Ram Ji


शिवजी कहते हैं कि हनुमान के समान न तो कोई बड़भागी है और न राम के चरणों का अनुरागी। यह कथन बड़ा गहरा है। कुछ लोग सोचते हैं कि अच्छा खा-पीकर, खूब धन कमाकर, बड़ा मकान बनवाकर आदमी भाग्यशाली हो जाता है। लेकिन क्या यही मनुष्य का चरम लक्ष्य है? क्या ऐश्वर्य उसे धन्य करने की शक्ति रखता है?

हनुमान राम-काज करके बड़भागी बन गये थे। वास्तव में इस संसार में विद्यावान् गुणी अतिचातुर लोग बड़ी मुश्किल से राम-काज करने के लिए आतुर होते हैं। प्राय: आदमी कुछ खूबियों को पाकर अपनी तिजोरियाँ भरना चाहता है नाम कमाना चाहता है अपना साइनबोर्ड हर जगह लगवाना चाहता है। दूसरे के हित की कामना करने का तो उसे खयाल भी नहीं आता। इस तरह के काम उसके हिसाब से मूर्ख करते हैं।

कीचड़ में सने चिन्तन के इस चक्के को हनुमान ने सही दिशा में मोड़ा। बेजोड़ प्रतिभा और अतुलित बल के कुबेर होते हुए भी उन्होंने स्वार्थ के लिए उसका उपयोग कभी नहीं किया। साधारण मनुष्य में यदि विद्या गुण या चतुराई में से कोई एक थोड़ा भी आ जाए तो वह ऐंठकर चलने लगता है। पर हनुमान सर्वगुण-सम्पन्न होकर भी सेवक ही बने रहे।

आज के संसार को पहले से कहीं अधिक सेवा की भक्ति की जरूरत है। और इसके सबसे बड़े आदर्श और प्रेरणापुरुष हैं हनुमानजी। प्रस्तुत पुस्तक रोम रोम में राम में हनुमान के महिमामय चरित्र का गहन ललित और मोहक अंकन हुआ है।


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पं. राजेन्द्र अरुण

मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण 'रामायण गुरु' के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (एक्ट) पारित करके 'रामायण सेंटर' की स्थापना की। यह सेंटर विश्व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया; पं. राजेन्द्र अरुण इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे ।

29 जुलाई 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गए और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिंदी पत्र 'जनता' के संपादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए 'समाचार' 'यू.एन.आई.' और 'हिन्दुस्थान समाचार' जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया।

सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के प्रचार-प्रसार के कार्य में जुट गए। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया था । रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को जीवनपर्यंत साकार करते रहे ।