अक्सर लोगों में इस बात की चिंता होती है कि अमुक परीक्षा सरल यानि कि आसन होता है या कठिन. और कुछ अभ्यर्थी इसीलिए भी किसी परीक्षा की तैयारी शुरू नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें उस परीक्षा की कठिनता से डर लगता है, चाहे उनमें उस परीक्षा को पास करने का पूरा दम ख़म क्यों ना हो. ऐसे ही कुछ सवाल आईएएस परीक्षा के बारे में भी पूछ जाता है कि यह परीक्षा कठिन है या आसान. और इसका उत्तर पाना इतना आसन नहीं है क्योंकि किसी भी परीक्षा की सरलता या कठिनता अभ्यर्थी के लगन, मेहनत, अनुशासन, दृढ़ता इत्यादि पर निर्भर करता है।
ऐसे में यदि मैं
आपसे पूछूं कि सिविल सर्विस की परीक्षा बड़ी होती है, या छोटी,
तो आपका ही नहीं, बल्कि लगभग-लगभग सभी का एक जैसा ही जवाब
होगा-‘‘बड़ी’’। हाँ,
यदि मैं इस जवाब
को सुनने के बाद फिर से यह प्रश्न करूं कि बड़ी क्यों?’ तो इसके उत्तर एक जैसे नहीं होंगे। कुछ तो
सोच में भी पड़ जायेंगे कि वे क्या कहें। आइये, इस स्थिति पर थोड़ा विचार करते हैं।
सामान्यतया, जब हम अधिकांशत प्रश्नों के उत्तर देते हैं, तो वे उत्तर हमारी अपनी धारणाओं से निकलकर
आते हैं। और मुश्किल यह है कि जिन्हें हम ‘‘मेरी धारणा’’, ‘‘मेरे विचार’ और यहाँ तक कि ‘मेरा अनुभव’ कहते
हैं,
वे मेरे होते ही
नहीं हैं। वे दूसरों के होते हैं। यानी कि समूह के होते हैं, समाज के होते हैं। मैं जीवन भर उन परम्परागत
धारणाओं को
‘अपनी धारणा’
मानने की गलतफहमी में जीता रहता हूँ, जिनमें ‘मैं’ होता ही नहीं है।
अब आप मेरी इस
बात को सिविल सर्विस परीक्षा के बारे में ऊपर पूछे गये प्रश्न पर लागू करके सोचिए।
आपको कुछ मजेदार तथ्य जानने को मिलेंगे। क्या ऐसा नहीं है कि चूंकि आप शुरू से यही
सुनते आये हैं कि ‘‘यह बहुत बड़ी परीक्षा है’’, इसलिए आप भी कहने लगे हैं कि ऐसा ही है। मैं यहाँ उस आम आदमी की बात नहीं कर
रहा हूँ,
जिसका इससे कुछ
लेना-देना नहीं है। बावजूद इसके उसके दिमाग में इसके बारे में बड़ी होने की बात
बैठी हुई है। मेरा संबंध आप जैसे उन युवाओं से है, जो इसके बारे में सोच रहे हैं, खुद जूझ रहे हैं और कुछ जूझने के बाद या तो पार पा गये हैं, या इस दौड़ से बाहर हो गये हैं।
यदि आप कहते हैं
कि यह एक बड़ी परीक्षा है,
तो क्या आप मुझे
इसके बड़े होने का कोई पैमाना बता पायेंगे; जैसे कि-
–
इससे मिलने वाली
नौकरी सबसे बड़ी होती है।
–
इसमें बड़ी
संख्या में प्रतियोगी बैठते हैं।
–
इसका पाठ्यक्रम
बड़ा है।
–
इसके पेपर कठिन
होते हैं।
–
इसमें सफल होना
मुश्किल होता है।
–
इसकी तैयारी में
बहुत लम्बा समय लगता है,
आदि-आदि।
दोस्तों, आपका उत्तर इनमें से चाहे कोई भी एक हो या
कई-कई अथवा सभी हों,
उत्तर पूरी तरह
सही नहीं है। यदि आप इन एक-एक कारणों पर थोड़ी भी गम्भीरता से विचार करेंगे, तो पायेंगे कि अन्य कई प्रतियोगी परीक्षाओं
के साथ भी स्थितियां कमोवेश ऐसी ही हैं, सिवाय उस पहले बिन्दु के कि ‘इससे मिलने वाली नौकरी सबसे बड़ी होती है। ऐसे कई युवा
