क्यों हो रहा है भारत में कोयला संकट? 


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  • घरेलू कोयले की आपूर्ति में आ रही बाधाओं के कारण देश में उभरते ऊर्जा संकट का सामना करने के लिए, केंद्र सरकार ने ‘सम्मिश्रण उद्देश्यों’ सहित बिजली उत्पादन के लिए आयातित कोयले के उपयोग को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाने का फैसला किया है।
 इस संकट से उबरने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं-
  • घरेलू कोयले की मांग पर दबाव कम करने के लिए सभी कंपनियों को अपने बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता से संचालित करने के लिए कहा गया है।
  • केंद्र सरकार ने दिसंबर 2022 तक आयातित कोयले की लागत को ‘पास-थ्रू’ (Pass-Through) के रूप में अनुमति देने का निर्णय लिया है।
  • सरकार ने सभी राज्यों से विवेचित कोयला स्टॉक मानदंडों के अनुसार- बिजली संयंत्र में पर्याप्त कोयला स्टॉक बनाए रखने के लिए मात्र 4% के बजाय 10% की सीमा तक ‘सम्मिश्रण उद्देश्यों’ के लिए आयातित कोयले का उपयोग करने के लिए कहा है।
  • भारत, विश्व में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक, उपभोक्ता और उत्पादक देश है, और इसके पास कोयले का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। लेकिन बिजली की मांग में भारी वृद्धि- (जोकि महामारी से पहले के स्तर को पार कर चुकी है) का मतलब है कि राज्य द्वारा संचालित ‘कोल इंडिया’ द्वारा की जा रही कोयले की आपूर्ति अब पर्याप्त नहीं है।
क्या है कोयला-संकट की वर्तमान स्थिति?
  • कोयला-संकट की वर्तमान स्थिति “टच एंड गो” अर्थात ‘उपभोग करो और ख़तम’ जैसी है, और यह अगले छह महीने में काफी “असहज” हो सकती है।
  • भारत के ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले का भंडार, केवल कुछ दिनों के ईंधन की आपूर्ति कर सकता है।
  • विद्युत् मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, देश के ताप विद्युत संयंत्रों में पिछले महीने के अंत में कोयले का स्टॉक मानक आवश्यकता का केवल 36% था जो केवल लगभग 11 दिनों के लिए पर्याप्त होगा।
  • यह स्थिति काफी चिंताजनक है, क्योंकि भारत के कुल विद्युत् स्रोतों में कोयला-चालित संयंत्रों का योगदान लगभग 70% हैं।
  • यह उम्मीद की जाती है कि अप्रैल 2022 में उर्जा की चरम मांग 210 GW तक बढ़ सकती है।इसलिए, सभी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के पास पर्याप्त कोयला भंडार होना चाहिए, जिससे ‘पीक आवर्स’ के दौरान लगभग 160 गीगावाट तक कोयला आधारित बिजली की आपूर्ति हो सके।
क्या हैं इस कमी के कारण व कमी से पड़ने वाले प्रभाव ?
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोयले की उच्च कीमतों के कारण आयात में तेज गिरावट।
  • महामारी की दूसरी लहर के बाद बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों ने कोयले की मांग में हुई वृद्धि।
  • अगर उद्योगों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है, तो इससे भारत की आर्थिक बहाली में देरी हो सकती है।
  • कुछ व्यवसायों को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ सकती है।
  • भारत की आबादी और अविकसित ऊर्जा बुनियादी ढांचे को देखते हुए बिजली संकट काफी लंबा और कठिन हो सकता है।
क्या है भारत की आगे की कार्रवाई?
  • ‘कोल इंडिया’ और ‘एनटीपीसी लिमिटेड’ द्वारा कोयला खानों से उत्पादन बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है।
  • सरकार द्वारा ‘आपूर्ति’ में वृद्धि करने हेतु और अधिक खदानों को चालू करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • अधिक वित्तीय लागत होने के बावजूद, भारत को अपने आयात को बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
कोयला क्षेत्र में हुए हालिया सुधार?
  • कोयले के वाणिज्यिक खनन की अनुमति दी गयी है, निजी क्षेत्र को 50 ब्लॉकों में खनन करने का प्रस्ताव दिया गया है।
  • बिजली संयंत्रों को “धोए गए” कोयले का उपयोग करने के लिए आवश्यक विनियमन को हटाकर इस क्षेत्र में प्रवेश मानदंडों को उदार बनाया जाएगा।
  • निजी कंपनियों को ‘निश्चित लागत’ के स्थान पर ‘राजस्व बंटवारे’ के आधार पर कोयला ब्लॉकों की पेशकश की जाएगी।
  • राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से ‘कोयला गैसीकरण/द्रवीकरण’ को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  • कोल इंडिया की कोयला खदानों से ‘कोल बेड मीथेन’ (CBM) निष्कर्षण अधिकार नीलाम किए जाएंगे।
                
कोयला क्षेत्र में आने वाली आगे की चुनौतियां?
  • कोयला, भारत में सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा जरूरतों के 55% की आपूर्ति करता है। देश की औद्योगिक विरासत, स्वदेशी कोयले पर टिकी हुई है।
  • पिछले चार दशकों में भारत में वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत में लगभग 700% की वृद्धि हुई है।
  • भारत में वर्तमान प्रति व्यक्ति वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत लगभग 350 किग्रा/वर्ष है जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
  • बढ़ती आबादी, वृद्धिशील अर्थव्यवस्था और जीवन की बेहतर गुणवत्ता की तलाश से प्रेरित, भारत में ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की सीमित भंडार क्षमता, जलविद्युत परियोजना पर पर्यावरण संरक्षण प्रतिबंध और परमाणु ऊर्जा की भू-राजनीतिक धारणा को ध्यान में रखते हुए, कोयला, भारत के ऊर्जा परिदृश्य के केंद्र पर बना रहेगा।
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देखते रहिए 
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नमस्कार

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