रतन टाटा
रतन नवल टाटा—टाटा समूह के वर्तमान अध्यक्ष हैं, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह है, जिसकी स्थापना जमशेदजी टाटा ने की और उनके परिवार की पीढ़ियों ने इसका विस्तार किया और इसे सुदृढ़ बनाया।
1. रिश्ते ही व्यापार हैं
“साख बनाने में बीस साल लगते हैं और नष्ट होने में 5 मिनट। इस पर विचार करने पर आप चीजों को अलग तरह से करेंगे।”—वाॅरेन बफेट
व्यापार किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं है, यह टीम वर्क है। एक नेटवर्क है। इस प्रकार जहाँ एक से अधिक व्यक्ति साथ आते हैं, वहाँ उनके आपसी रिश्ते पर विचार करना ही चाहिए। किसी भी सामूहिक प्रक्रिया की परिभाषा बहुत से लोगों के साथ रिश्ता स्थापित करना और सभी को एक उद्देश्य की दिशा में प्रोत्साहित करना है। किसी भी व्यापार में इन रिश्तों का निर्णायक महत्त्व है। ‘प्रत्येक कर्मचारी के लिए स्नेह’ किर्लोस्कर ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का विशिष्ट पहलू है, जो एक आदर्श दिग्गज उद्योगपति स्वर्गीय शांतनु राव ने सुनिश्चित किया था। वह किर्लोस्कर ग्रुप के कर्मचारियों को अपना परिवार मानते थे। एक बार उनके स्वामित्व काल में चावल बहुत महँगे हो गए। उनका ध्यान इस ओर गया कि चावल की कीमत काफी बढ़ गई है। वह सोचकर उदास हो गए, क्योंकि कर्मचारियों के लिए इसे खरीदना कितना महँगा होगा! तभी उनके मन में विचार आया कि यदि थोक बाजार से चावल खरीदकर अपने कर्मचारियों को कम दाम पर दें तो कैसा रहेगा? उन्होंने तुरंत ही अपने अधिकारियों से इस बारे में बात की—और योजना चालू कर दी। ग्रुप के कर्मचारियों को चावल कम दाम पर मिलने लगा। ऐसी छोटी-छोटी बातों से रिश्ते बनते हैं।
रतन टाटा के अपने कर्मचारियों के साथ ऐसे ही रिश्ते हैं। वे अपनी सेवानिवृत्ति से पूर्व पुणे स्थित टेल्को (TELCO) कंपनी आए थे। विदाई समारोह के पश्चात् एक सामूहिक भोज का आयोजन किया गया था। रतन टाटा ने अपना भोजन कर्मचारियों की आम कैंटीन में कर्मचारियों के साथ पंक्ति में बैठकर किया। उन्होंने खुलकर हँसी-ठिठोली की।
किसी भी कंपनी का उत्पाद चाहे कितना भी अच्छा हो, तो भी जनता के मन में उसकी छाप छोड़ने और ब्रांड की छवि बनाने के लिए जन-संपर्क आवश्यक होता है। व्यापारी क्षेत्र में लोग ही व्यापार हैं, यह बात अकसर कही जाती है। इसी तरह, यह भी कहा जाता है कि रिश्ते ही व्यापार हैं। आखिरकार, प्रत्येक व्यापार सिर्फ लोगों के लिए ही होता है। यह व्यक्ति सहयोगी, कर्मचारी, निवेशक, ग्राहक कोई भी हो सकता है।
2. विश्वास किसी भी बिजनेस की पहली सीढ़ी है
