आज की तारीख है 23 फरवरी, साल 1907 में अंग्रेज सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई, जिसके खिलाफ देशभर में किसानों की ओर से नाराजगी जताई जा रही थी | इस कानून के खिलाफ सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हुआ और एक पंजाब के एक क्रांतिकारी ने आगे बढ़कर इस विरोध को सुर दिया | उन्होंने पंजाब के किसानों को एकजुट किया और जगह-जगह सभाएं भी आयोजित कीं इन सभाओं में लाला लापजत राय को भी बुलाया गया ... वहीं मार्च 1907 में वह क्रांतिकारी लायलपुर की सभा में पुलिस की नौकरी छोड़ आंदोलन में शामिल हुआ और लाला बाँके दयाल 'पगड़ी संभाल जट्टा' शीर्षक से एक कविता सुनाई | बाद में यह कविता इतनी लोकप्रिय हुई कि उस किसान आंदोलन का नाम ही 'पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन' पड़ गया | यह क्रांतिकारी कोई और नहीं 'भगत सिंह' के चाचा सरदार अजीत सिंह थे | जिन्हें देश को आजादी दिलाने में अपना पूरा जीवन समर्पण कर दिया
अजीत सिंह का जन्म आज ही के दिन 23 फरवरी 1881(इक्यासी) को पंजाब के जालंधर के खटकड़ कलां गांव में हुआ | शहीद भगत सिंह के पिता किशन सिंह उनके बड़े भाई थे | उनके छोटे भाई स्वर्ण सिंह थे, जो 23 साल की ही उम्र में स्वाधीनता संग्राम के दौरान जेल में चले तपेदिक रोग से गुज़र गए थे | तीनों के पिता अर्जन सिंह उन दिनों आज़ादी संग्राम की वाहक कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे और आगे चलकर तीनों भाई भी उसी से जुड़े | सरदार अजीत सिंह ने अपनी शुरुआती पढ़ाई जालंधर से करने के बाद बरेली के लॉ कॉलेज से आगे की पढ़ाई की पढ़ाई के दौरान ही वह भारत के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और अपनी कानून की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया | अजीत सिंह और उनका परिवार आर्य समाज से खासा प्रभावित था और इसका प्रभाव भगत सिंह पर भी पड़ा | अजीत सिंह पंजाब के उन पहले आंदोलनकारियों में से एक थे, जिन्होंने खुले तौर पर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी अपने भतीजे भगत सिंह के लिए भी उन्होंने क्रांति की नींव रखने का काम किया |
लॉ की पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद अजीत सिंह का साल 1906 में बाल गंगाधर तिलक से परिचय हुआ और वह उनसे बेहद प्रभावित हुए | किशन सिंह और अजीत सिंह ने भारत माता सोसाइटी की स्थापना की और अंग्रेज विरोधी किताबें छापनी शुरू कर दीं | इस बारे में अपने लेख 'स्वाधीनता संग्राम में पंजाब का पहला उभार' में भगत सिंह ने लिखा, 'जो युवक लोकमान्य (बालगंगाधर तिलक) के प्रति विशेष रूप से आकर्षित हुए थे, उनमें कुछ पंजाबी नौजवान भी थे। ऐसे ही दो पंजाबी जवान मेरे पिता किशन सिंह और मेरे आदरणीय चाचा सरदार अजीत सिंह जी थे।'
साल 1907 में आएं तीन किसान विरोधी कानून के खिलाफ बिगुल बजाना का काम भी सरदार अजीत सिंह ने ही किया | इस दौरान चलाएं गए 'पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन' के वह नायक थे | अजीत सिंह के बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं | जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 वर्ष थी | इन आदोलनों के दौरान सरदार अजीत सिंह के भाषणों की गूंज अंग्रेजी हुकूमत के कानों में चुभने लगी | अंग्रेज सरकार सरदार अजीत सिंह को शांत कराने का कोई मौका तलाश रही थी और यह मौका उन्हें 21 अप्रैल 1907 को मिल ही गया ... रावलपिंडी की एक सभा में अजीत सिंह ने ऐसा भाषण दिया, जिसे अंग्रेज सरकार ने बागी और देशद्रोही भाषण माना ... उन पर आईपीसी की धारा 124-ए के तहत केस दर्ज किया गया ... हालांकि आंदोलनों का असर यह रहा कि अंग्रेज सरकार ने तीनों कानूनों को वापस ले लिया, मगर लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को छह महीने के लिए बर्मा की मांडले जेल में डाल दिया गया |
