डॉ. एस. राधाकृष्णन ने हिंदू धर्म के केंद्रीय सिद्धांतों, इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक सिद्धांत, धार्मिक अनुभव, नैतिक चरित्र और पारंपरिक धर्मों की व्याख्या की है। हिंदू धर्म परिणाम नहीं एक प्रक्रिया है, विकसित होती परंपरा है, न कि निश्चित रहस्योद्घाटन—जैसा कि अन्य धर्मों में होता है। उन्होंने ईसाई धर्म, इसलाम और बौद्ध धर्म की तुलना हिंदू धर्म के संदर्भ में की है और इस बात पर बल दिया है कि इन धर्मों का अंतिम उद्देश्य सार्वभौमिक स्वयं की प्राप्ति है। धर्म को लेकर राधाकृष्णन का विश्लेषण परम बौद्धिक और संतुलित है तथा उनके व्याख्यानों को विश्व भर में हार्दिक प्रतिक्रिया मिली है। इस पुस्तक के लेख इस महान् दार्शनिक के मन को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका अभिवादन एक और विवेकानंद के रूप में किया गया है। हिंदू धर्म का विहंगम दिग्दर्शन करानेवाली पठनीय पुस्तक।.





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लेखक के बारे में


डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु में हुआ। वे 20वीं सदी में भारत के तुलनात्मक धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रख्यात विद्वान् थे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान् दार्शनिक और एक आस्थावान हिंदू विचारक थे। उनका जन्मदिन भारत में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव-मस्तिष्क का सदुपयोग किया जाना संभव है। इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का हृस होता जा रहा है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, हमें विश्वास है कि उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। सम्मान-पुरस्कार ः भारत रत्न, टेंपलटन प्राइज, जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार और यूक्रेन का ऑर्डर ऑफ मेरिट।.