IAS ही क्यों बनना है? पैसे कमाने के लिए या समाज में बदलाव के लिए


हर साल लाखों लोग यूपीएससी की परीक्षा के लिए अप्लाई करते हैं मगर सफलता उनमे से कुछ सौ को ही मिलती है और आईएएस तो लगभग 150 ही बन पाते हैं। अब यह प्रक्रिया वैसे तो आसन है लेकिन यहाँ एक गंभीर सवाल हमारे सामने आता है कि आखिर इस परीक्षा में सक्सेस रैशियो इतनी कम क्यों है? वैसे तो इसके पीछे हर कोई अपने अपने कारण दे सकता है और वे कारण अपनी जगह पर सही भी होंगे लेकिन एक बहुत बड़ी बात है जिसे लोग अनदेखा कर देते हैं जिसके कारण लोग इस परीक्षा को समझ ही नहीं पाते हैं और वे सफल नहीं हो पाते हैं। और वो गंभीर सवाल है – आप आईएएस ही क्यों बनना चाहते हैं?


सिविल सेवा ही क्यों?


आखिर हम सिविल सेवक के रूप में अपना कॅरियर क्यों चुनना चाहते हैं- क्या सिर्फ देश सेवा के लिये? वो तो अन्य रूपों में भी की जा सकती है। या फिर सिर्फ पैसों के लिये? लेकिन इससे अधिक वेतन तो अन्य नौकरियों एवं व्यवसायों में मिल सकता है। फिर ऐसी क्या वजह है कि सिविल सेवा हमें इतना आकर्षित करती है?


यह केवल एक नौकरी वाली प्रोफाइल नही है, बल्कि यह एक तरह की जिम्मेदारी है और वास्तव में इनके कर्तव्यों को निभाने के लिए आपको सक्षम होना चाहिए। उनके द्वारा चुने गए क्षेत्र के अनुसार अपनी जिम्मेदारी का वहन करना होता है। लेकिन उनका मख्य उद्देश्य (मकसद) समाजिक सुधार और विकास है। यह एक समाज के रुप में, लोगों के समुह में, स्कूल आदि के विकास के रुप में हो सकता है। एक आई.ए.एस. अधिकारी चुने हुए एक निश्चित क्षेत्र के विकास के लिए नए नियम भी बना सकते है।


मान लीजिए कि आपको लगता है कि आपके नजदीक कोई स्कूल होना चाहिए, तो आप सरकार को सुझाव दे सकते है और इससे आप लोगों की मदद कर सकते है। इसी तरह जिस क्षेत्र में आपकी नियुक्ति होती है यह उस क्षेत्र पर निर्भर करता है। यदि यह एक सार्वजनिक क्षेत्र है तो आपको सामाजिक कार्यों का अवसर मिलेगा, जबकि यदि आप किसी केन्द्रिय स्तर पर है तो आपको सरकार के साथ नए नियम और नई नीतियां बनाने में सरकार के साथ काम करने का अवसर मिलेगा। विभिन्न मंत्रियों के अधीन आई.ए.एस. अधिकारियों का एक समुह होता है और यही अधिकारी उन्हें सलाह देते है, और ये हमारे राष्ट्र के निर्माण और विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।


अगर शासन व्यवस्था के स्तर पर देखें तो कार्यपालिका के महत्त्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन सिविल सेवकों के माध्यम से ही होता है। वस्तुतः औपनिवेशिक काल से ही सिविल सेवा को इस्पाती ढाँचे के रूप में देखा जाता रहा है। हालाँकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 70 साल पूरे होने को हैं, तथापि इसकी महत्ता ज्यों की त्यों बनी हुई है, लेकिन इसमें कुछ संरचनात्मक बदलाव अवश्य आए हैं।


पहले, जहाँ यह नियंत्रक की भूमिका में थी, वहीं अब इसकी भूमिका कल्याणकारी राज्य के अभिकर्ता (Procurator) के रूप में तब्दील हो गई है, जिसके मूल में देश और व्यक्ति का विकास निहित है। आज सिविल सेवकों के पास कार्य करने की व्यापक शक्तियाँ हैं, जिस कारण कई बार उनकी आलोचना भी की जाती है। लेकिन, यदि इस शक्ति का सही से इस्तेमाल किया जाए तो वह देश की दशा और दिशा दोनों बदल सकता है। यही वजह है कि बड़े बदलाव या कुछ अच्छा कर गुज़रने की चाह रखने वाले युवा इस नौकरी की ओर आकर्षित होते हैं और इस बड़ी भूमिका में खुद को शामिल करने के लिये सिविल सेवा परीक्षा में सम्मिलित होते हैं।


यह एकमात्र ऐसी परीक्षा है जिसमें सफल होने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन के उच्च पदों पर आसीन होने और नीति-निर्माण में प्रभावी भूमिका निभाने का मौका मिलता है। इसमें केवल आकर्षक वेतन, पद की सुरक्षा, कार्य क्षेत्र का वैविध्य और अन्य तमाम प्रकार की सुविधाएँ ही नहीं मिलती हैं बल्कि देश के प्रशासन में शीर्ष पर पहुँचने के अवसर के साथ-साथ उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा भी मिलती है।


हमें आए दिन ऐसे आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के बारे में पढ़ने-सुनने को मिलता है, जिन्होंने अपने ज़िले या किसी अन्य क्षेत्र में कमाल का काम किया हो। इस कमाल के पीछे उनकी व्यक्तिगत मेहनत तो होती ही है, साथ ही इसमें बड़ा योगदान इस सेवा की प्रकृति का भी है जो उन्हें ढेर सारे विकल्प और उन विकल्पों पर सफलतापूर्वक कार्य करने का अवसर प्रदान करती है।