आज की तारीख है 7 फरवरी,बात है साल 1921 की  डॉ. अंबेडकर ने लंदन से एक पत्र भेजा जिसमें लिखा था “गंगाधर बीमार है, यह जानकर दु:ख हुआ. स्वयं पर विश्वास रखो, चिंता करने से कुछ नहीं होगा | तुम्हारी पढ़ाई चल रही है, यह जानकर प्रसन्नता हुई | पैसों की व्यवस्था कर रहा हूँ | मैं भी यहाँ अन्न का मोहताज हूँ | तुम्हें भेजने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी कुछ न कुछ प्रबंध कर रहा हूँ | अगर कुछ समय लग जाए, या तुम्हारे पास के पैसे खत्म हो जाएँ तो अपने जेवर बेचकर घर-गृहस्थी चला लेना” | यह पत्र उन्होंने अपनी पत्नी रमाबाई को लिखा था | इसे पढ़ कर वह समझ गई थीं कि उनके पति देशहित के लिए जो कार्य कर रहे हैं उसमें उनका साथ रमाबाई को ही देना है | अन्य लोगों द्वारा रमाबाई को अपने पति को अमेरिका जाने से रोकने का सुझाव देने के बावजूद, डॉ. अम्बेडकर पर उनका अत्यधिक विश्वास ही था जिसने विदेश में अम्बेडकर जी की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए उनका समर्थन करते हुए दूसरों की टिप्पणियों और सुझावों का विरोध किया |


एक बहुत प्रचलित और पुरानी कहावत है कि ‘हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है.’ इस तथ्‍य को कई बार स्‍वीकारा जाता है मगर अकसर ही सफल व्‍यक्तियों के जीवन का कई बार सफलता का आधार बनी महिलाओं, खास कर उनकी जीवन संगीनी के योगदान को कम आँका जाता है | मगर हमारे समाज के आधार स्‍तंभ कहे जाने वाले मनीषियों ने खुल कर महिलाओं को अपनी सफलता का श्रेय दिया है | ऐसा ही एक उदाहरण हैं संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पत्‍नी रमाबाई का डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन में कदम कदम पर संघर्ष था और खुद बाबा साहेब के शब्‍दों में- “उनके साथ कष्ट भोगने में तत्पर अगर कोई था तो वह थी रमाबाई अम्बेडकर” | उनकी पत्‍नी जिन्‍हें डॉ. अम्बेडकर प्यार से 'रामू' बुलाते थे और अनुयायी समाज मातोश्री 


7 फ़रवरी 1898(अट्ठानबे) को जन्मी रमाबाई के पिता का नाम भीकू धात्रे और माता का नाम रुक्मिणी था | उनके पिता कुली का काम करते थे और अपने परिवार का पालन पोषण बड़ी मुश्किल से कर पाते थे | इसके अलावा रमाबाई के पिता दाभोल बंदरगाह से मछली की टोकरी को बाजार तक ढोकर परिवार की आजीविका चलाते थे | रमाबाई ने अपने माता-पिता को बहुत जल्द ही खो दिया था | इसके बाद उन्हें और उनके भाई-बहनों गोराबाई, मीराबाई और शंकर को उनके चाचा मुंबई लेकर आ गए और पालन पोषण किया | 9 वर्ष की उम्र में वर्ष 1906 में 14 वर्षीय भीमराव अंबेडकर से हुई थी | 9 वर्ष की उम्र से आरंभ हुआ संघर्ष में साझेदारी का यह सिलसिला रमाबाई की अंतिम सांस तक जारी रहा | बाबा साहेब ने भी अपने जीवन में रमाबाई के योगदान को बहुत महत्वपूर्ण माना है | अंबेडकर दम्‍पत्ति के जीवन की राह कभी आसान नहीं रही और रमाबाई ने हर संघर्ष में अपने पति डॉ. अंबेडकर का पूरा साथ दिया है | वे घर-घर जाकर गोबर के उपले बेच कर परिवार के पेट भरने का जतन करती तो दूसरों के घरों में काम कर बाबासाहेब की शिक्षा का खर्च जुटाने में मदद करती थीं |


