अली बंधु कौन थे और वह क्यों प्रसिद्ध है?

नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका प्रभात exam के यूट्यूब चैनल पर। जब देश अपनी आजादी के 75वें वर्ष में आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो इस अवसर पर हम आपके लिए लेकर आ रहे हैं आज़ादी के नायकों से जुड़ी खास सीरीज़ 'महानायक'। जहां आपको आज़ादी के सभी नायकों के बारे में, उनके आंदोलनों, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान व उनके जीवन से जुड़ी हुई सभी जानकारियां मिलेंगी। और ये जानकारियां और भी महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाती है क्योंकि हर साल इसमें से प्री व मेन्स की परीक्षाओं में लगातार सवाल पूछे जाते हैं। तो चलिए शुरू करते है आज का टॉपिक, जिसके महानायक है :-

अली बंधु कौन थे ?

  • यूं तो ये तीन भाई थे, परंतु सबसे बड़ा अधिक विख्यात नहीं हुआ। दूसरे और तीसरे मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली भारत के राजनीतिक क्षेत्र में अधिक प्रसिद्ध हुए। इनके पिता अब्दुल अली खां रामपुर राज्य में एक उच्च स्थान पर आसीन थे और इनके पितामह मुंशी अली बख्श उस राज्य के प्रसिद्ध कर्ता-धर्ताओं में थे जिन्हें अंग्रेजों की सहायता करने पर “खानबहादुर” की उपाधि भी मिली थी। कौन जानता था कि इनके पोतों को भारत सरकार से विद्रोह करने पर कारागार में डाला जाएगा।
  • मौलाना मोहम्मद अली ने 10 दिसंबर 1878 में जन्म लिया। अभी ये दो ही वर्ष के थे कि इनके पिता का साया इनके सिर से उठ गया। मौलाना शौकत अली की शिक्षा उस समय आरंभ हो चुकी थी। इनकी माता ने इनकी अच्छे से देख-रेख की और इनकी पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया। मौलाना शौकत अली ने “मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियंटल कालेज” अलीगढ़ से बी० ए पास किया और सरकारी नौकरी की। मौलाना मोहम्मद अली बी० ए० करके 1898 में इंगलिस्तान चले गए और 1902 में “आक्सफोर्ड” से अंग्रेजी की उच्चतम डिग्री लेकर भारत वापस आए। 
  • कुछ दिनों तक रामपुर रियासत में शिक्षा विभाग के अफसर के रूप में काम करते रहे और फिर रियासत बड़ौदा की सिविल सर्विस में सम्मिलित हो गए| जहां महाराजा बड़ौदा इनके काम से बहुत प्रसन्न थे परंतु मौलाना मोहम्मद अली एक देशी राज्य में बंधकर नहीं रहना चाहते थे। उन्होंने दो वर्ष की छुट्टी ली और कलकत्ता जाकर वहां से एक साप्ताहिक अंग्रेजी पत्र “कामरेड” निकाला। कई वर्षों तक यह परचा कलकत्ता से निकलता रहा फिर मौलाना मोहम्मद अली 1912 में दिल्ली चले आए। कारण यह था कि 1911 में जब किंग जार्ज पंचम ने अपनी घोषणा से कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बना लिया, तो 1912 में भारतीय शासन के सरकारी दफ्तर दिल्ली आ गए। मौलाना मोहम्मद अली ने भी यह समझा कि जैसे अब तक भारत की राजधानी कलकत्ता से यह पत्र निकला है, वैसे ही अब भारत की नई राजधानी दिल्ली से इस पत्र को निकाला जाए सन 1913 में मौलाना ने उर्दू दैनिक पत्र “हमदर्द” भी जारी कर दिया। इन दोनों पत्रों में मौलाना जहां एक ओर मुसलमानों के अधिकारों की हिमायत करते थे, वहां दूसरी ओर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रचार भी करते थे।
  • सन 1906 में जब “मुस्लिम लीग” की बुनियाद डाली गई तो मौलाना मोहम्मद अली भी उसके सदस्यों में थे और उन्हीं के प्रयत्न से 1913 में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव स्वीकृत किया कि मुसलमान भी अपने देश को स्वराज्य दिलाने के दिए दूसरे संप्रदायों की भांति तत्पर हों| मौलाना मोहम्मद अली की भाषा अंग्रेजी में इतनी ओजस्वी होती थी कि उनके विरोधी अंग्रेज भी इस पत्र को बड़े चाव से पढ़ा करते थे।  इसी प्रकार उर्दू में भी “हमदर्द” की भाषा बड़ी टकसाली होती थी और सच तो यह है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के पत्र “अलहिलाल” के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध उर्दू साप्ताहिक पत्र “हमदर्द” ही समझा जाता था क्योंकि 1912 में मौलाना सज्जाद हुसैन के मर जाने के बाद “अवध पंच” की पहले जैसी प्रतिष्ठा न रही। इसी बीच तुर्की और वालकन देशों में लड़ाई छिड़ गई। 
  • डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी और मौलाना मोहम्मद अली ने मिल कर एक “रेड क्रास मिशन” स्थापित किया जो अपनी सेवाएं पेश करने तुर्की गया। मौलाना मोहम्मद अली की कविता भी कभी-कभी उनके पत्र में निकलती थी। वे मुशायरों के शायर न थे परंतु उनकी कविता में बहुत ओज और बड़ा लालित्य होता था। कहीं राजनीतिक इशारे भी होते थे। कविता में उनका उपनाम “जौहर” था। “कलामे जौहर” के नाम से उनकी कविता का संग्रह उनके जीवन में ही प्रकाशित हो चुका था।