90 प्रतिशत स्टार्टअप पाँच साल के अंदर फेल हो जाते हैं। दस साल में 5 प्रतिशत से कम बिजनेस टिके रह पाते हैं। बहुत कम बिजनेस होते हैं, जो बिजनेस में टिके रहने के सौ साल जैसे मील के पत्थर को कायम रख पाते हैं। 0.01 प्रतिशत कंपनियाँ ऐसी होती हैं, जो 100 साल तक किसी बिजनेस में टिकी रह पाती हैं। अगर हम टाटा की बात करें तो टाटा उन सुपर स्पेशल कंपनियों में से है, जो डेढ़ सौ साल से आज तक टिकी हुई है और बस, टिकी ही नहीं है, बल्कि इतना अच्छा परफॉर्म कर रही है कि आज टाटा ग्रुप सौ से भी ज्यादा कंपनियों को अपने अंदर चलाती है। दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में उनके उत्पाद और सर्विस इस्तेमाल होते हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कंपनी में आती हैं—टाटा स्टील, टाटा स्काई, टी.सी.एस., टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाइटन, ताज होटल ग्रुप, लैक्मे आदि। वर्ष 2018 के डाटा के हिसाब से उनकी 29 पब्लिक लिस्टेड इंटरप्राइजेज का व्यापार 150 अरब डॉलर था, जिनकी हंड्रेड प्रतिशत billion-dollar में से 60 प्रतिशत इनकम बाहर के देशों से थी, जैसे इंग्लैंड और अमेरिका। टाटा ग्रुप कंपनी वर्ल्ड की सातवीं बड़ी कंपनी है कर्मचारी के मामले में, जिसमें 6,95,000 लोग काम करते हैं। मोस्ट रेप बेसल कंपनी ग्यारहवीं पोजीशन पर है। एक सर्वे में टाटा मोस्ट वैल्युएबल कंपनी में चौंतीसवें नंबर पर आई थी। इस सारी सफलता का क्रेडिट जाता है टाटा ग्रुप के लीडर्स को। जमशेदजी टाटा से लेकर रतनजी टाटा तक जैसे ग्रेट लीडर्स ने ही टाटा ग्रुप को लीड किया है। कुछ खास सिद्धांत, नियम और विजडम को कायम रखते हुए आज इसने खुद को पूरे वर्ल्ड की सबसे मूल्यवान् ब्रांड में से एक बना दिया है।
हमें उनसे सीखना चाहिए। रतन टाटा के बिजनेस जीवन के नियम, जिनकी सहायता से उन्होंने महान् सफलता पाई। उन्होंने अपने 21 साल के कॅरियर में 50 प्रतिशत प्रॉफिट बढ़ाया और 40 प्रतिशत राजस्व बढ़ाया। ऐसी कई चीजें हैं, जो रतन टाटा की लीडरशिप में हुईं।
जब एक इंटरव्यू में रतन टाटा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ट्रस्ट मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज है। ग्राहकों का, कर्मचारियों का और शेयरधारकों का विश्वास ही मेरे लिए सबसे पहले आता है। विश्वास एक ऐसा फाउंडेशन होता है, जिसके ऊपर कोई भी बिजनेस खड़ा किया जाता है। कुछ लोग छोटे फायदे के लिए विश्वास तोड़ देते हैं; लेकिन विश्वास टूटने से बड़े नुकसान होते हैं। विश्वास ही एक ऐसी चीज है, जिसने टाटा को इस बुलंदी पर पहुँचाया है और एक मजबूत चट्टान की तरह से खड़ा किया है।
“कोई लोहे को नष्ट नहीं कर सकता, लेकिन उसकी अपनी जंग कर सकती है। उसी तरह कोई किसी इनसान को बरबाद नहीं कर सकता, लेकिन उसकी अपनी मानसिकता ऐसा कर सकती है।”
3. नकारात्मकता हमारी असफलता का कारण बनती है