अपनी पत्नी के इस साथ के बारे में डॉ. अंबेडकर ने ‘बहिष्कृत भारत’ के एक संपादकीय में बताया है | उन्होंने लिखा है कि 'जिंदगी के एक बड़े हिस्सें में गृहस्थी का सारा बोझ रमाबाई ने उठाया.' विदेश से वापसी के बाद भी जब डॉ. अंबेडकर सामाजिक उत्‍थान के कार्य में जुटे हुए थे तब उनके पास परिवार के लिए समय ही नहीं होता था तब रमाबाई ने ही पूरे परिवार का ख्‍याल रखा | जीवन के संघर्ष में उनके और बाबासाहेब के पांच बच्चों में से केवल एक यशवंत अंबेडकर ही जीवित रहें | ऐसी विकट परिस्थितियों में भी रमाबाई बाबा साहेब का संबल बन हमेशा खड़ी रहीं | असमानता, भेदभाव, छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के साथ उन्‍हें आर्थिक अभावों से भी दो-दो हाथ करने थे | बाबा साहेब जग सुधार में जुटे थे तो रमा बाई ने परिवार का मोर्चा संभाले रखा |


यही वजह थी की रमाबाई को लंबे समय तक भूखे या आधा पेट खाना खाकर जीना पड़ा था | फिर चार बच्चों की मृत्‍यु ने उन्हें तोड़ दिया | 1923 में भारत लौटने के बाद अंबेडकर दम्‍पत्ति के जीवन में कुछ सुख की छांह आई लेकिन तब बाबा साहेब की सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता बढ़ गई | उनके पास परिवार के लिए समय नहीं था मगर आर्थिक संघर्ष कुछ कम हो गया था | मगर, कठोर जीवन संषर्घ के चलते रमाबाई का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था | उपचार काम नहीं आ रहा था | मृत्यु से पहले करीब छह महीने तक वे बिस्तर पर रहीं |


रमाबाई की मृत्‍यु पर बाबा साहेब फुट फुट कर रोए थे | बीमारी से पूरी तरह टूट चुकी साहेब की रामू 27 मई 1935 को उन्हें सदा-सदा के लिए छोड़कर को चली गईं | रमाबाई की मृत्यु से एक रात पहले ही अंबेडकर लौटे थे | उनकी मृत्यु के समय उनकी शैय्या के पास बैठे थे | भारी दिल से, गंभीर मुद्रा, विचार और दुख से व्याकुल मन: स्थिति के साथ वे शवयात्रा के साथ धीमे-धीमे चल रहे थे | श्मशान यात्रा से लौटने पर वह दुख से व्याकुल होकर कमरे में अकेले पड़े रहे | एक सप्ताह तक छोटे बच्चे की भांति वे फूट-फूटकर रोते रहे थे |


बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1940  में प्रकाशित “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” नाम की अपनी पुस्तक में अपने जीवन पर रमाबाई के प्रभाव को स्वीकार किया था | उन्होंने अपनी पुस्तक 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' को अपनी प्यारी पत्नी रमाबाई को समर्पित किया | उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "मामूली भीमा से डॉ. अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को जाता है" |


दोस्तों आइए अब आखिर में जानते है देश और दुनिया की आज की तारीख यानि 7 फरवरी की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में :


1831: बेल्जियम में संविधान लागू हुआ। 

1856: नवाब वाजिद अली शाह को हराकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध पर कब्जा किया। 

1915: पहली बार चलती ट्रेन से भेजा गया वायरलेस मैसेज रेलवे स्टेशन को मिला। 

1940: ब्रिटेन में रेलवे का राष्ट्रीयकरण हुआ। 

1959: फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में नए संविधान की घोषणा की। 

1962: जर्मनी की एक कोयला खदान में विस्फोट से 298 मजदूरों की मौत हो गई। 

1983: कोलकाता में ईस्टर्न न्यूज एजेंसी की स्थापना हुई। 

2000: भारत और अमेरिका के बीच गठित संयुक्त आतंकवाद विरोधी दल की पहली बैठक वॉशिंगटन में शुरू हुई। 

2001: इजरायल के प्रधानमंत्री एहुद बराक चुनाव हारे, एरियल शेरोन नए प्रधानमंत्री बने। 

2009: पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को महाराष्ट्र के राज्यपाल एससी जमीर ने डी.लिट की उपाधि से नवाजा।