शिव खेड़ा अमेरिका में ‘क्वालिफाइड लर्निग सिस्टम इंक’ के संस्थापक हैं। वह प्रख्यात पुस्तक ‘जीत आपकी’ के लेखक हैं। वह एक प्रेरक वक्ता और महान् चिंतक भी हैं।
1. जीवन फैसले पर आधारित होता है
आपकी इच्छा है सफल होने की, आपका इरादा नहीं है। यही एक समस्या है, क्योंकि जिंदगी में इरादा और इच्छा में बहुत अंतर होता है। इच्छा का सौदा हो सकता है। जिंदगी में इरादे का सौदा नहीं होता। जिंदगी में जब भी दबाव पड़ता है, इच्छा हमेशा कमजोर पड़ जाती है, इरादा और मजबूत हो जाता है।
45 साल पुरानी बात है, पापा कोल माइंस में काम करते थे। वह बंद हो गई। हम सड़क पर आ गए। मेरे पिता की मृत्यु हो गई। तब मैं कॉलेज में था। मैंने निर्णय किया कि मैं इंडिया छोड़कर जाऊँगा। सन् 1975 में मैं टोरंटो गया, क्योंकि ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। घर-घर जाकर गाड़ियाँ साफ करता था और शाम को वैक्यूम क्लीनर बेचता था। मैंने एक विज्ञापन देखा, ‘पावर ऑफ सकारात्मक थिंकिंग’ के लेखक डॉ. पील वहाँ आ रहे हैं। वहाँ पर हजारों लोग थे। मैं भी वहीं बैठा था। डॉ. पील जब मंच पर आए, उनकी उम्र 85 साल से ऊपर होगी। कद 5 फीट 1 इंच होगा। जब वे मंच पर आए, जिस उत्साह से वह बोले, उस दिन मैंने कद की परिभाषा बदल दी। जिस उत्साह से उन्होंने नजर दौड़ाई, उसमें आत्मविश्वास के अंदर नम्रता थी, क्योंकि जिस आत्मविश्वास के साथ नम्रता नहीं होती, उसे अहंकार कहा जाता है।
उन्होंने आते ही सब को देखा और कहा, “आप इतने कूल और रिलेक्स बैठे हैं। लगता है, आप लोगों को कोई समस्या नहीं है। बताइए, किसी को कोई समस्या है? आप में से कितने लोग समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं?” हर किसी ने हाथ खड़ा कर दिया। बोले, “जब मैं यहाँ पर आ रहा था, यहाँ से 200 गज दूर मैंने कुछ लोगों को देखा, वे लेटे हुए आराम से पड़े थे। उन्हें कोई समस्या नहीं थी, टोटली रिलैक्स। यहाँ कितने लोग जानना चाहते हैं? 200 गज पर श्मशान घाट है। वहाँ पर चले जाओ। वहाँ पर लोग जमीन पर लेटे हुए हैं। उनको कोई समस्या ही नहीं है।”
2. हमारे संस्कार
आज लोगों के पास ज्ञान तो है, पर संस्कार नहीं हैं। ज्ञान मिल रहा है, संस्कार नहीं मिल रहे। हम लोग अपने परिवारों में, घरों में गलत उसूल सिखाते हैं। हमारे दफ्तर में कोई फोन आता है, हमने किसी का चेक नहीं दिया। जो भी कारण हो, गलती हो, हमारा स्टाफ झूठ नहीं बोलेगा। झूठ मत बोलिए। मैं अगर अपने दफ्तर में अपने स्टाफ को अपने लिए झूठ बोलना सिखाऊँगा तो एक दिन ऐसा आएगा, मेरा स्टाफ मुझसे ही झूठ बोलेगा और जितनी बार मैं उनसे झूठ बुलवाता हूँ और जब वे झूठ बोलते हैं और अपनी नजर में थोड़ा सा गिर जाते हैं। आप देखते हैं, सिर्फ पहला झूठ ही मुश्किल होता है, उसके बाद तो आदत पड़ जाती है।
बच्चे पैदा होते ही झूठे नहीं होते। सीखते हैं। पाँच साल का बच्चा। फोन बजता है, बच्चों का उत्साह एकदम तेज होता है। दौड़ता हुआ जाता है और फोन उठाता है। फोन पर कोई पूछते हैं, ‘बेटा, पापा हैं?’
