आज की तारीख है 30 मार्च

एक बालक जो बचपन से ही  बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति का था ।  वे 5 वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहता था । उस बालक के पिता और बड़े भाई राम राय उस बालक की  कठीन से कठीन परीक्षा लेते रहते थे। जब वह  बालक  गुरुबाणी पाठ कर रहा  होता था तो वे उन्हें सुई चुभाते, लेकिन वह बालक  गुरुबाणी में ही रमा रहता इतनी भक्ति में लीन देख कर उनके पिता ने उनको  हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661(इकसठ) में गुरुगद्दी सौंपी। उस समय उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी इसीलिए उन्हें बाल गुरु भी कहा जाता है।वह बालक कोई और नहीं सिखों के 8वें गुरु गुरु हरकिशन साहिब जी थे | गुरु हर किशन जी ने अपने जीवन काल में मात्र तीन वर्ष तक ही सिखों का नेतृत्व किया।


गुरु हरकिशन साहिब सिखों के 8वें गुरु थे, उनका जन्म 7 जुलाई 1656  को कीरतपुर साहिब में हुआ था । वे गुरु हर राय साहिब जी और माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरु हरकिशन के बड़े भाई थे। 8 साल की छोटी सी आयु में गुरु हरकिशन साहिब को गुरुपद प्रदान किया गया था, इस बात से ही नाराज होकर राम राय ने औरंगजेब से इस बात की शिकायत की थी। राम राय का व्यवहार अच्छा नहीं था, जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया , इसी बात से वो अपने छोटे भाई हरकिशन से नाराज रहते थे।


मुगल बादशाह औरंगजेब को जब सिखों के नए गुरु को गुरु  गद्दी पर बैठने और थोड़े ही समय में इतनी प्रसिद्धी पाने की खबर मिली तो वह ईर्ष्या से जल-भुन गया और उसके मन में सबसे कम उम्र के सिख गरू को मिलने का इच्छा प्रकट हुई। वह देखना चाहता था कि अकहिर इस गुरु में क्या बात है जो लोग इनके दीवाने हो रहे हैं..मुगल बादशाह ने गुरु हरकिशन को अपने दरबार में आने के लिए आमंत्रित किया। गुरु जी भली-भांति समझ गए थे कि यह मुगल बादशाह की चाल है। इससे पहले भी बड़े भाई को उसने अपनी चाल में फंसाकर सिख धर्म से बेदखल करवा दिया। लेकिन गुरु जी ने जाने से इनकार नहीं किया और वे दिल्ली की ओर रवाना हो गए |


दिल्ली में वे राजा जय सिंह के महल पहुंचे। सिख इतिहास के मुताबिक यह वही महल है जिसे आज के समय में 'गुरुद्वारा बंगला साहिब' के नाम से जाना  जाता है। दिल्ली पहुंचकर गुरु हरकिशन बादशाह औरंगजेब से मिले। औरंगजेब के दरबार में वे जैसे ही पहुंचे, कपटी बादशाह ने उनके सामने दो बड़े थाल रखवाए, एक में महंगे वस्त्र और हीरे-जवाहरात थे और दूसरे मने कटे-फटे किसी गरीब के वस्त्र | गुरु जी ने गरीब के वस्त्र वाले थाल को चुना। गुरु हरकिशन का यह स्वभाव देख मुगल बादशाह दंग रह गया। गुरु हरकिशन वहां से लौट आए लेकिन बादशाह ने उन्हें फिर से आमंत्रित करना चाहा। अब गुरु हरकिशन समझ चुके थे कि बादशाह सिर्फ और सिर्फ उन्हें और सिख धर्म को बेइज्जत करने के मकसद से उन्हें बार-बार आमंत्रित कर रहा है। इस बार उन्होंने जाने से इनकार कर दिया और कहा कि भविष्य में भी वे कभी बादशाह से मिलना नहीं चाहेंगे जिस समय गुरु जी दिल्ली में थे, उस समय वहां 'चेचक' की महामारी चल रही थी। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील था। जात-पात और ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरु साहिब ने सभी पीड़ित जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें 'बाला पीर' कहकर पुकारने लगे।


जनभावना एवं परिस्थितियों को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें नहीं छेड़ सका। दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरु साहब खुद भी बीमारी की चपेट में आ गए लेकिन जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होंने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अंत अब निकट है। जब लोगों ने कहा कि अब गुरु गद्दी पर कौन बैठेगा तो उन्हें अपने उत्तराधिकारी के लिए केवल 'बाबा- बकाला' का नाम लिया, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। जो आगे चलकर गुरू तेजबहादुर सिंह के रूप में सही साबित हुआ।


अपने अंत समय में गुरु हरकिशन साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर रोयेगा नहीं और इसके बाद उन्होंने आज के ही दिन 30 मार्च, 1664(चौंसठ) को अपना शरीर त्याग दिया और अकाल पुरख की गोद में जा बैठे।


आज के ही दिन साल 1919 में  महात्मा गांधी ने रॉलेक्ट एक्ट के विरोध की घोषणा की।


साथ ही साल 1997(सत्तानबे)में  कांग्रेस ने 10 महीने पुरानी केंद्र की एचडी देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लिया। 

साल में 2002 में  ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ-II की मां  का 101 साल की उम्र में निधन हो गया। 

वही साल 2003: लंदन में श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा संगत के लिए खोला गया। 

साल 2006 में  ब्रिटेन में आतंकवाद निरोधक कानून लागू हुआ।