जीवन उतार-चढ़ावों से भरा है, इसकी आदत बना लो, क्योंकि आपके आसपास कोई आपके स्वाभिमान की परवाह नहीं करता। इसलिए पहले खुद को साबित करके दिखाओ। दुनिया चमत्कार को ही नमस्कार करती है। शिक्षा हमारे सामने तरक्की के मार्ग ही नहीं खोलती, हमारे व्यक्तित्व को भी बेहतर बनाती है। यह भी सच है। हम एक के बाद एक पड़ाव चढ़ते हैं। पढ़ाई करने के बाद 5 आँकड़े की सैलरी वाली नौकरी के सपने मत देखो। रातोरात किसी कंपनी का प्रेसीडेंट बनना नामुमकिन है। मेहनत करो और सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ो। ऐसा अकसर होता है कि हमें वर्तमान में अपने शिक्षक डरावने लगते हैं, क्योंकि अभी तक आपका सामना बॉस रूपी प्राणी से नहीं हुआ है। तुम्हारी गलती और पराजय सिर्फ तुम्हारी है, इसके लिए किसी को दोष मत दो। इससे सीखो और भविष्य में इससे बचो। सांत्वना पुरस्कार सिर्फ स्कूल में मिलता है, कुछ स्कूलों में अभी भी पास होने तक परीक्षा देने का प्रावधान है, लेकिन बाहर की दुनिया अलग है। यहाँ हारनेवाले को मौका नहीं मिलता। जीवन के स्कूल में कक्षाएँ और वर्ग नहीं होते और न ही महीने भर की छुिट्टयाँ होती हैं। आपको सिखाने के लिए कोई अपना वक्त नहीं देगा। यह सब स्वयं सीखने की काबिलियत रखो। कुछ ऐसे पल होंगे, जहाँ आपके शिक्षक नहीं होंगे, जहाँ आपके माता-पिता नहीं होंगे। सिनेमा देखना हमें अच्छा लगता है, वह हमें अपनी ओर आकर्षित करता है; लेकिन टी.वी. का जीवन सत्य नहीं है और वास्तविक जीवन इस वास्तविक से बहुत भिन्न है। यहाँ आराम नहीं मिलता, सिर्फ काम ही होता है। मेहनत करो, पढ़ो और आगे बढ़ो। पढ़ने की इससे बेहतर उम्र नहीं मिल सकती। लगातार पढ़ाई और मेहनत करनेवाले अपने मित्र को हँसी का पात्र मानकर उसका मजाक मत उड़ाओ। एक दिन ऐसा आएगा, जब तुम्हें उसके नीचे काम करना पड़ेगा। पेड़ काटने के पूर्व कुल्हाड़ी की धार देखने की आवश्यकता होती है, इसलिए जब आपको आठ घंटे में पेड़ काटना हो तो छह घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाने पर सफलता प्राप्त होने के अवसर कई गुना बढ़ जाते हैं।
4. अपने निर्णय को सही साबित करने की क्षमता रखिए
जब टाटा ने जे.एल.आर. को खरीदा तो उसे 1,800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इससे टाटा मोटर्स को 2,500 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। तब उसकी मार्केट वैल्यू 6,500 करोड़ रुपए रह गई थी। टाटा के इस फैसले को पूरी दुनिया ने गलत बताया था कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है जैगुआर और लैंड रोवर को खरीदकर, लेकिन रतन टाटा ने यह साबित किया कि आत्म-सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं होता। दरअसल, इसके तार एक बहुत पहले के घाव से जुड़े हुए थे।
देश के निम्न वर्गीय परिवारों के लिए कार खरीदने का सपना पूरा करनेवाले टाटा ने सन् 1998 में पहली बार पैसेंजर कार सेगमेंट में टाटा इंडिका को बाजार में उतारा था। 1999 में टाटा को इंडिका कार लाए हुए एक साल होने वाला था। 1998 में यह कार लॉञ्च हुई थी। यह हैचबैक कार थी। हालाँकि इसके लॉञ्च के एक साल में ही यह फ्लॉप हो गई, जिसके बाद टाटा को अपने फैसले को लेकर तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। कर्इ लोगों ने उन्हें यहाँ तक सलाह दे दी कि उन्हें पैसेंजर कार के बिजनेस को बंद कर देना चाहिए। वह खुद भी इस बात से सहमत हो गए और टाटा ने इसे बेचने का पूरा मन बना लिया था। मार्केट में यह बात गरम थी कि टाटा अपनी कार वेंचर बेचना चाहते हैं। जब यह बात फोर्ड को पता चली तो फोर्ड ने कार खरीदने का मन बना लिया। बात आगे बढ़ी और फोर्ड ने टाटा के सामने अपना प्रस्ताव रखा। बैठकों का दौर शुरू हुआ। पहली बैठक मुंबई में हुई और दूसरी अमेरिका में फोर्ड के हेडक्वार्टर डेट्रॉएट में।
