महानायक लाल – बाल - पाल

यूपीएससी परीक्षा का पाठ्यक्रम बहुत बड़ा होता है यह तो सब जानते हैं। इसमें कई विषय हाल ही के दिनों में चल रही बहस और मुद्दों से संबंधित हो सकते हैं। हाल के समय का मतलब एक वर्ष नहीं है, बल्कि यह एक से लेकर तीन साल तक की घटनाओं से संबंधित हो सकते हैं। उम्मीदवारों के मन में हमेशा यह सवाल रहता है कि इतना बड़ा घटनाक्रम कैसे cover करें? ऐसे विषयों से संबंधित डेटा का प्रामाणिक स्रोत क्या होना चाहिए? उन insights को कैसे प्रस्तुत करें? आइए जानते हैं आज के विडियो में। 

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महानायक लाल – बाल - पाल

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  • देश अपनी आजादी के 75वें वर्ष में आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो इस अवसर पर हम आपके लिए लेकर आ रहे हैं आज़ादी के नायकों से जुड़ी खास सीरीज़ 'महानायक'। जहां आपको आज़ादी के सभी नायकों के बारे में, उनके आंदोलनों, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान व उनके जीवन से जुड़ी हुई सभी जानकारियां मिलेंगी। और ये जानकारियां और भी महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाती है क्योंकि हर साल इसमें से प्री व मेन्स की परीक्षाओं में लगातार सवाल पूछे जाते हैं।
  • तो चलिए शुरू करते है आज का टॉपिक, जिसके महानायक है लाल बाल पाल। ये एक व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि तीन महान व्यक्तियों को सम्मिलित रूप से एक ही उपनाम दिया गया है। लाल बाल पाल में लाल शब्द "लाला लाजपत राय", बाल शब्द "बाल गंगाधर तिलक" और पाल शब्द "विपिन चन्द्र पाल" के लिए प्रयोग किया गया है, तथा इन तीनों को सम्मिलित रूप से "लाल बाल पाल" के नाम से जाना जाता है।
  • इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को यह नाम इसलिए मिला है, क्योंकि यह तीनों एक जैसी राजनीतिक सोच रखते थे तथा भारत में बाहर से आयात होने वाली वस्तुओं का विरोध करते थे व स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग को बढ़ावा देते थे। वर्ष 1905 में जब बंगाल के विभाजन की घोषणा हुई तो इसके विरोध में बंग-भंग आंदोलन को पूरे भारत में फैलाने में लाल बाल पाल की मुख्य भूमिका रही। लाल बाल पाल अंग्रेजो के खिलाफ उग्र आंदोलन किए जाने के पक्षधर थे। आइए इन तीन महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर एक नज़र डाले।

लाला लाजपत राय-

  • लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को दुधिके गॉव में हुआ था, जो वर्तमान में पंजाब के मोगा जिले में स्थित है। वह मुंशी राधा किशन आज़ाद और गुलाब देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके पिता बनिया जाति के अग्रवाल थे। बचपन से ही उनकी माँ ने उनको उच्च नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी थी। वर्ष 1885 में उन्होंने सरकारी कॉलेज से द्वितीय श्रेणी में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और हिसार में अपनी वकालत शुरू कर दी।
  • लाला लाजपत राय ने वर्ष 1889 में वकालत की पढाई के लिए लाहौर के सरकारी विद्यालय में दाखिला लिया। कॉलेज के दौरान वह लाला हंसराज और पंडित गुरुदत्त जैसे देशभक्तों और भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। तीनों अच्छे दोस्त बन गए और स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज में शामिल हो गए। वकालत के अलावा लालाजी ने दयानन्द कॉलेज के लिए धन एकत्र किया, आर्य समाज के कार्यों और कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लिया। वह हिसार नगर पालिका के सदस्य और सचिव चुने गए।


  • लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे। वह लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का हिस्सा थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल इस तिकड़ी के दूसरे दो सदस्य थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरम दल, जिसका नेतृत्व पहले गोपाल कृष्ण गोखले ने किया था उसका विरोध करने के लाला जी ने गरम दल का गठन किया। लालाजी ने बंगाल के विभाजन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में भी हिस्सा लिया। 
  • उन्होंने सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष के साथ मिलकर स्वदेशी के सशक्त अभियान के लिए बंगाल और देश के दूसरे हिस्से में लोगों को एकजुट किया। लाला लाजपत राय को 3 मई 1907 को रावलपिंडी में अशांति पैदा करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और मांडले जेल में छः महीने रखने के बाद 11 नवम्बर 1907 को उन्हें रिहा कर दिया गया।

         

  • स्वतंत्रता संग्राम ने एक क्रन्तिकारी मोड़ ले लिया था इसलिए लालाजी चाहते थे की भारत की वास्तविक परिस्थिति का प्रचार दूसरे देशों में भी किया जाये। इसी उद्देश्य से 1914 में वे ब्रिटेन गए। उसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया, जिसके कारण वे भारत नहीं लौट पाये और फिर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। उन्होंने इंडियन होम लीग ऑफ़ अमेरिका की स्थापना की और “यंग इंडिया” नामक एक पुस्तक लिखी।
  •  पुस्तक के द्वारा उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को लेकर गंभीर आरोप लगाये, जिसके लिए इसे ब्रिटेन और भारत में प्रकाशित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया। 1920 में विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ही वह भारत लौट पाये। वापस लौटने के पश्चात लाला लाजपत राय ने जलियांवाला बाग नरसंहार के खिलाफ पंजाब में विरोध प्रदर्शन और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान वे कई बार गिरफ्तार भी हुए। वह चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने के गांधी जी के निर्णय से सहमत नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी की स्थापना की।
  • वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजने का फैसला किया। कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य न होने की वजह से सभी लोगों में निराशा और क्रोध व्याप्त था। 1929 में जब कमीशन भारत आया तो पूरे भारत में इसका विरोध किया गया।
  • लाला लाजपत राय ने खुद साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व किया। हांलाकि जुलूस शांतिपूर्ण निकाला गया पर ब्रिटिश सरकार ने बेरहमी से जुलूस पर लाठी चार्ज करवाया। लाला लाजपत राय को सिर पर गंभीर चोटें आयीं और जिसके कारण 17 नवंबर 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।


बाल गंगाधर तिलक-

  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रान्तिकारियों में से एक, बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। 

  • बाल गंगाधर तिलक अपने प्रसिद्ध नारे “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!” के लिए जाने जाते हैं। बाल गंगाधर तिलक को सम्मान से लोकमान्य या “लोगों के प्रिय” के रूप में संबोधित किया गया था। बाल गंगाधर तिलक ने स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, पुणे के एक निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और उसके बाद वे एक पत्रकार बने। बाल गंगाधर तिलक पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की आलोचना करने में मुखर थे।

  •  तिलक ने भारत के युवाओं को शिक्षित करने के लिए डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की। तिलक ने मराठी भाषा में मराठी दैनिक केसरी समाचार पत्र की शुरुआत की। बाल गंगाधर तिलक ने इस समाचार पत्र का उपयोग सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कारणों को प्रचारित करने के लिए किया। बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। तिलक अपने कट्टर हिंदू विचारों के लिए जाने जाते थे। वर्ष 1907 में, कांग्रेस पार्टी का दो गुटों में विभाजन हो गया।

         

  • ब्रिटिश अधिकारियों ने तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाकर, उन्हें 1908 से लेकर 1914 तक मांडले में कैद कर दिया था। तिलक 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में फिर से शामिल हुए और 1916-18 में ऑल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना करने में मदद की। तिलक जी महात्मा गांधी की अहिंसक विरोधी रणनीति के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय संस्कृति, इतिहास और हिंदू धर्म पर कई पुस्तकें जैसे दि ओरियन आर रिसर्च इन टू दि एन्टीक्यूटीस आफ वेदास (1893), दि आर्कटिक होम इन दि वेदास, गीतारहस्य और कई अन्य पुस्तकें लिखी हैं। 1 अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया।

