क्या IAS-IPS बनना किस्मत का खेल है ?


एक व्यक्ति नदी में डूब रहा था। डूबते समय वह भगवान को याद कर रहा था। भगवान उसके मन में आए भी और उससे कहा – मेरा भरोसा करो। बस वह आदमी पानी में स्थिर हो गया। हालांकि, हर सेकंड उसके सर पर पानी कए लेवल बढ़ता जा रहा था, लेकिन वह चुपचाप पड़ा रहा। कुछ देर बाद उसे थोड़ी दूर पर एक नाव दिखाई दी। वह चाहता तो तैर कर उस नाव तक पहुँच सकता था लेकिन वह तो भगवान के भरोसे बैठा था। समय बीतता रहा और पानी का लेवल बढ़ता रहा। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति तैरता हुआ उसके बगल से गुजरा। उसने उस डूबते हुए व्यक्ति के लिए हाथ भी बढ़ाया लेकिन उस व्यक्ति को तो भगवान के हाथों का इंतज़ार था। थोड़ी देर बाद वही हुआ जो होना था। वह व्यक्ति डूब गया और उसकी आउट हो गयी। मरने के बाद जब वह भगवान के सामने पहुंचा तो उसने गुस्से में भगवान से कहा कि अपने तो मुझे भरोसा दिया था, फिर मेरी मदद क्यों नहीं की। भगवान ने मुसकुराते हुए कहा कि मैं कहा था – मेरा भरोसा करो। उसके बाद मैंने तुम्हें दो अमूके दिये जब थोड़ी सी मेहनत से तुम बच सकते थे। लेकिन तुम मेरे भरोसे बैठ गए और यह सोचने लगे कि मैं खुद आ कर तुम्हें बचाऊंगा। लेकिन ऐसा होता नहीं। मैं तो सिर्फ जरिया हूँ, रास्ता तो तुम्हें खुद ही तय करना होगा। मेरा भरोसा करो, लेकिन मेरे भरोसे बैठे मत रहो।


अक्सर आपने लोगों को कामयाबी न मिलने पर कई तरह की शिकायतें करते देखा होगा जिसमें ज्यादातर लोग संसाधनों की कमी को खुद के कामयाब न होने की वजह बताते हैं। उनका मानना होता है कि अगर उन्हें सारी सुख-सुविधाएं मिलतीं तो वो जीवन में कुछ बेहतर कर सकते थे। लेकिन इसी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो किस्मत को दोष देने की बजाय उसे बदलने के लिए मेहनत करते हैं और तब तक करते रहते हैं जब तक उसे बदल ना दें। मेहनत का रुतबा इतना अधिक होता है भाग्य को झक मार कर उसके पीछे आन ही पड़ता है। यदि आपको यकीन ना हो तो एर्णाकुलम के श्रीनाथ की कहानी जान लीजिए। 2018 में आईएएस के लिए चयनित सफल candidates में से एक नाम श्रीनाथ का भी था। श्रीनाथ बेहद गरीब परिवार से आते थे जिनके ऊपर परिवार ले पालन पोषण की भी ज़िम्मेदारी थी। उनके पास अवसर की इतनी कमी थी कि वे एर्णाकुलम रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते थे। श्रीनाथ के पास संसाधन और अवसर की कमी जरूर थी लेकिन उनके हौसले किसी चट्टान से कम नहीं थे। कुली का काम करते हुए ही उन्होने यूपीएससी की तैयारी की और ना सिर्फ तैयारी की बल्कि टॉप rank भी हासिल किया। वे किस्मत को कोसने नहीं बैठे बल्कि जो कुछ उनके पास उपलब्ध था उस का इस्तेमाल करते हुए उन्होने सिर्फ पाने लक्ष्य पर ध्यान लगाए रखा। रेलवे स्टेशन पर मिलने वाली फ्री वाईफाई सुविधा का इस्तेमाल उन्होने गाने सुनने या फिल्मे देखने के लिए नहीं किया बल्कि वे उस resource से अपनी तैयारी करते रहे। उन्हें नहीं पता था कि उनकी मेहनत कितनी रंग लाएगी लेकिन उन्हें यह पता था कि बैठे रहने से तो हालात कभी नहीं बदलेंगे। यदि हालात को बदलना है तो मेहनत करनी पड़ेगी, संघर्ष करना पड़ेगा। किस्मत का क्या है, कभी भी पलट जाएगी। और देखिये कि उनकी सफलता की गूंज इतनी जोरदार थी कि देश के तत्कालीन रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल ने खुद उनकी सफलता को दुनिया के साथ साझा किया। और सनातन धर्म तो यह मानता भी है कि कर्म और भाग्य एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं।


अगर हम कर्म करते हैं, तो उसका परिणाम ही आगे चलकर हमारे लिए भाग्य का काम करता है। अगर कर्म नहीं करते हैं, तो भाग्य भी उतना साथ नहीं दे पाता है।


अंत में जाते जाते यह पंक्तियाँ जरूर याद रखिए - कौन कहता है कि कामयाबी सिर्फ किस्मत तय करती है, अगर दम हो इरादों में तो मंजिलें खुद-ब-खुद झुका करती हैं।”