भारतीय जनता पार्टी का इतिहास|| जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का सफ़र 

आईएएस की परीक्षा में सफल होना कठिन है और जब इसकी तैयारी सही समय पर ना शुरू की जाये तो यह और भी कठिन हो जाता है। IAS परीक्षा न केवल अपने पाठ्यक्रम की लंबाई के संदर्भ में चुनौतीपूर्ण है, बल्कि इसकी अत्यधिक अप्रत्याशित प्रकृति के कारण भी यह चुनौतीपूर्ण है। वैसे तो किसी भी परीक्षा की तैयारी के लिए सही समय का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि उसी समय से तैयारी शुरू कर उसे सही समय बना लेना चाहिए, लेकिन यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में दिक्कत यह है कि इसकी परीक्षा का पैटर्न इतना लंबा और विस्तृत है कि आपको इसके लिए काफी समय चाहिए होगा। आज की विडियो में "भारतीय जनता पार्टी का इतिहास ".

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"भारतीय जनता पार्टी का इतिहास "जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का सफ़र 

  • देश के राजनीतिक इतिहास में आज का दिन महत्वपूर्ण है विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी का आज 'बर्थडे’ यानि स्थापना दिवस ' है। 
  • जी हां, आज बीजेपी अपना 42वां स्थापना दिवस मना रही है। वैसे, पार्टी ने भले ही 6 अप्रैल 1980 को आकार लिया हो, पर उसके संस्थापकों की पार्टी भारतीय जनसंघ आजादी के बाद ही अस्तित्व में आ गई थी। 
  • एक समय ऐसा भी आया था कि जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने नई पार्टी की नींव रखने की पृष्ठभूमि तैयार की।
  • वो 1980 का दौर था। जनता पार्टी के भीतर जनसंघ को निशाने पर लिया जाने लगा था। चुनाव में हार के लिए जनसंघ को दोषी ठहराया गया। 
  • आखिर जनता पार्टी ने 'दोहरी सदस्यता' पर अंतिम फैसला लेने के लिए 4 अप्रैल 1980 को बैठक बुलाने का फैसला किया। अटल विहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने घोषणा कर दी कि 5 और 6 अप्रैल को जनसंघ की एक रैली होगी। 
  • जनता पार्टी की बैठक में 14 के मुकाबले 17 वोटों के बहुमत से राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने निर्णय लिया कि जनता पार्टी का कोई सदस्य RSS का भी सदस्य नहीं हो सकता। 
  • आडवाणी और वाजपेयी समेत जनसंघ के नेताओं ने इसे आभासी निष्कासन माना और RSS को छोड़ने के बजाय जनता पार्टी को छोड़ने का फैसला कर लिया।अगर आडवाणी और वाजपेयी इस तरह जनता पार्टी से निकाले न जाते तो शायद देश की सियासत शायद कुछ और ही करवट ले लेती।लेकिन
  •  1951 से 1980 में नए नामकरण तक और 1984 में 2 सीटें जीतने वाली पार्टी के 2014 आते-आते प्रचंड बहुमत मिलने तक की कहानी बेहद ही दिलचस्प है।
  • जिस पार्टी को अटल-आडवाणी और मुरली मनोहर की त्रिमूर्ति ने खड़ा किया वह कैसे 2014 में दुनिया की सबसे पार्टी बनाने में कामयाब हुई।
 जनसंघ की स्थापना
  • कहानी शुरू होती है 21 अक्टूबर 1951 से। उस दिन दिल्ली के कन्या माध्यमिक विद्यालय परिसर में भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। 
  • आयताकार भगवा ध्वज को स्वीकार किया गया और उसी में अंकित दीपक को चुनाव चिन्ह बनाया गया। 
  • वर्ष 1952 में चुनाव होते हैं और आम चुनावों में भारतीय जनसंघ को तीन सीटें ही मिलती हैं 
  • अगले ही साल 1953 में एक बड़ी घटना घटती है। भारतीय जनसंघ ने कश्मीर और राष्ट्रीय एकता के मसले पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया। कश्मीर को किसी भी प्रकार का विशेष अनुदान देने का विरोध किया।
  • डॉ. श्यामा प्रसाद को गिरफ्तार कर कश्मीर की जेल में डाल दिया जाता है। वहां रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो जाती है। 

