UPSC हिंदी माध्यम में CONTENT की कमी है या INTENT की ?
हिन्दी भले ही हमारे देश की राष्ट्रभाषा है और यह देश में करोड़ो लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है लेकिन फिर भी यूपीएससी के सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी माध्यम के छात्रों की कम संख्या aspirants के लिए एक चिंता का विषय तो रहती ही है। अब इस परिस्थिति के लिए कई बार लोग अपने पाने तर्क गढ़ते रहते हैं, कोई कहता है कि यूपीएससी non English medium students के प्रति पक्षपात रवैया रखता है तो कोई कहता है कि हिन्दी मीडियम में अच्छे स्टैंडर्ड मटिरियल की कमी है तो कोई तो यहाँ तक कह देता है कि हिन्दी मीडियम के स्टूडेंस में खुद ही यूपीएससी crack करने की zeal नहीं होती। ऐसी ढेर सारी अफवाहों के बीच में सच्चाई कहीं खो जाती है और आज के वीडियो में हम वही सच्चाई आपके सामने रखने वाले हैं। तो बने रहिए हमारे साथ।
सिविल सर्विस परीक्षा के आंकड़े हिंदी के कमजोर होते ट्रेंड की बात को साबित करती है। साल 2000 में यूपीएससी की सिविल सर्विस पास करने वाले टॉप 10 स्टूडेंट में छठवें और सातवें स्थान पर हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी रहे। अगले कुछ सालों तक यह ट्रेंड रहा। लेकिन 2017 में हिंदी माध्यम से टॉपर का पूरे परिणाम में 146 वां 2018 में 337,2019 में 317,2020 में 246 वां रैंक रहा। जो हिंदी के गुम होते आंकड़े बताते हैं।
हालांकि यह भी तथ्य है कि 1978 तक सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी मीडियम से परीक्षा देने का विकल्प नहीं था। तब मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार ने परीक्षा में रिफॉर्म किया और सभी को समान रूप से मौका मिला। इसके लिए अंग्रेजी के अलावा कई भाषा में परीक्षा देने का विकल्प दिया गया। इसके कुछ सालों बाद से हिंदी ने अपनी पैठ बनानी शुरू की थी और अगले 30 साल में लगभग 6000 सिविल सर्विस अधिकारी हिंदी मीडियम से चुन कर आए, जिनमें कई टॉप दस में भी जगह नियमित रूप से पाते थे।
हिंदी में स्टूडेंट की कमी का दौर 2010 के बाद तेजी से शुरू हुआ। उस साल एक बार फिर परीक्षा में रिफॉर्म के नाम पर कुछ साल पहले सिविल सर्विस परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में सीसैट पेपर को लेकर छात्रों का उग्र आंदोलन हुआ था। इसमें आरोप लगा था कि हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं के स्टूडेंट को बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। यह आंदोलन दो सालों तक चलता रहा और अंततः सरकार को छात्रों की मांग माननी ही पड़ी। लेकिन इसके बावजूद हिन्दी माध्यम के छात्रों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। experts के अनुसार IAS एग्जाम की तैयारी करने वाले हिंदी मीडियम बैकग्राउंड के ज्यादातर छात्रों को उस लेवल की कोचिंग या ट्रेनिंग फैसिलिटी नहीं मिल पाती है, जो अंग्रेजी मीडियम से तैयारी करने वाले कैंडिडेट्स के पास होती है। हिंदी मीडियम के जो छात्र आईएएस की तैयारी करते हैं, उनमें गांव-देहात से आने वाले भी बड़ी संख्या में होते हैं और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति भी एक कारण होती है। बड़े-बड़े कोचिंग में उनके लिए भारी-भरकम फीस देना मुश्किल होता है। दूसरा दिल्ली जैसे शहर में सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का ही बोलबाला है, इसके अलावा हिन्दी माध्यम के छात्रों के पिछड़ने के और भी कई कारण हैं जैसे कि –
हिंदी के दुर्लभ शब्दों के बीच से बाहर निकल पाना प्रतिभागियों के लिए आसान नहीं।
हिंदी के प्रतिभागियों का मुकाबला ऐसे अभ्यर्थियों से होता है, जिसने टॉप 20 कॉलेज व यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है।
प्रतिभागी सिविल सेवा में चयनित होने के लिए कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं, लेकिन इनके भी शिक्षक लीक से नहीं हटते।
वह पढ़ाई सिविल सेवा के पाठ्यक्रम के इर्द-गिर्द करवाते हैं। जबकि परीक्षा में सवाल कई बार बाहर से आते हैं।
रैंकिंग सुधारने लिए करीब 50 फीसदी प्रतिभागी होते पूर्व चयनित, नए प्रतिभागियों की बढ़ती दिक्कत।
कोचिंग खत्म करके घर पर तैयारी करने वाले छात्र नहीं हो पाते अपडेट।
कई कोचिंग के 500 से अधिक के एक बैच में हर प्रतिभागी पर शिक्षक का नहीं रहता ध्यान जबकि इस परीक्षा के लिए एक-एक उम्मीदवार को तराशने की आवश्यकता होती है।
हालांकि अब यह स्थिति बदलने की पूरी संभावना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं में पढ़ाई को महत्व दिया जा रहा है। साथ ही गृह मंत्रालय भी सरकारी कामकाज में हिंदी को प्रमोट कर रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में इन दिनों राजभाषा समिति दौरा कर रही है और हिंदी में कामकाज की स्थिति का आकलन कर रही है।