इन दिनों जबसे UPSC का रिजल्ट आया है तब से Toppers चर्चाओं में बने हुए हैं लेकिन दोस्तों इन सबके बीच एक नाम ऐसा भी है जिनकी सफलता ने सबको हैरान कर दिया है. आज इस Blog में हम आपको UPSC Topper पवन कुमार के संघर्ष की कहानी बताएँगे जो एक किसान के बेटे हैं और जिन्होंने झोपडी में रहते हुए महज मोबाईल की मदद से UPSC क्रैक कर दिखाया तो बिना देर किए आइये शुरुआत करते हैं आज की Blog की.
क्या है पवन की कामयाबी की कहानी आईए जानते हैं आज की Blog में.
पवन कुमार बुलंदशहर के गांव रघुनाथपुर के निवासी हैं. इनके घर में इनके माता पिता ओर तीन बहने हैं. पवन के पिता मुकेश और माता सुमन मनरेगा मजदूर हैं. इनकी बहनों की बात की जाये तो इनकी सबसे बड़ी बहन गोल्डी ने BA किया है, दूसरी बहन सृष्टि अभी बीए कर रही हैं और सबसे छोटी बहन सोनिया कक्षा 12 की पढ़ाई कर रही है. आपको बता दें पवन ने 2017 में नवोदय स्कूल से इंटर की परीक्षा पास की थी. इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद से बीए की परीक्षा पास की. बाद में दिल्ली एक कोचिंग सेंटर में सिविल सर्विस की तैयारी शुरू कर दी. वहाँ से उन्होंने कुछ विषयों की कोचिंग ली और बाकि ऑनलाइन वेबसाइट की मदद ली. दो साल तक कोचिंग के बाद अधिकतर समय उन्होंने सेल्फ स्टडी की. पवन कुमार के परिवार का कहना है कि तीसरे प्रयास में उन्हें यह सफलता मिली है.
पवन ने सफलता का श्रेय अपने परिवार को दिया
पवन ने UPSC में सफलता के बाद एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि सभी परिवार वाले मेहनत मजदूरी कर उनको पैसे देते थे ताकि वो अपनी पढ़ाई करते रहे. उनके मकान में छप्पर पड़ा हुआ है लेकिन उन्होंने कहा कि उनके लिए तो महल भी यही है और कोठी भी यही है. पवन ने बताया कि दो बूंद भी बारिश हो जाती है तो पानी छप्पर से नीचे आ जाता है. जब वह UPSC की तैयारी करते थे तब घर में लाइट न होने की वजह से उनको मोबाइल की लाइट से पढ़ना पड़ता था क्योंकि सारा खर्च उनकी पढाई पर जाता था और दिया जलाने के लिए उनके यहाँ पर मिट्टी का तेल नहीं होता था. पवन ने बताया कि उनको पढ़ने के लिए एक एंड्रॉइड स्मार्टफोन की जरूरत थी. तो उनके परिवार के सभी लोगों ने मजदूरी करके उनके लिए पैसे इकठे किए और तब जाकर कुछ साल पहले उन्हें 3200 रुपये का एक सेकेंड हैंड एंड्रॉइड मोबाइल फोन दिलाया. पवन ने बताया की उनके लिए तो ये 3200 रुपये भी लाख के बराबर थे. उन्होंने जिले में गैस के कनेक्शन बंट गए लेकिन हमारे पास सिलेंडर भरवाने के लिए 1000 रुपये भी नहीं है. मेरे ओर मेरे भाई बहनों की पढ़ाई के लिए सिलेंडर भी हम नहीं भरवा सकते हैं. हमको चूल्हे से काम चलाना पड़ रहा है.