मांडले जेल से निकलने के बाद अजीत सिंह दिसंबर 1907 में आयोजित हुई सूरत कांग्रेस में भाग लेने गए, जहां लोकमान्य तिलक ने अजीत सिंह को 'किसानों का राजा' कह कर एक ताज पहनाया | अजीत सिंह ने किसान आंदोलन के अलावा पंजाब औपनिवेशीकरण कानून और पानी के दाम बढ़ाने के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किए | इसके बाद सरदार अजीत सिंह अपने साथी क्रांतिकारी सूफी अंबा प्रसाद के साथ ईरान चले गए और वहां अगले दो साल रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में लगे रहे | दोनों ने मिलकर ऋषिकेश लेथा, जिया उल हक, ठाकुर दास धुरी जैसे कई और आंदोलनकारी देश की आजादी के लिए खड़े किए ... इसके बाद उन्होंने रोम, जिनीवा, पैरिस, रियो डी जनीरो जैसे दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूमकर क्रांतिकारियों को संगठित किया | वहीं साल 1918 में वह सैन फ्रांसिस्को में गदर पार्टी के संपर्क में आए और उनके साथ कई सालों तक काम किया | 1939(उनतालीस) में यूरोप लौटने के बाद उन्होंने इटली में सुभाष चंद्र बोस की भी मदद की |
साल 1946(छियालीस) आते-आते भारत की आजादी की राह साफ होने लगी थी | पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अजीत सिंह से बात की और उन्हें वापस भारत बुला लिया ... कुछ समय तक दिल्ली में रहने के बाद वह हिमाचल प्रदेश के डलहौजी चले गए | आखिरकार 15 अगस्त 1947(सैंतालीस) की वह सुबह आई जिसके लिए सरदार अजीत सिंह ने इतने साल संघर्ष किया, जिस आजादी की राह में उन्होंने अपने भतीजे भगत को भी खोया | मगर आजादी के उस जश्न को वह बाकी लोगों की तरह मना पाते उससे पहले ही उनकी सांसें थम चुकी थीं | सरदार अजीत सिंह का भारत की आजादी के दिन ही 66(छियासठ) साल की उम्र में देहांत हो गया | उनकी याद में डलहौजी के पंजपुला में एक समाधि बनाई गई है, जो अब एक मशहूर पर्यटन स्थल है |
आइए अब आखिर में जानते है देश और दुनिया की आज की तारीख यानि 21 फरवरी की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में :
1468 : छपाई मशीन का आविष्कार करने वाले यूहेन गोटेनबर्ग का निधन।
1768: ब्रिटिश सत्ता को स्वीकार कर चुके हैदराबाद के निजाम के साथ कर्नल स्मिथ ने शांति समझौता किया।
1886: अमेरिका के आविष्कारक और रसायनशास्त्री मार्टिन हेल ने एल्यूमिनियम की खोज की।
1940: यूनान के करीब स्थित लासी द्वीप पर रूसी सेनाओं ने कब्जा किया।
1969 : भारतीय फिल्म अभिनेत्री मधुबाला का निधन। 1970 : आज के दिन को गुयाना देश का राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया।
2004: हिन्दी फिल्मों के प्रतिभाशाली अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और संपादक विजय आनन्द का निधन। उनकी फिल्म 'गाइड' को बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है।
2010: कतर ने भारत के मशहूर चित्रकार एम.एफ. हुसैन को नागरिकता दी।