आसान नहीं रहा द्रौपदी मुर्मू का जीवन
दिल्ली से दूर ओडिशा का पहाड़पुर गांव जहां गांव के प्रवेश द्वार पर एक बैनर लगा है | जिसके दोनों तरफ द्रौपदी मुर्मू की तस्वीरें लगी हुई हैं | इसके साथ ही लिखा है | राष्ट्रपति पद की प्रार्थिनी द्रौपदी मुर्मू पहाड़पुर गांव आपका स्वागत करता है | साथ ही द्वार पर एक बड़ी सी प्रतिमा लगी है | जो द्रौपदी के पति की है | जिस पर ओडिशा के ही दो कवियों ने कविता की कुछ पंक्तियां लिखी हुई हैं |
इस द्वार से अंदर दाखिल होने पर एक स्कूल दिखाई देते है | जिसका नाम SLS यानि श्याम, लक्ष्मण, शिपुन उच्च प्राथमिक आवासीय विद्यालय है | कभी यह द्रौपदी का ससुराल हुआ करता था | जहां वह दुल्हन बनकर आईं थीं | उस समय यह न तो पक्की दीवारें थीं और न हीं पक्की छत | खपरैल-फूस से बना घर और बांस का छोटा सा दरवाजा लेकिन साल 2010 से 2014 के बाद यह सब कुछ बदल गया | इन्ही 4 सालों के अंदर इस घर ने 3 ट्रेजडी देखीं एक बाद एक 3 लाशें इस घर से निकली और गांव में दफन की गई | इन 4 सालों में द्रौपदी ने अपने 2 बेटों और पति की खो दिया | बताया जाता है कि साल 2010 में उनके बड़े बेटे की मौत रहस्यमयी ढंग से हुई थी | एक दिन जब वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके घर आया और अपने कमरें में गया, इसके बाद जब दरवाजा खोला गया तो वह मरा हुआ मिला | वहीं 2 साल 2013 में द्रौपदी के छोटे बेटे की मौत सड़क हादसे में हो गई | द्रौपदी से उबर भी नहीं पाई थी की तभी साल 2014 में उनके पति का साथ भी छुट गया |
जानकारी के अनुसार द्रौपदी के जीवन की पहली ट्रेजडी जिसका जिक्र गांव में कोई नहीं करता | उनकी पहली संतान की मौत हैं जो महज 3 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गई | इस बारे में उनकी भाभी शाक्यमुनि कहती हैं 'जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी 6 महीने तक डिप्रेशन से उबर नहीं पाईं थीं | उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था | तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया | शायद उसी ने उन्हें पहाड़ जैसे दुखों को सहने शक्ति दी | वे कहती हैं | जो द्रौपदी बड़े बेटे की मौत से टूट गई थी | उसी द्रौपदी ने छोटे बेटे की मौत की खबर फोन पर देते वक्त कहा- रोकर घर मत आना | जैसे सामान्य समय में घर में मेहमान आते हैं वैसे आना |
इस बारे में रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की मुखिया सुप्रिया कहती हैं | जब बड़ा बेटा खत्म हुआ था तो द्रौपदी बिल्कुल हिल गईं थीं | उन्होंने अपने घर हमें बुलाया और कहा कि कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करें | इस दौरान हमने उनको अपने सेंटर पर आने को कहा | जिसके बाद वह सेंटर पर आने लगीं | वह वक्त की पाबंद इतनी कि कभी हम लोग भी 5 मिनट लेट हो जाते थे | पर वह कभी नहीं हुईं | साल 2014 तक तो वह सेंटर आती रहीं | गवर्नर बनने के बाद एक दो बार ही आईं, लेकिन उनका ध्यान कभी नहीं छूटा रूटीन कभी नहीं टूटा | वो जितनी मिलनसार हैं | उतनी ही डाउन टु अर्थ उनके अपने छूटे तो उन्होंने दूसरों को अपना बना लिया | वे कहती हैं | द्रौपदी अपने साथ हमेशा एक ट्रांसलाइट और शिव बाबा की छोटी पुस्तिका रखती हैं | ताकि कहीं दूसरी जगह जाने-आने पर भी उनका ध्यान का क्रम न टूटे | उम्मीद है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी वो इसे जारी रखेंगी |
उसी गांव की रहने वाली सुनीता मांझी पिछले साल दिसंबर में द्रौपदी मुर्मू के साथ रही थीं | उनका कहना हैं कि द्रौपदी जी कितनी भी व्यस्त रहें लेकिन ध्यान सुबह की सैर और योग कभी नहीं छोड़ती थीं | हर रोज सुबह 3.30 बजे बिस्तर छोड़ देती थीं' | वहीं उनके करीबी और रायरंगपुर में MP के रिप्रेजेंटेटिव संजय महतो कहते हैं | मुर्मू के गवर्नर रहते हुए झारखंड राजभवन के दरवाजे सबके लिए खुले रहते थे | किसी ने मिलने की इजाजत मांगी तो जवाब हां में ही मिला | उन्होंने अपने पुराने दिनों को खुद पर हावी नहीं होने दिया |
द्रौपदी मुर्मू बचपन से ही दृढ़ और सच के साथ मजबूती से डटे रहने वाली रही हैं | एक किस्सा याद करते हुए मुर्मू को पढ़ाने वाले बासुदेव बेहरा कहते हैं | 'वो क्लास टॉपर थीं | हमेशा सबसे ज्यादा नंबर उन्हीं के आते थे | नियम के मुताबिक मॉनिटर उन्हें ही बनना चाहिए था | लेकिन क्लास में लड़कियों की संख्या काफी कम थी | 40 छात्रों में सिर्फ 8 लड़कियां थीं | इस वजह से हमारे मन में शंका थी कि लड़की होकर वो पूरे क्लास को कैसे संभालेंगी, लेकिन द्रौपदी अड़ गईं | आखिरकार वही मॉनिटर बनीं |
आपको बता दें साल 2017 में जब मुर्मू झारखंड की राज्यपाल थीं | भाजपा की सरकार CNT-SPT संशोधन विधेयक लेकर आई थीं | तब मुर्मू ने उस विधेयक को वापस कर दिया था | साथ ही उन्होंने आदिवासियों के हित को दरकिनार करने और इस बिल के मकसद पर कई सवाल भी उठाए थे |