  • सन 1914 में पहला महायुद्ध आरंभ हुआ। संसार की लड़ने वाली शक्तियां दो दलों में बंट गई। अंग्रेज और तुर्क विरोधी दलों में थे। भारत में मुसलमान बड़े असमंजस में थे एक ओर वे तुर्की को मुस्लिम देश के नाते उसके साथ सहानुभूति रखते थे और दूसरी ओर वे एक ऐसे देश भारत में रहते थे जिस पर अंग्रेजों का अधिकार था। मौलाना मोहम्मद अली ने 16 सितंबर 1914 को कामरेड समाचार पत्र में एक लेख लिखा, जिससे अंग्रेज सरकार घबरा उठी और उसको इस लेख में विद्रोह के अंकुर दिखे, इसलिए “हमदर्द” और “कामरेड” दोनों पत्रों की जमानत जब्त कर ली गई।
  • सन 1915 में मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली नजरबंद कर दिए गए और उनको छिंदवाड़ा में रखा गया। मौलाना शौकत अली सरकारी नौकरी में थे, परंतु वे भी अपने भाई के साथ सहमत थे और दोनों की विचारधारा एक-सी ही थी। जब तक प्रथम महायुद्ध चलता रहा, दोनों भाई नजरबंद रहे। जब 1918 में यह युद्ध समाप्त हुआ तो 1919 में दोनों भाइयों को छोड़ दिया गया।
  • सन 1919 भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी साल महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन चलाया था। उसी वर्ष रोलेट बिल पास हुआ था। दिल्ली में 30 मार्च, 1919 को स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में जो जुलूस निकला उस पर गोली चली और बहुत से लोग हताहत हुए। शीघ्र ही 13 अप्रैल 1919 को “जलियांवाला बाग” में हत्याकांड हुआ, जो भारत के इस शताब्दी के इतिहास में प्रसिद्ध है। यह कांड चूंकि अमृतसर में हुआ था इसलिए कांग्रेस ने अमृतसर में ही अपना वार्षिक अधिवेशन रखा जिसकी अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरू ने की और स्वागताध्यक्ष स्वामी श्रद्धानंदजी थे| अली बंधु रिहाई के बाद सीधे अमृतसर पहुंचे और कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सम्मिलित हुए, जहां उनका स्वागत किया गया| मौलाना मोहम्मद अली ने सर माईकल ओ डायर, गवर्नर पंजाब को वापसी का प्रस्ताव पेश किया। सर माईकल ओ डायर ही के इशारों पर पंजाब में यह हत्याकांड हुआ था और उसके बाद महात्मा गांधी और हिंदुस्तानी स्त्री-पुरुषों की बेइज्जती की गई। 
  • आखिर कई वर्षों बाद माईकल ओ डायर रिटायर हो गए। इंगलिस्तान में एक हिंदुस्तानी ने उन्हें मार डाला। अलीबंधु अमृतसर में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में भी सम्मिलित हुए क्योंकि 1920 तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ ही साथ हुआ करते थे और बहुत से मुसलमान दोनों ही संस्थाओं के सदस्य थे| जब कांग्रेस ने ‘असहयोग आंदोलन’ को अपनाया तब से मुस्लिम लीग के अधिवेशन कांग्रेस से अलग दूसरी जगहों पर होने लगे थे।
  • इन्हीं दिनों एक ‘खिलाफत कमेटी’ भी बनी थी जिसका उद्देश्य था कि तुर्की के खलीफा के मामले में अंग्रेज हस्ताक्षेप न करें। बरतानिया के प्रधानमंत्री लायड जार्ज ने इस संबंध में जो वक्तव्य निकाला, उससे मुसलमानों में बहुत खलबली मच गई। महात्मा गांधी भी खिलाफत आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उस समय भारत की राजनीति में महात्मा गांधी, मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली को त्रिमूर्ति समझा जाता था जैसे पहले बाल-पाल-लाल अर्थात बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल और लाला लाजपतराय को त्रिमूर्ति माना करते थे। अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का एक डेलीगेशन मार्च 1920 में इंगलिस्तान गया, उसमें अली बन्धु भी थे यह डेलीगेशन वहां से असफल ही वापस आया, क्योंकि अंग्रेजी सरकार अपनी नीति तुर्की के बारे में तय कर चुकी थी और उसमें कोई परिवर्तन करने को तैयार न थी। 
  • अली बंधुओं के वापस आने पर महात्मा गांधी से उनकी बातचीत हुई और पहले खिलाफत कमेटी को और उसके बाद कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन को अपनाया जिसमें सरकारी नौकरी, सरकारी ओहदे, सरकारी स्कूल और कालेजों और सरकारी कचहरियों के बहिष्कार के लिए कहा गया था, साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता निवारण और नशाबंदी उसके रचनात्मक अंग थे। यह प्रस्ताव कलकत्ते के अधिवेशन में लाला लाजपतराय की प्रधानता में पास हुआ। महात्मा गांधी ने प्रस्ताव पेश किया था और मौलाना मोहम्मद अली ने उसका समर्थन किया। उस समय तक मिस्टर जिन्ना कांग्रेस में थे, परंतु उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।