थे,
जिनके लिए
मध्यप्रदेश में पटवारी के पद के लिए होने वाली परीक्षा बेहद तनावपूर्ण और सिरदर्द
बनी हुई थी। इसकी परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की संख्या तो इतनी ज्यादा थी कि
परीक्षा लेने का सिस्टम ही ढह गया और परीक्षा स्थगित करनी पड़ी। शायद अब आप
थोड़ा-थोड़ा समझ रहे होंगे कि दरअसल, हम कहना क्या चाह रहे हैं।
दरअसल बात ये है
कि ‘समाज के सच’ एवं ‘व्यक्ति के सच’ में बहुत फर्क होता है। कभी-कभी तो ये दोनों
एक-दूसरे के बिल्कुल विरोधी ही हो जाते हैं। इन दोनों को एक मानकर हम सत्य के
स्वरूप के साथ अनजाने ही एक अपवित्र समझौता कर लेते हैं। जैसे ही यह होता है, हमारे लिए चुनौती बढ़ जाती है, क्योंकि अब हम सत्य को देख ही नहीं पा रहे
हैं। इसे ही कहा जाता है ‘अंधेरे में तलवार भांजना’। आपको दुश्मन दिखाई नहीं दे
रहा है। लेकिन आप वार पर वार किये जा रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा करना
अनावश्यक श्रम करना होगा ?
जब हम इस बात का
जवाब दे रहे होते हैं कि अमुक सरल है या कठिन, छोटा है या बड़ा,
तो वस्तुतः इस
जवाब से स्वयं को खारिज कर देते हैं। और यही हमसे भयानक भूल हो जाती है। जबकि इस
प्रश्न का सही उत्तर ‘दो की तुलना’ में निहित है। इनमें से एक है, सिविल सर्विस की परीक्षा तथा दूसरा है ‘परीक्षा
देने वाला’ यानी कि आप। दुनिया के लिए यह बहुत कठिन परीक्षा हो सकती है। लेकिन
आपको देखना यह है कि यह आपके लिए क्या है-सरल या कठिन या इन दोनों के बीच की। ‘आप’
यानी कि आपकी क्षमता,
‘आप’ यानी कि
आपका हौसला। परीक्षा और आपके बीच के इस समानुपातिक संबंध को आपको समझना होगा। तभी
आप इस परीक्षा की तैयारी के साथ न्याय कर पायेंगे, और खुद के साथ भी।
अगर आप फिर भी
ये पूछेंगे कि यह परीक्षा कठिन या सरल है,
तो ये कहना मुश्किल होगा क्योंकि अगर में सरल कहूँगी तो आप तैयारी के प्रति बेहद ढीलाई बरतने लगते
हैं। और कठिन बताने पर शुरू करने से पहले ही हथियार डाल देने का खतरा दिखाई देने
लगता है। यदि अंतिम बात कहो, तो वह उनके पल्ले ही नहीं पड़ता। उसे वे बरगलाने वाला कथन मान लेते हैं। तो फिर
किया क्या जाये?
आइए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
संघ लोक सेवा
आयोग हर साल अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट निकालता है, जिसमें सिविल सेवा परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की विभिन्न पृष्ठभूमियों को
आँकड़ों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। इस रिपोर्ट में यह उल्लेख मिलता है कि
प्रतिवर्ष सफल होने वाले स्टूडेन्ट्स में लगभग 50 प्रतिशत स्टूडेन्ट्स वे होते हैं, जिनकी महाविद्यालयीन डिग्री द्वितीय श्रेणी की है। रिजल्ट के ऐसे परिदृश्य में
आप ही यह निष्कर्ष निकालें कि यह परीक्षा, जिसे सिविल सेवा परीक्षा के नाम से नहीं, ‘आई.ए.एस. की परीक्षा’ के नाम से जाना जाता है, सरल है या कठिन है।