बिपिन चंद्र पाल-

  • बिपिन चंद्र पाल एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, पत्रकार और एक प्रख्यात वक्ता थे, जो तीन प्रसिद्ध देशभक्तों में से एक थे। वे लाला लाजपत राय तथा बाल गंगाधर तिलक के साथ स्वदेशी आंदोलन में प्रमुख रूप से शामिल थे।
  • उन्होंने पश्चिम बंगाल के विभाजन का विरोध भी किया था। बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 में बांग्लादेश के सिलहट नामक गांव में हुआ था। वे शिक्षा ग्रहण करने के लिए कलकत्ता आए और वहां के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला कराया। परन्तु स्नातक की पढ़ाई पूरी होने से पहले उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। हालांकि, बिपिन चंद्र पाल की पढ़ने-लिखने में ज्यादा रूचि नहीं थी, फिर भी उन्होंने विभिन्न पुस्तकों का व्यापक रूप से अध्ययन किया।
  •  उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत स्कूल के एक मास्टर के रूप में की थी। बिपिन चंद्र पाल ने कलकत्ता पब्लिक पुस्तकालय में एक पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में भी काम किया था। वे केशव चंद्र सेन के साथ शिवनाथ शास्त्री, बी.के. गोस्वामी व एस.एन बनर्जी के संपर्क में भी रहे हैं। बिपिन चंद्र पाल को राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए, बिपिन चंद्र सेन के व्यक्तित्व ने बहुत अधिक आकर्षित किया।
  • जल्द ही वह तिलक, लाला, व अरबिंद के संपर्क आकर उनकी उग्रवादी देशभक्ति से भी प्रेरित हो गये। सन 1898 में वह तुलनात्मक धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए थे, परन्तु असहयोग आंदोलन के अन्य नेताओं के साथ अपने स्वदेशी विचार-विमर्श का प्रचार करने के लिए वापस आ गये। स्वयं एक पत्रकार होने के नाते बिपिन चंद्रपाल ने देशभक्ति भावनाओं और सामाजिक जागरूकता को फैलाने में अपने पेशे का भी इस्तेमाल किया। 
  • वह डैमोक्रैट, स्वतंत्र व कई अन्य पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के संपादक थे। उन्होंने बंगाल में रानी विक्टोरिया पर आधारित एक जीवन-कहानी को भी प्रकाशित किया। ‘स्वराज’ एवं वर्तमान की स्थिति में ‘द सोल ऑफ इंडिया’ उनके द्वारा लिखी गई दो प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। बिपिन चंद्रपाल कभी न हारने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सिद्धांतों का पूर्णताः पालन करते थे। उन्होंने हिंदुत्व की बुराइयों और बुरे व्यवहारों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित किया।
  • वे ब्राह्म समाज के सदस्य थे और पुरुषों एवं महिलाओं की समानता में विश्वास करते थे। उन्होंने विधवा महिला शिक्षा और उनके पुनर्विवाह को भी प्रोत्साहित किया। भारत के सबसे बड़े देशभक्त के रूप में इस महान क्रान्तिकारी का सन् 1932 में निधन हो गया।
  •  समय के साथ राजनीति में इन तीनों का कद ऊंचा होता जा रहा था लेकिन बाल गंगाधर तिलक के जेल जाने के कारण, विपिन चंद्र पाल के राजनीति से सन्यास लेने के कारण तथा लाला लाजपत राय की लाठीचार्ज में हत्या हो जाने के कारण इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों का उग्र आंदोलन कमजोर पड़कर समाप्त हो गया।


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देखते रहिए, 

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