदस्य बना।
2007: द विजार्ड ऑफ आईडी सीरीज के कार्टूनिस्ट ब्रैंड पार्कर का निधन।