1957 से 1967 का दौर
  • 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने 4 सीटें जीतीं और मतदान प्रतिशत लगभग दोगुना होकर 5.93 प्रतिशत हो गया। 1962 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने 14 सीटें जीतीं। 1967 में यूपी, एमपी और हरियाणा में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लोकसभा चुनाव में 35 सीटें मिलीं। कई राज्यों में कांग्रेस विरोधी सरकारें बनीं जिनमें भारतीय जनसंघ साझीदार था।
आपातकाल और जनता पार्टी में विलय
  • 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को भारी जीत मिली लेकिन भारतीय जनसंघ ने भी 22 सीटों पर जीत दर्ज की। 1975-1977 तक देश में आपातकाल लागू होता है और कई नेता जेल में रखे जाते हैं । आपातकाल के बाद 1977 में भारतीय जनसंघ का कई अन्य दलों से विलय होकर जनता पार्टी का उदय हुआ। 
पहले चुनाव में भाजपा को 2 सीटें
  • जनता पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई शुरू होती है और पार्टी टूट जाती है। 
  • 1980 में देश के राजनीतिक पटल पर अस्तित्व में आती है भारतीय जनता पार्टी। 
  • जनसंघ के नेताओं ने जनता पार्टी छोड़ दी और 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हो गया 
  • 31 अक्टूबर 1984 में देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हुई और देश सिख विरोध दंगे भड़क उठे। 
  • इसी के बाद लोकसभा के चुनाव होते हैं और सहानुभूति लहर में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत मिलती है और भाजपा अपने पहले चुनाव में केवल दो सीटें ही जीत पाती है।
  • साल आता है 1986 लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बने। 1986-89 के बीच बोफोर्स कांड को लेकर भाजपा बड़ा आंदोलन चलाती है।
  • 1989 में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन होता है। इस बार के चुनाव में भाजपा 85 सीटें जीतने में कामयाब होती है। 
  • इस चुनाव में बोफोर्स का मुद्दा छाया रहा और भाजपा ने नारा दिया- सबके लिए न्याय, तुष्टीकरण किसी का नहीं। 
  • आज भी भाजपा इसे नए रूप में आगे बढ़ा रही है।
राममंदिर आंदोलन
  • जून 1989 में पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी राम जन्मभूमि आंदोलन के समर्थन का फैसला करती है। 
  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का यह मुद्दा देश की सुर्खियां बनता है। और 25 सितंबर को आडवाणी की राम रथयात्रा सोमनाथ से शुरू होती है।
  • 30 अक्टूबर को इस रथयात्रा को अयोध्या पहुंचकर 'कार सेवा' में सहभागी होना था। 
  • बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसके बाद भी अयोध्या में बड़ी संख्या में कारसेवक पहुंच गए थे।
  • इसके बाद हुए 1991 के आम चुनाव में भाजपा को 120 सीटें मिलती हैं। 
  • 1991 से 1993 तक मुरली मनोहर जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 
  • इसके बाद 1998 तक अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवाणी । यूपी, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा का जनाधार बढ़ने लगा था।
जब अटल बने पीएम 
  • 1996 में संसदीय चुनाव में भाजपा को 161 सीटें मिलीं और संसद की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 
  • अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली,लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित नहीं होने के कारण सरकार 13 दिनों बाद गिर गई। 
  • जनता दल के नेतृत्व में गठबंधन दलों ने 1996 में सरकार बनाई लेकिन यह सरकार भी नहीं चली और 1998 में मध्यावधि चुनाव कराए गए।
  • 1998 में भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का नेतृत्व करते हुए चुनाव लड़ा जिसमें सहयोगी थे समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना, AIADMK और बीजू जनता दल। 
  • अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। हालांकि अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने के बाद 1999 में यह सरकार गिर गई और फिर से चुनाव कराए गए। इसी साल देश में पोखरण परमाणु परीक्षण भी हुआ था।
  • 13 अक्टूबर 1999 को NDA ने अन्नाद्रमुक के बगैर 303 सीटें जीतीं और स्पष्ट बहुमत हासिल किया। 
  • भाजपा को सबसे ज्यादा 183 सीटें मिली थीं। अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। 
लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री बने। 
  • यह सरकार पूरे पांच साल रही।लेकिन 2004 में एनडीए का 'इंडिया शाइनिंग' का नारा फ्लॉप साबित हुआ।समय से छह महीने पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने चुनावों की घोषणा की और कांग्रेस गठबंधन (UPA) को 222 और एनडीए को 186 सीटें मिलीं।2009 के आम चुनाव में लोकसभा में भाजपा की सीटें घटकर 116 रह गईं।
फिर आया 2014
  • 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व के सहारे भाजपा 282 सीटें जीत लेती है और 543 सीटों वाली लोकसभा में एनडीए की संख्या 336 तक पहुंच गई। 
  • 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी देश के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हैं।
  • चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 31 प्रतिशत और अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर यह 38 प्रतिशत रहा।
  • खास बात यह थी कि पार्टी की स्थापना के बाद पहली बार भाजपा ने अपने दम पर संसद में स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
  • पीएम नरेंद्र मोदी की लहर पांच साल बाद भी बरकरार रहती है। 
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 303 सीटें जीतती है। भाजपा की ऐतिहासिक जीत में 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' नारा गूंजता रहता है।
148 से बढ़कर विधायक 1300 पहुंचे
  • 42 साल में बीजेपी के विधायक 'दिन दूना रात चौगुना' की रफ्तार से बढ़ते गए। 
  • जहाँ 1981 में पार्टी के पास विधायकों की संख्या 148 थी तो अभी 2022 में भाजपा के देश में कुल 1296 विधायक हैं।
लोकसभा में 2 से 303 सांसद
  • इसी तरह से सांसदों की बात करें तो 1984 में 2 सांसद थे तो  2019 के चुनाव में पार्टी के 303 सांसद जीतकर लोकसभा में पहुंचे।
  • 1 करोड़ से 22 करोड़ वोट का सफर
  • इसी तरह वोट शेयर की बात करें तो जहाँ 1984 में 1.82 करोड़ वोट मिले थे वहीँ 2019 में भाजपा को 22.9 करोड़ वोट मिले।
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