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राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है। कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है वह राम है।
ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं। अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिंदू समाज को संघर्ष करना पड़ा। यह मंदिर सनातनी आस्था का शिखर है।
राम फिर लौटे राममयता के विराट् संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास के पड़ावों की यात्रा करते हुए यह पुस्तक राम के उन मूल्यों को नए संदर्भों में विचारती है, जिनके कारण मंदिर राम की चेतना का नाभिकीय केंद्र बनेगा। यह उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का आधार होगा जो तोड़ते नहीं जोड़ते हैं।
अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अंतसंबंधों को समझने का नया गवाक्ष खोला है। राम फिर लौटे इसी गवाक्ष से रामतत्त्व रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता तो नए संदर्भों में देखती है।