अगर आप यूपीएससी में पूछे गए सवालों को ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि यह बहुत ही छोटे होते हैं लेकिन इनमे प्रयुक्त शब्दों का अर्थ बहुत ही गहरा होता है। कई बार स्टूडेंट्स इसी उधेड़ बुन में लगे रहते हैं कि आखिर सवाल में पूछा क्या जा रहा है। ऐसे में सवाल का जवाब देने से पहले यह जरूरी है कि आप उसकी आवश्यकता को समझें कि आखिर आपको उत्तर किस तरह से देना है। आज के विडियो में हम इसी टॉपिक पर करेंगे।
उत्तर-लेखन प्रक्रिया का सबसे पहला चरण यही है कि उम्मीदवार प्रश्न को कितने सटीक तरीके से समझता है तथा उसमें छिपे विभिन्न उप-प्रश्नों तथा उनके पारस्परिक संबंधों को कैसे परिभाषित करता है? सच तो यह है कि आधे से अधिक अभ्यर्थी इस पहले चरण में ही गंभीर गलतियाँ कर बैठते हैं। प्रश्न को समझने का अर्थ यह है कि प्रश्नकर्त्ता हमसे क्या पूछना चाहता है? कई बार प्रश्न की भाषा ऐसी होती है कि हम संदेह में रहते हैं कि क्या लिखें और क्या छोड़ें? इस समस्या का निराकरण करने के लिये प्रश्न को समझने की क्षमता का विकास करना आवश्यक है।
प्रश्न को ठीक से समझने के लिये मुख्यतः दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिये-
·
प्रश्न के अंत
में किस शब्द का प्रयोग किया गया है।
·
प्रश्न के कथन
में कितने तार्किक हिस्से विद्यमान हैं और उन सभी में आपसी संबंध क्या हैं?
प्रश्न के अंत
में दिये गए शब्दों से आशय उन शब्दों से है जो बताते हैं कि प्रश्न के संबंध में
अभ्यर्थी को क्या करना है? ऐसे शब्दों में विवेचन
कीजिये, विश्लेषण कीजिये, प्रकाश डालिये, व्याख्या कीजिये, मूल्यांकन कीजिये,
आलोचनात्मक मूल्यांकन, परीक्षण, निरीक्षण, समीक्षा, आलोचना, समालोचना, वर्णन/विवरण एवं स्पष्ट
कीजिये/स्पष्टीकरण दीजिये इत्यादि शामिल हैं। इन शब्दों के आधार पर तय होता है कि
परीक्षक अभ्यर्थी से उत्तर में क्या उम्मीद कर रहा है? यह सही है कि बहुत से परीक्षक खुद ही इन शब्दों के प्रति हमेशा चौकस नहीं रहते, किंतु अभ्यर्थियों को यही मान कर चलना चाहिये कि परीक्षक
इन्हीं शब्दों को आधार बनाकर ही उत्तर का मूल्यांकन करते हैं।
व्याख्या/वर्णन/विवरण/स्पष्ट
कीजिये/ स्पष्टीकरण दीजिये/प्रकाश डालिये:
इन सभी शब्दों से
प्रायः समान आशय व्यक्त होते हैं।
ऐसे प्रश्नों में
अभ्यर्थी से सिर्फ इतनी अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए प्रश्न से संबंधित
जानकारियाँ सरल भाषा में व्यक्त कर दे।
वर्णन और विवरण
वाले प्रश्नों में तथ्यों की गुंजाइश ज़्यादा होती है जबकि ‘व्याख्या कीजिये’, ‘प्रकाश डालिये’ या ‘स्पष्टीकरण दीजिये’ वाले प्रश्नों में
पूछे गए विषय को सरल भाषा में समझाते हुए लिखने की अपेक्षा होती है।
आलोचना/समीक्षा/समालोचना/परीक्षा/परीक्षण/निरीक्षण/गुण-दोष विवेचनः
ऐसे सभी प्रश्नों
को एक कैटेगरी में रखा जा सकता है।
ऐसे प्रश्न
उम्मीदवार से किसी तथ्य या कथन की अच्छाइयों और बुराइयों की गहरी समझ की अपेक्षा
करते हैं। आलोचना शब्द से यह भाव ज़रूर निकलता है कि अभ्यर्थी को इसमें पूछे गए
विषय से जुड़ी नकारात्मक बातें लिखनी हैं किंतु सच यह है कि आलोचना का सही अर्थ गुण
और दोष दोनों पक्षों पर ध्यान देना है।
मूल्यांकन/आलोचनात्मक मूल्यांकनः
मूल्यांकन का
अर्थ होता है किसी कथन या वस्तु के मूल्य का अंकन या निर्धारण करना। ऐसे प्रश्नों
में अभ्यर्थी से अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए विषय का सार्वकालिक या वर्तमान
महत्त्व रेखांकित करे,
उसकी कमियाँ भी बताए और
अंत में स्पष्ट करे कि उस कथन या वस्तु की समग्र उपयोगिता कितनी है?
मूल्यांकन से पहले
आलोचनात्मक लिखा हो या नहीं, तार्किक रूप से दोनों
बातों को एक ही समझना चाहिये।
मूल्यांकन की कोई
भी गंभीर प्रक्रिया तभी पूरी हो सकती है जब उसके मूल में आलोचनात्मक पक्ष का ध्यान
रखा गया हो।
सार यह है कि
आलोचनात्मक मूल्यांकन वाले प्रश्नों में अभ्यर्थी को पहले गुण और दोष बताने
चाहियें और अंत में उन दोनों की तुलना के आधार पर यह स्पष्ट करना चाहिये कि उस कथन
या वस्तु का क्या और कितना महत्त्व है?
तो जैसा कि आप
देख सकते हैं कि आपको सबसे पहले प्रश्न के आखिरी हिस्से पर ध्यान देना चाहिए। और
वहीं से आपको अपने उत्तर की दिशा तय करनी चाहिए।