‘हाँ, बिल्कुल हैं।’ पिता के पास जाता है, ‘आपके लिए फोन है।’ पापा पूछते हैं, ‘क्या बोला तुमने?’ मैंने बोला, ‘हाँ, पापा घर पर हैं।’ ‘बेटा, बोल इसको, पापा घर पर नहीं हैं। मैं बात नहीं करना चाहता।’ ‘वह कहता है, पर आप तो घर पर हैं!’ बच्चा छोटा है और बाप बड़ा है। साइज बहुत मायने रखता है। बच्चे का उत्साह एकदम गिर जाता है। वह पहली बार जिंदगी में कन्फ्यूज है। अपने दिमाग में सोच रहा है, पापा घर में हैं। वह कहना नहीं चाहता कि पापा घर में नहीं हैं, पर पापा ने कहा है तो कहना होगा। 90 प्रतिशत व्यवहार आदतन है। आज तक झूठ बोला नहीं। गलती से सच निकल गया तो! फोन उठाया और जोर से पटक के बोला, ‘पापा घर पर नहीं हैं।’ जैसे ही उसने फोन पटका, उसके पिता ने सुन लिया। ‘तुमको सिखाना पड़ेगा। तू गलत जा रहा है।’
अगली बार फोन बजता है। बच्चा दौड़कर जाता है। वह पूछते हैं, ‘पापा घर पर हैं?’ बच्चा कहता है, ‘देखकर बताता हूँ।’ पिता कहता है, ‘शाबाश बेटा! गुड बॉय।’ यह एक प्रोत्साहन है। बच्चा अच्छा महसूस करता है।
झूठ बोलने के लिए एक बहुत बड़े मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स ने कहा था, ‘जिस व्यवहार को प्रोत्साहन देंगे, वही बढ़ता चला जाएगा। जानवरों को सिखाने के लिए इसी का प्रयोग किया जाता है।’
3. अंधविश्वास हमें कमजोर बनाता है
जो लोग जिंदगी में असफल होते हैं, वे जिम्मेदारी नहीं उठाते। वे दुनिया को ब्लेम करते हैं। अपने माता-पिता को, शिक्षक को, नक्षत्रों को, हमेशा किसी और को करेंगे, खुद अपने आपको कभी स्वीकार नहीं करते। वे उत्तरदायित्व नहीं लेते, खाली बैठकर पत्रियाँ मिलाते हैं, नक्षत्र देखते हैं और गड़बड़ होती है तो कहते हैं कि सितारे काम नहीं कर रहे। कहते हैं, शनि खराब है। काला रूमाल लो, काली दाल डालो, काला कुत्ता खोजो, काला बरतन खोजो। ये खेल-तमाशा हो गया है। क्या शनि को उतारना-चढ़ाना इतना आसान है? टेलीविजन पर कोई बाबा आया, समस्या सुन रहा है, फिर पूछता है—जलेबी खाई थी? नहीं खाई थी—यही समस्या है। दूसरे से पूछता है गोलगप्पे खाए थे? नहीं खाए थे! चटनी खाई थी? कौन सी चटनी खाई थी? लाल खाई थी, मीठी खाई थी? कब खाई थी? यही समस्या है। लोग पैसे दे रहे हैं। बाबा के पैर पकड़ते हैं, जिसको जेल में होना चाहिए।
गुरु नानक एक बार हरिद्वार गए और उन्होंने देखा कि लोग जल चढ़ा रहे हैं। उन्होंने पूछा, ‘जल क्यों चढ़ा रहे हो?’ लोगों ने कहा कि हमारे पूर्वज प्यासे हैं। वहाँ प्यास लगी है उनको। गुरु नानकजी ने पूछा, ‘जल वहाँ पहुँच जाएगा?’ उन्होंने कहा कि बिलकुल! गुरु नानक उलटे होकर दूसरी तरफ जल चढ़ाने लगे। सब ने कहा—यह तो गलत काम कर रहे हो। आप गलत जगह पानी डाल रहे हैं। गुरु नानक ने जवाब दिया, ‘मैं तो अपने खेतों को पानी दे रहा हूँ।’ लोगों ने पूछा, ‘खेत कहाँ हैं?’ लोगों ने गुरु नानक से पूछा, ‘जल पंजाब तक पहुँच जाएगा?’ तो गुरु नानक बोले, ‘हाँ, आपका वहाँ पहुँच जाएगा तो मेरा खेतों में क्यों नहीं पहुँचेगा?’ आप देखें, गुरु नानक ने शुरुआत की थी अंधविश्वास से ऊपर उठने की। सरदारों को देखिए, उनकी कोई पत्री नहीं मिलाई जाती। शादियाँ रविवार को होती हैं। रविवार को सूट नहीं करतीं तो शनिवार को कर देते हैं; शुक्रवार को भी कर देते हैं। सब सही चल रहा है।
