Khidkiyan



'खिडकियाँ' हमारे आसपास के घरो में खुलने वाली वह दो तरफ आमद है, जिससे हम कभी आश्चर्यचकित होते हैं तो कभी सोचने पर विवश । किसी बात से इतना इत्तेफाक रखने लगते हैं कि जैसे सामने आईना रख दिया गया । यह पुस्तक 'खिड़कियाँ' भी कुछ ऐसी ही कहानियों का संग्रह है, जिसे इसके लेखक पंकज शर्मा ने अपने जीवन के अलग-अलग वक्त, परिस्थितियों में देखा है, समझा है और फिर अपने अनुभव को अपनी कल्पनाशीलता की स्याही से बंद खिड़कियाँ खोल दी हैं। इस कहानी संग्रह की हर एक कहानी में आपको भी अपना परिचित कोई-न-कोई मिल ही जाएगा, क्योंकि इसके किरदार हमारे ही बीच के रिश्तों के ताने-बाने से लिए गए हैं।

पंकज शर्मा 'एक विशुद्ध पत्रकार हैं, बेहद शालीन और स्वाभिमानी। मगर इस सब के परोक्ष में एक ऐसे ऑब्जर्वर व चिंतक हैं, जो हर मिलने वाले व्यक्ति से उसका सत, यानी उसका सार चुरा लेते हैं और फिर उसे शब्दों में डालकर कविता-कहानी की शक्ल में हमें यानी पाठक समाज को वापस कर देते हैं। मैं खिड़कियाँ की एक इकाई हूँ, इसका गर्व हमेशा रहेगा मुझे। हिंदी साहित्य खूब पढ़ा है तो यह कह सकती हूँ कि इस पुस्तक में आंचलिक खुशबू तो कभी आध्यात्मिक भाव, कहीं समाज की कुंठा तो कहीं परिवार परंपरा का होता ह्रास आपको प्रेमचंद, शिवानी और कहीं-कहीं राही मासूम रजा को स्मरण करवाएगा।


Khidkiyan "खिड़कियाँ" Book in Hindi



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About the Author

पंकज शर्मा

इस किताब की हर कहानी मैंने देखी है, या कहीं-कहीं मैं खुद उनका एक पात्र हूँ। लिखते समय कई बार मन डूबा, कई बार लगा कि इनके अंत बदल दें। क्योंकि हर कहानी का अंत पाठकों को किसी गहरे भाव में छोड़ जाएगा या शायद ले जाएगा उस मोड़ पर, जो कभी आप छोड़ आए थे बरसों पहले—फिर लौटने का वादा करके या शायद आपको किसी का चेहरा, किसी के आँसू, किसी की कहानी याद दिलाएँ। लेकिन अगर मैं अंत बदलता तो अपनी कहानियों के साथ न्याय नहीं कर पाता। तो जैसा देखा, सुना, समझा, उन्हें उतार दिया है कागज पर । मेरी कहानियों की खिड़कियाँ बरसों से बंद पड़े मकानों की हैं, जो अब बंद ही रहती हैं। लेकिन कोई हवा का झोंका कभी उनके पट हिला देता है तो कोई कहानी बाहर निकल आती है। मैं इन्हें लिखते समय कभी रोया हूँ या पुराने एलबमों की तसवीरें निकालकर घंटों निहारी हैं मैंने।