सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले


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सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले ?

  • वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट के कई वर्तमान न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो रहे हैं, परिणामस्वरूप इस वर्ष शीर्ष अदालत में कई पद रिक्त हो जाएंगे।

क्या है सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी संबंधित चिंताएं:

  • सुप्रीम कोर्ट में यह सेवानिवृतियाँ ऐसे समय में हो रही है, जब अदालत विशेष रूप से महामारी की क्रूर- लहरों के बाद खुद को स्थिर करने की प्रक्रिया में है, और अदालत में बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं।
  • भारत की कानूनी प्रणाली में, विश्व में ‘लंबित मामलों का सबसे बड़ा बैकलॉग’ अर्थात पिछले मामलों का ढेर है – लगभग 30 मिलियन मामले लंबित है। और,
  • यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जोकि स्वयं की कानूनी व्यवस्था की खामियों को दर्शाता है।और इस बैकलॉग के कारण, भारत की जेलों में अधिकांश कैदी, मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे विचाराधीन बंदी हैं।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले:

  • सुप्रीम कोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2022 तक शीर्ष अदलत में 70,362 मामले लंबित हैं।
  • इनमे से 19% से अधिक मामले ‘न्यायिक सुनवाई’ के लिए अदालत की पीठ के समक्ष पेश होने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इनकी आवश्यक प्रारंभिक प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी है।
  • 52,110 मामले अभी प्रवेश के स्तर पर ही हैं, वहीं 18,522 मामले नियमित सुनवाई से संबंधित हैं।
  • संविधान पीठ के समक्ष मामलों (मुख्य और सम्बद्ध मामलों) की संख्या कुल 422 है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो साल के ‘वर्चुअल सिस्टम’ के बाद, ‘पूर्ण वास्तविक सुनवाई’ फिर से शुरू की है।

लंबित मामलों को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • सरकार को एक कुशल और जिम्मेदार ‘वादी’ में बदलने के लिए “राष्ट्रीय मुक़दमा नीति 2010” (National Litigation Policy 2010) को लागू किया गया है।
  • ‘राष्ट्रीय मुक़दमा नीति’ 2010 के अनुरूप सभी राज्यों द्वारा ‘राज्य मुक़दमा नीतियां’ (State Litigation Policies) तैयार की गयी हैं।
  • जिन मामलों में सरकार एक पक्ष के रूप में है, उन पर नज़र रखने के उद्देश्य से 2015 में ‘कानूनी सूचना प्रबंधन और ब्रीफिंग सिस्टम’ (Legal Information Management and Briefing System – LIMBS) तैयार किया गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है, कि 6 महीने या एक साल के कारावास की सजा पाने वाले अपराधियों को, पहले से ही भरी हुई जेलों पर और भार डालने के लिए भेजने के बजाय उन्हें सामाजिक सेवा कर्तव्यों का आवंटन किया जाना चाहिए। 

क्या है समय की मांग:

1. राष्ट्रीय मुक़दमा नीति को संशोधित किया जाए।

2. मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने के लिए ‘वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र’ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

3. सरकार और न्यायपालिका के मध्य समन्वित कार्रवाई की जानी चाहिए।

4. उच्च न्यायालयों पर बोझ कम करने के लिए निचली अदालतों में न्यायिक क्षमता को मजबूत किया जाना चाहिए।

5. न्यायपालिका पर व्यय बढ़ाना चाहिए।

6. कोर्ट केस मैनेजमेंट और कोर्ट ऑटोमेशन सिस्टम में सुधार किया जाना चाहिए।

7. विषय-विशिष्ट ‘पीठों’ का गठन।

8. मजबूत आंतरिक विवाद समाधान तंत्र।

9. न्यायाधीशों को छोटे और अधिक सुस्पष्ट निर्णय लिखने चाहिए।

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देखते रहिए 
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