4. खुद को मेंटली टफ रखिए
कितनी बार आप देखते हैं, कुछ लोग मानसिक रूप से बहुत मजबूत होते हैं। लोग पूछते हैं, हमारी सोच पर काबू नहीं है। मैं बैठता हूँ। 50 चीजों की सोच आ जाती है। हम अपनी सोच को कैसे काबू कर सकते हैं? इसका एक उदाहरण है, एक बार मुझे एक कैंसर सोसाइटी ने बुलाया। कैंसर रोगी थे, जिनसे कहा जा चुका था, आपके ऊपर सब इलाज हो चुके हैं। अब तैयारी करिए ऊपर जाने के लिए। कैंसर सोसाइटी ने कहा कि इनसे बात कीजिए, इनको कहिए कि सकारात्मक सोच रखें। मैं सोच रहा था, कैसे लोगों से बात की जाए? किस तरीके से उनको कहा जाए कि एक सकारात्मक सोच रखें, जिनको सब ने कहा है कि आप जाने वाले हैं?
मानसिक दृढ़ता कैसे बनती है? वैसे ही बनती है जैसे शारीरिक बनती है। क्या मैं 20 किलो का डंबल उठाकर आज रैप कर सकता हूँ? नहीं कर सकता। अगर करूँगा तो हफ्ता भर बीमार हो जाऊँगा। सारे शरीर में दर्द होगा। आप कैसे शारीरिक रूप से सुदृढ़ बनते हैं? जिम जाते हैं। वहाँ जाकर आप 5 किलो का वजन उठाते हैं, 10 बार रैप करते हैं, 20 रैप करते हैं, 30 करते हैं और हर अभ्यास आपको ज्यादा पावर देता है और आप ज्यादा उठा पाते हो, क्योंकि आप खुद को शारीरिक रूप से मजबूत बना रहे हो। वैसे ही आपको मानसिक दृढ़ता बनाने की जरूरत है। अगर आप एक सकारात्मक इनसान बनना चाहते हैं, रातोरात तो वह नहीं हो सकता। आप सारी जिंदगी के लिए कोशिश मत कीजिए। आप अपने दिमाग को कहो, अगले 10 मिनट के लिए। यह जिंदगी भर के लिए सोचने से ज्यादा बेहतर है। 10 कहो, 15 कहो, 20 कहो, 25 कहो। आप देखेंगे, आपकी क्षमता बढ़ती चली जाएगी। हम अपने विचार चुनते हैं। नकारात्मक विचार हर एक इनसान के अंदर आते हैं, सकारात्मक इनसान के पास भी आते हैं, लेकिन वे उसे बाहर निकाल देते हैं। यह एक अभ्यास की बात है।
5. अच्छा नजरिया रखिए
गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं, बल्कि अपने अंदर भरी चीज की वजह से उड़ता है। हमारी जिंदगी में भी यही सिद्धांत लागू होता है। महत्त्वपूर्ण चीज हमारी अंदरूनी शख्सियत है। हमारी अंदरूनी शख्सियत की वजह से हमारा जो नजरिया बनता है, वही हमें ऊपर उठाता है। जिस तरह किसी भव्य इमारत के टिके रहने के लिए उसकी नींव मजबूत होनी चाहिए, उसी तरह कामयाबी पर टिके रहने के लिए भी मजबूत बुनियाद की जरूरत होती है और कामयाबी की बुनियाद होती है नजरिया। नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। अगर हम अपने नजरिए को सकारात्मक बनाना चाहते हैं तो टाल-मटोल की आदत छोड़ें और ‘तुरंत काम करो’ पर अमल करना सीखें। वही आपके अच्छे भविष्य का निर्माण करेगा।
6. अच्छी आदतें सदैव अच्छा निर्माण करती हैं