शुरुआती विफलताओं के बाद टाटा पैसेंजर ने बहुत अच्छा और उम्मीद से बेहतर काम किया। ऐसे समय में फोर्ड का बिजनेस बहुत प्रभावित हुआ। उस घटना के नौ साल बाद वह मौका आया, जब सन् 2008 में फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुँच गई। अमेरिकी कार सेक्टर में उसकी हालत खराब थी। तब टाटा ग्रुप ने फोर्ड के सबसे बड़े ब्रांड्स में से जैगुआर और लैंडरोवर को खरीदने का फैसला किया।
5. हमें हमेशा सीखते और सुनते रहना चाहिए
मैंने अपनी कंपनी में इसे एक मुद्दा बना दिया है। हम छोटे कदम उठाना बंद करें और ग्लोबल सोच को विकसित करें; और यह वास्तव में मददगार प्रतीत हो रही है। लोगों की सेवा करने के लिए बिजनेस को अपनी कंपनी के हितों से ऊपर जाने की जरूरत है। मैं चाहता हूँ, मेरे पीछे नैतिकता और मूल्यों से युक्त अनुकरणीय तरीके से संचालित कंपनियों का एक सेट और उनकी एक स्थायी इकाई रहे। अब से सौ साल बाद मैं टाटा ग्रुप को जितना वह अब है, उससे कहीं बड़ा देखना चाहता हूँ। इससे भी जरूरी बात, मैं आशा करता हूँ कि ग्रुप को भारत में सर्वश्रेष्ठ माना जाए। जिस तरीके से हम Operate करते हैं, उसमें सर्वश्रेष्ठ। जो उत्पाद हम देते हैं, उसमें सर्वश्रेष्ठ और हमारे वैल्यू सिस्टम्स और एथिक्स में सर्वश्रेष्ठ। इतना कहने के बाद मैं आशा करता हूँ कि सौ साल बाद हम अपने पंख भारत से कहीं दूर तक फैला पाएँगे। इसके लिए आपको हर जगह सुनते रहना चाहिए और सीखते रहना चाहिए।
6. किसी के जैसा बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
वर्ष 2012 में रतन टाटा ने चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था और अपनी जगह साइरस मिस्त्री को दे दी थी। पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आपने साइरस मिस्त्री को कोई सलाह दी है? तो उन्होंने कहा, “नहीं, क्योंकि जब मैंने अपने कॅरियर की शुरुआत की थी तो लोगों ने मुझसे प्रश्न किया था कि आप जे.आर.डी. टाटा, अपने रोल मॉडल जैसा बनना चाहेंगे? उनके जैसा काम करेंगे? तो मैंने उत्तर दिया था—नहीं। मैं अपने मूल्यों और अपनी क्षमताओं के आधार पर काम करूँगा। मैं साइरस मिस्त्री से भी यही चाहता हूँ कि वह रतन टाटा बनने की कोशिश न करें। अपने मूल्यों और अपनी क्षमताओं के आधार पर अपनी पहचान बनाएँ और कंपनी को नए शिखर तक लेकर जाएँ।” रतन टाटा ने अपने जीवन काल में अनेक ऐसे काम किए, जिनसे उनके नाम को हमेशा सराहा गया। हर उद्योगपति उनके जैसा होना चाहता है, उनके जैसा बनना चाहता है। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि सफल व्यक्तियों के मार्ग पर चलकर हम सफल बन सकते हैं; लेकिन रतन टाटा इससे बिल्कुल अलग सोचते हैं।
