आज की तारीख है 22  मार्च


बात है 12 जनवरी, 1934  की जब अंग्रेजो के खिलाफ  विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने भारतीयों पर सिर्फ अन्याय और अत्याचार ही नहीं किया बल्कि निमर्मता की सारी हदें पार कर दीं. चटगांव विद्रोह के एक नायक  के साथ भी अंग्रेजों ने ऐसी ही क्रूरता की, वो वंदेमातरम् न कह सकें, इसके लिए अंग्रेजों ने उनका जबड़ा तोड़ दिया, हाथों के नाखून खींच लिए , भारत मां के उस वीर सपूत ने हर अत्याचार सहा, लेकिन अंग्रेजों की दास्तां कभी स्वीकार नहीं की. फांसी पर चढ़ने से ठीक एक दिन पहले अपने मित्र को लिखे पत्र में भी उन्होंने आजादी के आंदोलन को और तेज करने की अपील की  पत्र में उन्होंने लिखा था | “मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनन्तकाल की ओर उड़ रहा है | ऐसे सुखद समय पर,ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम सब के पास क्या छोड़ जाऊंगा? केवल मेरा एक ही सपना है, एक सुनहरा सपना- स्वतंत्र भारत का सपना “कभी भी 18 अप्रैल 1930 चटगांव के विद्रोह के दिन को मत भूलना  अपने दिल के देशभक्तों के नाम को स्वर्णिम अक्षरों में लिखना, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर अपना जीवन बलिदान किया है।” ये महान स्वतंत्रता सेनानी  सूर्य कुमार सेन थे |


महान क्रांतिकारी सूर्य कुमार सेन का जन्म आज की ही दिन  22 मार्च 1894(चौरानबे) को अविभाजित बंगाल के जिला चटगांव स्थित गांव नोआपारा में हुआ था . इनके पिता का नाम राजमोनी सेन था जो शिक्षक थे  और माता का नाम शीला बाला देवी था. नोआपारा से हायर इंग्लिश स्कूल की पढ़ाई करने के बाद सेन ने बीए से स्नातक किया |


सूर्यसेन जब छोटे थे तभी उनकी माता-पिता का देहांत हो गया, ऐसे में उनका पालन-पोषण उनके चाचा ने किया, जब वह बीए कर रहे थे तभी एक शिक्षक ने उन्हें आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. इसका उन पर असर पड़ा. पढ़ाई पूरी करने के बाद सेन ने साल 1918 में चटगांव के नंदन कानन क्षेत्र के एक विद्यालय में गणित का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया. यहीं उन्हें मास्टर दा उपनाम मिला. क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहने के लिए उन्होंने नौकरी भी छोड़ दी |


सूर्यसेन स्नातक की शिक्षा के दौरान ही उस समय के सबसे बड़ा क्रांतिकारी संगठन युगांतर समूह से जुड़ गए थे, साल 1918 में अध्यापन के दौरान उन्होंने स्थानीय युवाओं को संगठित किया. नौकरी छोड़ने के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों को और तेज कर दिया. अंग्रेजों से युद्ध के लिए हथियार चाहिए थे जो उनके पास नहीं थे, ऐसे में उन्होंने अंग्रेजों के साथ गोरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया. 23 दिसंबर 1923 को उन्होंने असम-बंगाल ट्रेजरी ऑफिस को लूटा और अंग्रेजों को खुली चुनौती दी. इसके बाद अंग्रेजों ने सूर्यसेन की तलाश शुरू कर दी, लेकिन वे चकमा देते रहे |


क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का ऐलान कर चुके थे. देशभर में आजादी का लहर बढ़ती जा रही थी. सूर्यसेन ने अपने साथियों के साथ मिलकर साल 1930 में इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (IRA) गठित की. क्रांतिकारियों के साथ उन्होंने ब्रिटिश पुलिस शस्त्रागार पर हमला बोल दिया. इतिहास में इसे ही चटगांव विद्रोह के नाम से जाना जाता है, यहां के बाद क्रांतिकारियों ने टेलीफोन एक्सचेंज पर धावा बोला अंग्रेजों को काफी नुकसान पहुंचाया. क्रांतिकारियों ने शस्त्रागार से हथियार तो लूटे लेकिन गोला-बारूद पर कब्जा करने में असफल रहे |


सूर्य सेन, ब्रिटिश सरकार के लिए बड़ा खतरा बन गए थे. इसलिए अंग्रेज शासकों ने उन्हें पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की, कई पैतरें अपनाएं. वे बचते-बचाते भारत की आजादी का जज्बा लिए आगे बढ़ते रहे लेकिन एक दिन ऐसा आया जब अपनों के विश्वासघात ने उन्हें जेल पहुंचा दिया. सूर्य सेन के एक साथी नेत्र सेन ने ब्रिटिश सरकार को सूचित किया कि जिस क्रांतिकारी की उन्हें तलाश है वह उसके घर में छिपा हुआ है. सूर्य सेन को 16 फरवरी, 1933 को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि इस घटना के बाद नेत्र सेन के इस विश्वासघात के लिए उसका सिर कलम कर दिया गया था |


मुकदमे में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. साल 1934 में 12 जनवरी को उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया |


सूर्यसेन को चटगांव सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. उसी स्थान पर उनका स्मारक बनाया गया है, 1978 में भारत और बांग्लादेश की सरकार ने उनका एक डाक टिकट भी जारी किया था. कोलकाता में एक मेट्रो स्टेशन का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है |


आज के ही दिन साल 1890 में  रामचंद्र चटर्जी पैराशूट से उतरने वाले पहले भारतीय व्यक्ति बने। वही साल 1934 में  जॉर्जिया के ऑगस्टा में गोल्फ के पहले मास्टर्स टूर्नामेंट का आयोजन हुआ। 

साथ ही साल 1956 में  अमेरिका में रंगभेद विरोधी नेता मार्टिन लूथर किंग को एक नस्लवादी कानून का विरोध करने के कारण जेल हुई। 

साल 1960 में दो अमेरिकी वैज्ञानिकों को लेजर का पेटेंट मिला। इसका इस्तेमाल प्रिंटिंग, स्किन ट्रीटमेंट से लेकर लेजर सर्जरी तक में होता है। 

वही साल 1977 में आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस की जबर्दस्त शिकस्त के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंपा। 

साथ ही साल 1993(तिरानबे) में आज ही के दिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने जल संसाधनों को बचाने के लिए वर्ल्ड वाटर डे मनाने का ऐलान किया।