  • एक विशेष बात यह थी कि खिलाफत कमेटी के अधिवेशन में असहयोग आंदोलन को स्वीकृत करते हुए महात्मा गांधी को नेता माना गया था, उस समय देश के हिंदू-मुसलमानों में बड़ी एकता दिखाई देती थी। महात्मा गांधी की जय और मोहम्मद अली, शौकत अली की जय के नारे साथ-साथ लगते थे अली बंधुओं ने इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद तमाम देश का भ्रमण किया। कभी-कभी गांधी जी भी इनके साथ होते थे और वह दृश्य देखने का होता था, जब ये दोनों भारी भरकम भाई बीच में गांधी जी को लिए हुए भीड़ से उन्हें बचाते हुए ले चलते थे | 1921 में जब अहमदाबाद में हकीम अजमल खां की प्रधानता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ तो असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। वहां असहयोग के प्रस्ताव पर बोलते हुए मोहम्मद अली ने यह कहा था कि - “दिल्ली में सात सल्तनतों की कब्र बन चुकी है और अब आठवीं बनने वाली है।“ उनके ये शब्द पच्चीस वर्ष बाद सत्य साबित हुए।
  • 1924 में सीमा प्रांत के कोहाट नगर में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया| मौलाना शौकत अली भी इसकी जांच में थे और महात्मा गांधी भी दुर्भाग्यवश दंगे के कारणों पर दोनों की रिपोर्ट अलग-अलग थी। अली बंधुओं और महात्मा गांधी में मतभेद रहने लगा धीरे-धीरे अली बंधुओं की दिलचस्पी कांग्रेस से कम होने लगी, परंतु जब 1927 में साइमन कमीशन बनाया गया, तो मद्रास में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में जो डाक्टर अंसारी की प्रधानता में हुआ, मौलाना मोहम्मद अली ने अन्य नेताओं की तरह इसका घोर विरोध किया और कहा कि हम भारतवासियों को अपने भाग-विधाता आप होना चाहिए। परंतु 1927 में जब नेहरू कमेटी की रिपोर्ट निकली तो मौलाना शौकत अली ने जो भारत में थे और मौलाना मोहम्मद अली ने जो विदेश यात्रा पर गए थे। दोनों ने इसका विरोध किया और 1929 में अली बंधु कांग्रेस से अलग हो गए|
  • सन 1930 में जब भारत के बड़े-बड़े नेता नमक सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल में थे, तो मि रेमजे मैकडानल्ड, प्रधानमंत्री ब्रिटिश राज्य ने, भारत की समस्याएं सुलझाने के लिए एक “गोलमेज कांफ्रेंस” को जिसमें मौलाना मोहम्मद अली रोग पीड़ित होते हुए भी सम्मिलित हुए। वहां उन्होंने कहा कि या तो मैं अपने देश के लिए स्वराज्य लेकर जाऊंगा या अपने प्राण देकर जाऊंगा। मैं ऐसा राज्य चाहता हूं, जिसमें मैं लार्ड रीडिंग को भी अपने देश में गिरफ्तार कर सकूं। मौलाना के ये अंतिम शब्द थे। इसी के बाद दूसरे दिन उनके दिमाग की नस फट गई और 4 जनवरी सन 1931 को विलायत में ही उनका देहांत हो गया। उनका शव वहां से हवाई जहाज़ द्वारा लाकर अरब में दफनाया गया।
