Netaji Subhash Chandra Bose

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1857 की क्रांति के बाद गोरों को समझ आ गया कि वे केवल बर्बर बल प्रयोग के आधार पर लंबे समय तक भारत में नहीं टिक पाएँगे, इसलिए उन्होंने देश को निहत्था करना शुरू कर दिया। हमारे पूर्वजों की दूसरी सबसे बड़ी मूर्खता और गलती यह रही कि उन्होंने अंग्रेजों की इस करतूत को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया। अगर उन्होंने अपने हथियार इतनी आसानी से नहीं सौंपे होते तो 1857 के बाद से भारत का इतिहास संभवत आज के इतिहास से भिन्न होता। भारत में युवा पीढ़ी पिछले 20 सालों के अनुभव से यह सीख चुकी है कि सविनय अवज्ञा आंदोलन एक विदेशी प्रशासन को बंधक बना सकता है या पंगु तो कर सकता है, लेकिन बिना भौतिक बल के यह उसे उखाड़कर नहीं फेंक सकता या निष्कासित नहीं कर सकता। एक अंतिम चरण आएगा, जब सक्रिय प्रतिरोध सशस्त्र क्रांति में विकसित हो जाएगा, तब भारत में ब्रिटिश शासन का अंत होगा।


इसी पुस्तक से यह पुस्तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख राजनीतिक अध्ययन है, जिसमें उनकी स्वयं अपनी एक प्रमुख भूमिका थी। यह पुस्तक असहयोग और खिलाफत आंदोलनों के घुमड़ते बादलों से लेकर तूफान का रूप लेनेवाले 'भारत छोड़ो' तथा आजाद हिंद आंदोलनों तक का विशद और विश्लेषणात्मक विमर्श उपलब्ध कराती है। नेताजी की दूरदर्शिता, चिंतन और राष्ट्रीय भाव को रेखांकित करती एक पठनीय कृति।


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प्रोडक्ट विवरण :

लेखक के बारे में

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। 1919 में बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। पिता की इच्छा से सुभाष आई.सी.एस. बने।

गांधीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव जीत गए। आखिर में तंग आकर 29 अप्रैल, 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 3 मई, 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अंदर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की।

घर की नजरबंदी से निकलकर 29 मई, 1942 को सुभाष जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले।

21 अक्तूबर, 1943 को नेताजी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने।

अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिये।

नेताजी ने अपने बहुआयामी स्वतंत्रता संघर्ष के संदर्भ में अगणित पत्र लिखे, भाषण दिए एवं रेडियो के माध्यम से भी उनके व्याख्यान प्रसारित हुए।

18 अगस्त, 1945 को नेताजी कहाँ लापता हो गए और उनका आगे क्या हुआ, यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित रहस्य है।