आज की तारीख है 17 फरवरी, देश में आजादी को लेकर क्रांतिकारी आंदोलन जोरों से चल रहे थे, इस दौरान नागालैंड में भी आंदोलन का दौर चल रहा था | इन आंदोलनों में एक 13 वर्ष की उम्र की एक क्रांतिकारी बच्ची ने भी भाग लेना शुरू कर दिया और अपने चचेरे भाई के ‘हेराका’ आंदोलन से जुड़ गई | हेराका आंदोलन का लक्ष्य प्राचीन नागा धार्मिक मान्यताओं की बहाली और पुनर्जीवन प्रदान करना था | क्रांतिकारी बच्ची के भाई की ओर से चलाए गए इस आंदोलन का स्वरूप आरंभ में धार्मिक था, लेकिन धीरे-धीरे उसने राजनीतिक स्वरूप ग्रहण करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया | जल्द ही क्रांतिकारी बच्ची के भाई को गिरफ्तार कर उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया | इसके बाद उस आंदोलन की बागडोर उस 13 वर्षीय क्रांतिकारी बच्ची पर आ गई और वह इस आंदोलन की आध्यात्मिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी बन गई | यह बच्ची और कोई नहीं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाली ‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ रानी गाइदिनल्यू थी |


रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, साल 1915 को भारत के मणिपुर राज्य में पश्चिमी ज़िले में एक छोटे से गांव नुन्ग्काओ में हुआ था | अपने माता-पिता की आठ संतानों में वे पांचवे नंबर की थीं | उनके परिवार का सम्बन्ध गाँव के शाषक वर्ग से था | आस-पास कोई स्कूल न होने के चलते उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हो पाई | गाइदिनल्यू बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं | गाइदिनल्यू ने केवल 13 वर्ष की आयु से ही आन्दोलनों से जुड़ना शुरू कर दिया था | इसी बीच जब गाइदिनल्यू के चचेरे भाई को गिरफ्तार कर अंग्रजी सरकार की ओर से फांसी पर चढ़ा दिया गया, तो  ‘हेराका’ नामक चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया  | जिसके बाद उन्होंने महात्मा गाँधी के आन्दोलन के बारे में सुनकर ब्रिटिश सरकार को किसी भी प्रकार का कर न देने की घोषणा की प्रारंभ में इस आन्दोलन का स्वरुप धार्मिक था पर धीरे-धीरे इसने राजनैतिक रूप धारण कर लिया जब आन्दोलनकारियों ने मणिपुर और नागा क्षेत्रों से अंग्रेजों को खदेड़ना शुरू किया |


नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाए उनके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उन्हें सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे | ब्रिटिश प्रशासन उनकी गतिविधियों से पहले ही बहुत परेशान था पर अब वह और भी ज्यादा सतर्क हो गया और उनके पीछे लग गए | 16 वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे | इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया | वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में काफी निपुण थीं | अंग्रेज़ उन्हें बड़ी खूंखार नेता मानते थे दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उन्हें अपना उद्धारक समझता था |


अंग्रेज सरकार के आदेश पर असम के गवर्नर ने ‘असम राइफल्स’ की दो टुकड़ियाँ उनको और उनकी सेना को पकड़ने के लिए भेज दी | इसके साथ-साथ प्रशासन ने रानी गाइदिनल्यू को पकड़ने में मदद करने के लिए इनाम भी घोषित कर दिया | रानी की ओर से चलाए जा रहे आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए , पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ | इसी बीच सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुलेआम ‘असम राइफल्स’ की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया | स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिन्ल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उनके चार हज़ार नागा साथी रह सकें | इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल, 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया | जिसमें गाइदिनल्यू को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनके कई समर्थकों को भी गिरफ्तार कर लिया गया |


गिरफ्तारी के बाद रानी ने कहा था, “मैं उनके लिए जंगली जानवर के समान थी, इसलिए एक मजबूत रस्सी मेरी कमर से बांधी गई। दूसरे दिन कोहिमा में मेरे दूसरे छोटे भाई की क्रूरता से पिटाई की गई। कड़कड़ाती ठंड में हमारे कपड़े छीन कर हमें रातों में ठिठुरने के लिए छोड़ दिया गया, पर मैंने धीरज नहीं खोया था।” रानी को इंफाल जेल में रखा गया, जहाँ उनपर 10 महीने तक मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई |


प्रशासन ने उनके ज्यादातर सहयोगियों को या तो मौत की सजा दी या जेल में डाल दिया | साल 1933 से लेकर साल 1947 तक रानी गाइदिनल्यू गौहाटी, शिल्लोंग, आइजोल और तुरा जेल में कैद रहीं | साल 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को असम जाने पर रानी गाइदिन्ल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उन्हें ‘नागाओं की रानी’ की संज्ञा दी | नेहरू जी ने उनकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन मणिपुर के एक देशी रियासत होने के चलते इस कार्य में सफलता नहीं मिली | वहीं भारत की आजादी के बाद उनकी रिहाई हुई | कुछ समय अवकाश के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र के कबीले की राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू कर दिया | रानी ने इस देश की आजादी के लिए अपनी जवानी तक बलि पर चढ़ा दी | इस अपूर्व त्याग के लिए उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता |


स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र देकर और राष्ट्रपति की ओर से ‘पद्मभूषण’ की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया  | उन्हें साल 1972(बहत्तर) में  ‘ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार’ और 1983(तिरासी) में ‘विवेकानंद सेवा पुरस्कार’ भी दिया गया था | रानी गाइदिनल्यू का निधन आज ही के दिन 17 फ़रवरी, 1993(तिरानबे) में हुआ | अपने क्षेत्र में रानी के प्रति नागाओं की इतनी अधिक श्रद्धा थी कि उनके छुए जल की बोतल उस समय 10 रुपये में बिकती थी, क्योंकि नागाओं का ऐसा मानना था कि इस जल को पीने मात्र से रोगों से मुक्ति प्राप्त हो सकती है |


दोस्तों आइए अब आखिर में जानते है देश और दुनिया की आज की तारीख यानि 13 फरवरी की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में : 

आज ही के दिन 1959(उनसठ) में दुनिया के पहले वेदर सैटेलाइट वेनगार्ड-2 को अमेरिका ने लॉन्च किया था | 

वहीं साल 1979(उनासी) में चीन की सेना ने वियतनाम पर हमला बोला था | 

साल 1987(सत्तासी) में ब्रिटेन में शरण लेने पहुंचे श्रीलंका के कुछ तमिलों ने हीथ्रो एयरपोर्ट पर निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया | 

आज ही के दिन साल 2004 में फूलनदेवी हत्याकांड का मुख्य आरोपी श्मशेर सिंह राणा तिहाड़ जेल से फरार हो गया था |

वहीं साल 2005 में बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारत की नागरिकता मांगी थी |

आज ही के दिन साल 2009 में चुनाव आयोग ने आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होने तक एग्जिट पोल जारी करने पर रोक लगा दी थी |