जीतनेवाले वह काम करने की आदत बना लेते हैं, जो हारनेवाले जिंदगी में नहीं करना चाहते। ऐसा कौन सा काम है, जो हारनेवाले नहीं करना चाहते? यह वही काम है, जो जीतनेवाले भी नहीं करना चाहते, लेकिन फिर भी करते हैं। हारनेवाले सुबह नहीं उठना चाहते हैं; जीतनेवाले भी नहीं उठना चाहते, लेकिन फिर भी उठते हैं। आप देखें, हारनेवाले मेहनत नहीं करना चाहते; जीतनेवाले भी नहीं करना चाहते, फिर भी करते हैं, वे उसकी आदत बना लेते हैं। स्वयमेव आदत बन जाती है। जब भी करते हैं, सही काम करते हैं, क्योंकि आदत बन चुकी होती है।
अच्छी आदतें बनाओ। आदतों से ही चरित्र बनता है। 90 प्रतिशत हमारा व्यवहार वैसा ही होता है, जैसी आदत होती है। अगर हमारी अच्छी आदतें हैं तो हमारा चरित्र अच्छा होगा। अगर हमारी आदतें खराब हैं तो हमारा चरित्र खराब होगा। अच्छी आदतें मुश्किल से आती हैं, लेकिन उनके साथ जीना आसान है। बुरी आदतें आसानी के साथ आती हैं, लेकिन उनके साथ जीना मुश्किल है। जब तक हम आदत को पकड़ते हैं, आदत हमको पकड़ चुकी होती है। इसकी तो किस्मत ही अच्छी है। हमेशा कहते हैं, मिट्टी को हाथ लगाता है, सोना हो जाती है। इसकी किस्मत खराब है। सोने को हाथ लगाता है, मिट्टी हो जाती है। इस बात में गहराई है। हम कहते हैं, उसकी किस्मत अच्छी है। उसकी जिंदगी देखिए, जिंदगी में हर ट्रांजेक्शन और व्यवहार देखिए, अच्छी आदतें होंगी। स्वयमेव आ रही हैं। जब काम करते हैं, सही करते हैं, क्योंकि स्वयमेव वही काम करते हैं, जो सही है। जिसकी आदत खराब है, इसकी किस्मत खराब है। उनकी जीवनी देखें, जब भी कोई काम करते हैं, गलत हो जाता है। क्यों गलत हो जाता है? स्वयमेव है। बिल्ड ही गलत हो रहा है। प्रैक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट। यह सही नहीं है, बल्कि यह सही है—ओनली परफेक्ट प्रैक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट। कई लोग अपनी गलतियों से अभ्यास करते हैं, उसी वक्त वे परफेक्ट हो जाते हैं। अभ्यास से निपुणता नहीं आती, अभ्यास से वही स्थायी हो जाता है, जिसका हम अभ्यास करते हैं।
सकारात्मक सोच सफलता की गारंटी नहीं देता। सकारात्मक सोच, सकारात्मक एक्शंस, एंड एफर्ट, सकारात्मक चरित्र से जिंदगी में सफलता आती है। एथलीट 15 साल की ट्रेनिंग करते हैं 15 सेकंड की परफॉर्मेंस के लिए। अक्षय पटेल 15 वर्षीय एक बच्चा। ओपन मार्शल आर्ट में रिप्रजेंट कर रहे हैं गुजरात राज्य को, राष्ट्रीय मार्शल आर्ट में। वे कमर से एक पैर में पैरालाइस हैं। वे पैरालाइस बच्चों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर रहे हैं, ओपन मार्शल आर्ट में प्रतियोगिता कर रहे हैं। किसी ने उनसे पूछा कि आप कैसे प्रतियोगिता कर रहे हो? उनके साथ, जिनके दोनों पैर सही-सलामत हैं और आपके एक पैर में पोलियो है! तो अक्षय पटेल ने कहा, ‘जब मैंने शुरुआत की थी, तब मुश्किल हुई थी, लेकिन अपने पैर की वजह से मैं किसी भी दूसरे खिलाड़ी को 9 डिग्री पर लात मार सकता हूँ।’ अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को उसने अपनी सबसे बड़ी शक्ति बना लिया। अच्छी आदतें सदैव अच्छा निर्माण करती हैं, फिर वह चरित्र हो या आपका व्यवसाय। बेहतर ढूँढ़ो और उसे आदत बना लो।
