क्या IAS-IPS सरकार की आलोचना कर सकते हैं ?
आजकल सोशल मीडिया का जमाना है। हर कोई अपनी आवाज़ उठाने और उसे दूर दूर तक पहुंचाने में सक्षम है। सोशल मीडिया का असर कितना ज्यादा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर आपको सरकार से कोई शिकायत है तो बस टिवीटर पर उस मंत्रालय को tag करते हुए अपनी समस्या सामने रखिए और सरकार उसके निवारण के लिए बाध्य हो जाती है। सिर्फ इतना ही नहीं यदि आप आप सरकार से नाखुश हैं तो अपनी नाराजगी भी सोशल मीडिया के माध्यम से जाहीर कर सकते हैं। लेकिन इसिस देश में एक तबका ऐसा भी है जो सरकार से नाराज हो सकता है लेकिन खुले आम उसकी आलोचना नहीं कर सकता है। वह तबका है – हमारे सरकारी कर्मचारियों का यानि कि आईएएस, आईपीएस और अन्य सेवाओं में काम कर रहे लोगों का। जरा सोचिए, इतनी शक्ति, इतनी अथॉरिटी होने के बावजूद भी एक आईएएस अधिकारी सरकार की अलोचना नहीं कर सकता।
एक आईएएस अधिकारी जब नियुक्त होता है तो वह आचरण के नियमों से बंध जाता है और जब तक वह सेवा में रहता है तब तक इन नियमों का पालन करना उसकी ज़िम्मेदारी भी होती है और कर्तव्य भी।
नए संशोधित नियमों के अनुसार जिसमें अखिल भारतीय सेवा के आईएएस, आईएफएस और आईपीएस अधिकारी शामिल हैं को इन बातों का विशेष तौर पर ध्यान देना अनिवार्य कर दिया गया है।
• पब्लिक ड्यूटी के अतिरिक्त उससे जुड़े निजी हितों का खुलासा करना। अगर सार्वजनिक हितों से जुड़ा कोई मुद्दा है तो उसे दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाना होगा।
• यह सुनिश्चित करना होगा कि वे (अफसर) किसी ऐसे वित्तीय या निजी या संगठन से नहीं जुड़ेंगे, जिससे उनके सरकारी कार्य पर असर पड़ता हो।
• सिविल सर्वेंट (सरकारी सेवक) के तौर पर इस तरह का कोई निर्णय नहीं लेंगे, जिससे उन्हें या उनके परिवार या दोस्तों को कोई वित्तीय लाभ पहुंचता हो।
• जनता खासकर कमजोर तबके के लोगों के साथ शिष्टाचार और अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे और सार्वजनिक तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का सही निर्वहन करेंगे।
• सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करने के लिए अपने विवेक का सही इस्तेमाल करेंगे और कुशलतापूर्वक, प्रभावी ढंग तथा आर्थिक तौर पर जनता के हितों को देखते हुए आवश्यक फैसले लेंगे।
• अपने कर्तव्य के पालन में उच्च नैतिक मानदंडों का पालन करते हुए निष्ठा और ईमानदारी बनाए रखेंगे और हमेशा निष्पक्षता के सिद्धांतों को बढ़ावा देंगे।
• जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखेंगे।
• अपने कर्तव्य के निर्वहन के समय विकल्पों पर निर्णय लेते समय स्वविवेक का सावधानी से इस्तेमाल करेंगे।
• पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ काम करेंगे और विशेषकर गरीब और समाज के वंचित वर्ग के खिलाफ कभी भेदभाव नहीं बरतेंगे।
• कानून, नियम, विनियमों और स्थापित परंपराओं के विपरीत कोई भी कार्य करने से बचेंगे।
• अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अनुशासन बनाए रखेंगे और वैध आदेशों को लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।
• अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उच्च कोटि की व्यावसायिकता और समर्पण का प्रदर्शन करेंगे।
• अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों न हो, भारत की संप्रभुता का हमेशा ध्यान रखेंगे।
• किसी भी तरह की ऐसी सूचना जो राज्यों की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक और आर्थिक हितों से जुड़ी हो, किसी भी अन्य देश के लोगों के साथ साझा न करेंगे और न ही किसी तरह के अवैध लाभ के भागी बनेंगे। ऐसा करना कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में माना जाएगा और उनपर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
भारत के संविधान में देश के नागरिकों को अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किये जाने के कारण किसी सिविल सेवक को ट्वीट करने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार राज्य की संप्रभुता, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, स्वास्थ्य, नैतिकता आदि को सुरक्षित रखने के हित में उचित प्रतिबंधों के अधीन होता है। लेकिन सरकारी सेवा में रहने के दौरान सिविल सेवक कुछ अनुशासनात्मक नियमों के अधीन होता है। यह नियम सरकारी कर्मचारी को किसी राजनीतिक संगठन, या इस तरह के किसी भी संगठन का सदस्य बनने से रोकते है और यह देश के शासन से संबंधित किसी भी विषय पर इन्हे स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सीमित करते हैं। समय समय पर न्यायालय ने इन नियमों की प्रासंगिकता पर सवाल भी उठाए हैं और उम्मीद है कि जल्द ही इस पर कोई ठोस फैसला भी आयेगा।