  • मौलाना शौकत अली ने, जो मोहम्मद अली के बड़े भाई थे, मोहम्मद अली की अंग्रेज स्टेनो से विवाह कर लिया और वह मिस्टर जिन्ना के दल मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गए और कांग्रेस तथा कांग्रेसी नेताओं के विरुद्ध भाषण देने लगे। सन 1937 में जब हाफिज मोहम्मद इब्राहीम कांग्रेस के टिकट पर बिजनौर के हलके से चुनाव लड़ने के लिए खड़े हुए तो मौलाना शौकत अली ने उनका भरपूर विरोध किया। उस समय मुस्लिम लीग का बहुत जोर बंध चुका था और लखनऊ के वार्षिक अधिवेशन में लीग ने कांग्रेस पर बहुत से आरोप लगाए थे और मुसलमानों को इससे अलग रहने और विरोध करने का सुझाव दिया था। परंतु हाफिज मोहम्मद इब्राहीम अपने हलके में इतने लोकप्रिय थे कि मुस्लिम लीग के उम्मीदवार को हराने में सफल हो गए।
  • इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली में मौलाना शौकत अली का देहांत हो गया। चाहे अली बंधुओं ने कांग्रेस का साथ दिया था या उसका विरोध किया, परंतु भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जो कठिनाइयां सहीं, उनके कारण उनका नाम भारत के इतिहास में अमर रहेगा, विशेषकर मौलाना मोहम्मद अली का जो प्रथम श्रेणी के पत्रकार, कवि, वक्ता और कर्मशील मनुष्यों मे से थे।
अगर आपको हमारा यह video पसंद आया हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरूर Share करें, और अगर आपके पास हमारे लिए कोई सवाल है, तो उसे Comment में लिखकर हमें बताएँ। जल्द ही आपसे फिर मुलाकात होगी एक नए topic पर एक नए video के साथ। 

देखते रहिए 
Prabhat Exam
नमस्कार

Connect Us:  Youtube   Twitter   Telegram     Facebook     Instagram     Whatsapp 

You Can Buy Our Books online or call us- Whatsapp

👉 UPSC Books : https://amz.run/5Qxh

👉 GENERAL KNOWLEDGE Books : https://amz.run/5Qz2

👉 OTHER GOVERNMENT EXAMS : https://amz.run/5Qz

👉 IIT JEE & NEET AND ALL OTHER ENGINEERING & MEDICAL ENTRANCES : https://amz.run/5Qz6

👉 SSC Examination Books : https://amz.run/5Qz7

👉 DSSB Books : https://amz.run/5Qz9

👉 BANKING/INSURANCE EXAMS : https://amz.run/5QzC

👉 RRB, RRC, RPF/RPSF, NTPC & LEVEL-1 : https://amz.run/5QzF

👉 UGC BOOKS : https://amz.run/5QzH

👉 NVS BOOKS : https://amz.run/5QzJ

👉 BIHAR BOOKS : https://amz.run/5QzK

👉 *Rajasthan Books : https://amz.run/5QzP

👉 MADHYA PRADESH : https://amz.run/5QzR

👉 UTTAR PRADESH  :https://amz.run/5RAa