7. चुनाव करना सीखिए
जिन्हें अवसर की पहचान नहीं होती, उन्हें अवसर का खटखटाना शोर लगता है। अवसर आता है तो लोग उसकी अहमियत नहीं पहचानते। जब वह जाने लगता है तो वे उसके पीछे भागने लगते हैं। कोई अवसर दो बार नहीं खटखटाता। दूसरा अवसर पहले वाले अवसर से बेहतर या बदतर हो सकता है, पर वह ठीक पहले वाले मौके जैसा नहीं हो सकता। गलत समय पर लिया गया सही फैसला भी गलत बन जाता है। अवसर अच्छे या बुरे नहीं होते। उन्हें सफलता में बदलना आपकी जिम्मेदारी है।
8. मेहनत पर भरोसा करना सीखिए
ब्रूस ली की एक टाँग दूसरी से एक इंच छोटी थी। 1 एम.एम., 2 एम.एम. का फर्क हो तो अलाइनमेंट में फर्क पड़ जाता है। ब्रूस ली की आई साइड माइनस टेन। वे 5,000 पंच की डेली प्रैक्टिस करते थे। वे कहते थे, ‘मुझे उससे डर नहीं है, जिसको 1,000 तरीके आते हैं किसी काम को करने के। मुझ डर उससे लगता है, जिसको सिर्फ एक तरीका आता है, लेकिन उसने एक तरीके का अभ्यास और प्रैक्टिस 10,000 बार की है। वह खतरनाक है। ‘जो भाग्यवादी होते हैं, वे कुछ होने का इंतजार करते हैं, जिंदगी में कभी कुछ करके नहीं जाते। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
9. सफलता का मूल
सफलता और प्रसन्नता का चोली-दामन का साथ है। सफलता का अर्थ यह है कि हम जो चाहें, उसे पा लें और प्रसन्नता का अर्थ है कि हम जो चाहें, उसे चाहें। सफल लोग अपने काम से प्रतिस्पर्धा करते हैं। वे खुद का रिकॉर्ड बेहतर बनाते हैं और लगातार सुधार लाते रहते हैं। सफलता इस बात से नहीं मापी जाती कि हमने जिंदगी में कितनी ऊँचाई हासिल की है, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि हम कितनी बार गिरकर खड़े हुए हैं। सफलता का आकलन गिरकर उठने की क्षमता से ही किया जाता है। सफल लोग महान् काम नहीं करते, वे छोटे-छोटे कामों को महान् ढंग से करते हैं। हर ठोकर के लगने के बाद खुद से पूछें कि हमने इस तजुरबे से क्या सीखा? तभी हम रास्ते के रोड़ों को कामयाबी की सीढ़ी बना पाएँगे। लोग दो तरह के होते हैं—पहले, जो करते तो हैं, पर सोचते नहीं; दूसरे, जो सोचते तो हैं, लेकिन कुछ करते नहीं। सोचने की क्षमता का इस्तेमाल किए बिना जिंदगी गुजारना वैसा ही है, जैसे कि बिना निशाना लगाए गोली चलाना।
अगर कोई मूर्खता की बजाय समझदारी, बुराई की बजाय अच्छाई और दुर्गुण की बजाय सद्गुण को चुनता है तो ऐसे व्यक्ति के पास स्कूली डिग्रियाँ न होने के बाबजूद उसे शिक्षित माना जाना चाहिए। कामयाबी का यह मतलब नहीं है कि हर इनसान आपको पसंद करे। ऐसे लोग भी हैं, जिनसे मान्यता पाना मैं खुद नहीं चाहूँगा। मूर्खों की आलोचना को मैं घिनौने चरित्र के लोगों की तारीफ से बेहतर मानता हूँ।