IAS या विधायक कौन है अधिक शक्तिशाली ?


दोस्तों, यूपीएससी की तैयारी करने वाले कई लोग इस बात से परेशान रहते हैं कि नौकरी में राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत अधिक होता है। कुछ हद तक तो यह बात सही भी लगती है क्योंकि अक्सर हमें यह खबरें देखने सुनने को भी मिलती है जब अपनी शक्तियों को लेकर आईएएस अधिकारी और राजनेताओं में टकराहट हो जाती है। अक्सर इस बात को लेकर लोगों में confusion होती है कि क्या एक विधायक इतना शक्तिशाली हो सकता है कि अपनी जायज नाजायज हर तरह की बात माने के लिए आईएएस को मजबूर कर दे या फिर एक आईएएस अधिकारी के पास इतनी power होती है कि वह एक एमएलए को भी किसी काम के लिए मना कर दे? आज के वीडियो में हम इसी विषय पर बात करेंगे।


एक आईएएस बनने के लिए आदमी कितनी मेहनत करता है, ना जाने कितने दिन और कितनी रातें सिर्फ पढ़ाई में गुजार देता है और ना जाने कितने सालों तक घर परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों को भुला कर सिर्फ अपनी तपस्या में लगा रहता है। और यह सब वो क्यों करता है ? इसलिए ना ताकि एक दिन आईएएस बन सके और देश की उन्नति में अपना योगदान दे सके। लेकिन जरा सोचिए कि जब उसे पता चलता है कि उसका बॉस कोई ऐसा व्यक्ति बन गया है जो पढ़ाई लिखाई तो दूर, बल्कि सामान्य शिष्टाचार में भी बहुत पीछे है। अब हमारे देश की प्रशासनिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है जहां एक जन प्रतिनिधि को जनता की आवाज़ माना जाता है और एक आईएएस अधिकारी जनता की मांगों को पूरा करने वाला एक व्यक्ति। यदि सामान्य शब्दों में कहा जाए तो एक आईएएस अधिकारी जन प्रतिनिधि की मांगों को मानने के लिए बाध्य होता है।


लेकिन दोस्तों, संविधान में यदि जन प्रतिनिधियों को कुछ शक्तियाँ दी हैं तो आईएएस अधिकारियों को भी कुछ अधिकार दिये गए हैं। जहां तक ऑर्डर ऑफ precedence की बात है तो यह सही है कि जन प्रतिनिधि का स्थान एक आईएएस अधिकारी से ऊपर आता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि एक विधायक आईएएस को अपने इशारों पर नचा सकता है।


इसे और भी अच्छे तरीके से समझने के लिए आपको अशोक खेमका के बारे में जानना चाहिए। अशोक खेमका हरियाणा cadre के आईएएस अधिकारी हैं जिन्होंने 32 साल की सर्विस में 55 transfer झेले हैं। जी हाँ 55। मलतब हर साल लगभग 2 ट्रान्सफर। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हुआ कि इतनी बार सरकार को उनका तबादला करना पड़ा? तो इसका जवाब है – विधायकों और नेताओं की अनैतिक और गैर कानूनी बातें ना मानने की उनकी आदत। दरअसल हर आईएएस अधिकारी की ह तरह उनके ऊपर भी कई बार गलत काम करने या गलत को उजागर ना करने का दबाव बनाया गया लेकिन वे कभी भी झुके नहीं। अब बिना कारण उन्हें सस्पैंड नहीं कर सकते थे तो उनका ट्रान्सफर कर दिया जाता।


और यही हकीकत है दोस्तों, कि यदि एक आईएएस अधिकारी यह ठान ले कि वह कभी भी गलत का साथ नहीं देगा तो आम विधायक तो छोड़िए सरकार में बैठे लोग भी उसे मजबूर नहीं कर सकते। अब जहां तक बात आम विधायक कि है तो उसके बारे में भी समझ लीजिये। जब किसी क्षेत्र में विधायक का दौरा होता है तो अक्सर यह देखा गया है कि वह अपने खास लोगों को undue advantage दिलवाने की कोशिश करता है। अब उसकी यह कोशिश तभी सफल हो सकती है जब उस विभाग या जिले का आईएएस अधिकारी उसकी मांगों को मान ले। यदि आईएएस को यह लगता है कि उसकी मांग जायज नहीं है तो वह साफ मना कर देता है और वह विधायक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हाँ, यदि वह विधायक सत्ताधारी पार्टी का सदस्य हो तो शायद वह उसके खिलाफ शिकायत दे सकता है और उसका ट्रान्सफर करवा सकता है लेकिन यदि वह विधायक विपक्षी पार्टी से है तो वैसे भी सरकार उसकी अनुचित मांगो पर कोई ध्यान नहीं देने वाली।


तो कुल मिला कर देखा जाए तो order ऑफ precedence में भले ही विधायक का स्थान आईएएस से ऊपर हो लेकिन यदि उसे कोई काम करवाना हो तो उसे भी आईएएस से ही गुहार लगानी पड़ती है।