भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी वाला यह देश आज दुनिया के दूसरे देशों को भी लोकतन्त्र की सीख दे रहा है और यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि राष्ट्र और समाज की उन्नति लोकतन्त्र से ही संभव है। वैसे तो हमारा देश अपने संविधान से संचालित होता है लेकिन यदि उस संविधान को लागू करने वाले लोग ना हो तो यही संविधान एक किताब से अधिक कुछ नहीं रह जाता। इस संविधान को संचालित करने में सबसे अहम भूमिका यदि किसी की है तो वे हैं हमारे देश के सिविल सेवक। संविधान ने सिविल सेवा को राष्ट्र निर्माण के लिए अपरिहार्य माना है और यही कारण है कि समय समय पर सिविल सेवक के प्राधिकार और उनका उपयोग अलग अलग रूप में जनता के सामने आते रहते हैं। 


अप्रैल 2019 में, आम चुनावों के दौरान एक तस्वीर सोश्ल मीडिया में खूब चर्चित रही थी। यह तस्वीर थी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जो अपना नामांकन भरने वाराणसी के जिलाधिकारी के पास पहुंचे थे। उस तस्वीर की खासियत यह थी कि उसमे प्रधानमंत्री खड़े हो कर अपना नामांकन पत्र जिलाधिकारी को सौंप रहे थे जबकि वह नामांकन पत्र प्राप्त करने वाला अधिकारी बैठा हुआ था। अब जिनको जानकारी नहीं थी उन्होने उस आईएएस अधिकारी की इस हरकत को दृष्टता माना था लेकिन जो जानकार थे वे जानते थे कि उस आईएएस अधिकारी को ऐसा करने की अनुमति, सहमति और शक्ति भारत के संविधान द्वारा मिली है जो इस देश के लोकतन्त्र ने अपने लिए चुना है। दरअसल जब प्रधानमंत्री अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रहे थे उस वक़्त वो देश के प्रधानमंत्री के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे आम इंसान के रूप में खड़े थे जो चुनाव लड़ने की इच्छा रखता है और वह आईएएस अधिकारी उस जिले का सर्वोच्च निर्वाचन अधिकारी उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे रहा था। जी हाँ दोस्तों, उस क्षण में प्रधानमंत्री का नामांकन एक जिलाधिकारी की स्वीकृति पर निर्भर कर रहा था। 


यही तो हमारे लोकतन्त्र की खूबसूरती है जिसमे एक ऐसा भी समय आता है जब देश का प्रधानमंत्री भी एक जिलाधिकारी के सामने याचक की भूमिका में खड़ा रहता है। सामान्यतः लोकतंत्र में शासन के 3 मूलभूत स्तम्भ होते हैं - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इसके अलावा लोकतंत्र में मीडिया को चौथे स्तम्भ के रूप में पेश किया जाता है। 


भारत में कार्यपालिका का पुनः दो स्वरूप देखने को मिलता है - एक अस्थाई कार्यपालिका और दूसरी स्थाई कार्यपालिका। अस्थाई कार्यपालिका के रूप में मंत्रिपरिषद की भूमिका होती है, जो जनता के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं। वहीं स्थाई कार्यपालिका में लोक सेवकों की भूमिका होती है, जो अपनी विशेषज्ञता और गुणवत्ता के आधार पर जन सेवा करते हैं। 


वैसे तो लोकतंत्र का हर स्तंभ बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और सबकी अपनी अपनी भूमिका होती है। लेकिन इन सबमें लोक सेवकों की भूमिका काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि वे जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं। सरकार की तरफ से लोक सेवक मुख्यतः तीन प्रकार के काम करते हैं: 

• सूचना प्रदाता और ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ी जानकारियाँ उपलब्ध कराना 

• तमाम मामलों पर सरकार को परामर्श देना 

• नीतियों, समस्याओं और उपायों का विश्लेषण करना 

• आमजन के नज़रिए से लोक सेवकों के निम्नलिखित प्रमुख काम होते हैं: 

• विधि का शासन - जीरो टॉलरेंस की रणनीति बहाल करना 

• संस्थानों को जीवंत, उत्तरदायी और जवाबदेह बनाना

 • सक्रिय नागरिकों की भागीदारी – विकेंद्रीकरण सुनिश्चित करना 

• शासन में नैतिकता और पारदर्शिता बनाये रखना 

• नागरिक सेवाओं को हर तरीके से दिन-ब-दिन बेहतर बनाना


लोक सेवा जो कि नौकरशाही के द्वारा परिचालित होती है, लोकतंत्र का मुख्य वाहक है। वस्तुत: लोकतंत्र में लोकनीति निर्माण का कार्य विधायिका करती है किन्तु इन नीतियों या कानूनों के क्रियान्वयन का दायित्व सिविल सेवा का होता है। लोकतंत्र में सरकार की सफलता बहुत कुछ सिविल सेवा की क्षमता पर निर्भर करती है क्योंकि एक तरफ यह सरकार का वह चेहरा होता है, जो कि आम जनता के बीच होता है तो दूसरी तरफ जनता की भावनाओं से सरकार को अवगत कराने का उत्तरदायित्व भी सिविल सेवकों का ही होता है क्‍योंकि ये इनके बीच रहकर कार्य करते हैं।