हर व्यक्ति की अलग-अलग विशेषताएँ, अलग-अलग गुण और प्रतिभाएँ होती हैं। अगर हम उन प्रतिभाओं को किसी और के जैसा बनने में लगाएँगे तो हम अपनी प्रतिभा को कभी निखार नहीं पाएँगे और अपने मौलिक गुणों को खो देंगे। इसलिए हमें अपनी प्रतिभाओं को पहचानकर उनका भरपूर उपयोग करना चाहिए। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि लोगों ने अपनी प्रतिभा पर काम किया है और अपनी विशेषता के बल पर अपनी पहचान बनाई है। वह जीवन में अलग लक्ष्य स्थापित करने में कामयाब हुए हैं—राजनेता, उद्योगपति, समाजसेवी, साहित्यकार, खिलाड़ी, अभिनेता। हर अभिनेता एक ही डायलॉग को अलग-अलग तरीके से बोलता है और उसके बोलने के तरीके से उसकी अलग पहचान बनती है। चाहे वह अमिताभ बच्चन हों, दिलीप कुमार हों, शाहरुख खान या आमिर खान—सबकी अपनी पहचान है। सभी अभिनेता अपने कॅरियर में शिखर पर रहे हैं। जब हम मौलिक गुणों के साथ आगे बढ़ते हैं तो हम हमेशा कुछ नया और विशेष करते हैं। वही विशेषता हमारी पहचान बनती है और हमारी कामयाबी के रास्ते खोलती है। हम कह सकते हैं कि रतन टाटा ने अगर जे.आर.डी. टाटा बनने की कोशिश की होती तो शायद वह इतने कामयाब न हो पाते। उन्होंने खुद कहा था—
महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महान् साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर, महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजनम्, महान् समाजसेवी मदर टेरेसा, महान् उद्योगपति ‘भारत रत्न. जे.आर.डी. टाटा, मिसाइलमैन एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, दुग्ध क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन, मेट्रोमैन ई. श्रीधरन, विश्वविख्यात सितार वादक पं. रवि शंकर, महान् क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, महान् पार्श्व गायिका लता मंगेशकर जैसे जितने भी महान् व सफल व्यक्ति हुए, उनकी अपनी अलग मौलिक प्रतिभाएँ थीं, जिससे उन्होंने विश्व में अपनी पहचान बनाई।
7. सादगी भरे साधारण रतन टाटा
अक्तूबर 2016 में रतन टाटा ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में होनेवाले एक समारोह में गए थे। वहाँ उन्हें स्कूली बच्चों को संबोधित करना था। स्कूल की तरफ से मैनेजमेंट के कुछ लोग और उनके साथ एक बच्चा भी था, जो रतन टाटा को लेने के लिए स्कूल के स्टाफ के साथ एयरपोर्ट पर पहुँचा था। लड़के की आँखें चमक रही थीं उस नजारे को देखने के लिए, जब कोई बिजनेस आइकॉन किसी विमान से उतरता है तो कैसा लगता है! उसकी आँखों में हजारों सपने थे। सपनों में वह कभी खुद को वहाँ खड़ा पाता था। रतन टाटा उतरे, लोगों ने उनका सम्मान किया। लड़के ने इंतजार भरी आँखों से रतन टाटा के सामने िसर झुकाया, लेकिन वह बड़ी दुविधा में था। उसने बाद में बताया कि मुझे लगा था कि जब रतनजी विमान से उतरेंगे तो उनके साथ बहुत से बॉडीगार्ड होंगे, उनके सेक्रेटरीज की लाइन लगी होगी, आगे-पीछे लोगों का काफिला होगा। इतना बड़ा आदमी अकेले कैसे आ सकता है? लेकिन मैं हैरान रह गया। बहुत देर तक देखने के बाद भी उनके पीछे से कोई आता नहीं दिखाई दिया। वह बिल्कुल अकेले थे। न कोई बॉडीगार्ड, न कोई सेक्रेटरीज की लाइन, न कोई बाउंसर था, न ही उनके पास बैग्स थे, था तो बस एक छोटा सा जूट का बैग, जो उन्होंने मैनेजमेंट के लोगों को पकड़ा दिया था, जिसमें उनका जरूरी सामान था। उन्हें देखने के बाद वह लड़का शायद ही किसी और को अपना रोल मॉडल समझ पाए। सादगी भरे रतन टाटा उसके दिल पर हमेशा के लिए छाप छोड़ गए। बड़े हम अपने विचारों से बनते हैं, न कि अपने आसपास ऐसा माहौल बनाकर कि हम कितने बड़े हैं! रतन टाटा का 82 साल का जीवन ऐसे किस्सों से भरा हुआ है, जहाँ उन्होंने हमेशा ही अपनी सरलता और अपनी सादगी से लोगों का दिल जीत लिया था। यही कारण है कि वह अपने देशवासियों के दिलों पर राज करते हैं।
8. दरियादिली
26 मार्च, 2011 को मुंबई पर हमला हुआ और ताज होटल उसकी चपेट में आ गया। कई विदेशी पर्यटक मारे गए। एन.एस.जी. कमांडोज और पुलिस के सहयोग से ऑपरेशन खत्म कर आतंकवादियों को मार गिराया गया। होटल में जितने भी लोग घायल हुए थे, सबका इलाज टाटा ने कराया था। यही नहीं, घायल लोगों का हाल-चाल लेने के लिए वह स्वयं हॉस्पिटल भी गए थे।
होटल के आसपास ठेला लगानेवाले लोगों, जो उस हमले से प्रभावित हुए थे, में से कुछ के ठेले टूट गए थे गोलीबारी की वजह से। उन सबको टाटा की तरफ से मदद मिली। क्रॉस फायरिंग में एक ठेलेवाले की बच्ची भी घायल हुई थी। उसके शरीर में धँसी गोलियाँ निकालने का पूरा खर्च टाटा ने उठाया था। साथ ही, जितने दिन होटल बंद रहा, उतने दिनों तक होटल के सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया गया था। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए रतन टाटा ने 15,000 करोड़ रुपए का दान दिया।
9. सिर्फ काम को अहमियत दें
अधिकतर बड़े उद्योगपतियों में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की बहुत उत्सुकता होती है, क्योंकि उन्हें पैसा और पावर दोनों ही चीजें आकर्षित करती हैं। राजनीति हमारी पावर को थोड़ा और बढ़ाती है, लेकिन रतन टाटा ऐसा नहीं सोचते। वे कहते हैं, “मैं निश्चित रूप से राजनीति में नहीं शामिल होऊँगा। मैं एक साफ-सुथरे बिजनेसमैन के तौर पर याद किया जाना पसंद करूँगा, जिसने सतह के नीचे की गतिविधियों में हिस्सा न लिया हो और जो काफी सफल रहा हो। कोई भी काम सार्वजनिक जाँच की कसौटी पर खरा उतरता है तो उसे करो।” अगर वह सार्वजानिक जाँच की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो उसे मत करो। जीवन में केवल अच्छी शैक्षिक योग्यता या अच्छा कॅरियर ही काफी नहीं है, आपका लक्ष्य होना चाहिए कि एक संतुलित व सफल जिंदगी जी जाए। संतुलित जीवन का अर्थ है—आपका स्वास्थ्य, लोगों से अच्छे संबंध और मन की शांति; सबकुछ अच्छा होना चाहिए।