Chhaha Swarnim Pristha


मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता, अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्‍ट करने का आग्रह रखनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने इस ग्रंथ में भारतीय इतिहास पर विहंगम दृष्‍टि डाली है। विद्वानों में सावरकर लिखित इतिहास जितना प्रामाणिक और निष्पक्ष माना गया है उतना अन्य लेखकों का नहीं।


प्रस्तुत ग्रंथ ‘छह स्वर्णिम पृष्‍ठ’ में हिंदू राष्‍ट्र के इतिहास का प्रथम स्वर्णिम पृष्‍ठ है यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्‍त की राजमुद्रा से अंकित पृष्‍ठ, यवनांतक सम्राट् पुष्यमित्र की राजमुद्रा से अंकित पृष्‍ठ भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्णिम पृष्‍ठ, सम्राट् विक्रमादित्य की राजमुद्रा से अंकित पृष्‍ठ इतिहास का तृतीय स्वर्णिम पृष्‍ठ है।


हूणांतक राजा यशोधर्मा के पराक्रम से उद्दीप्‍त पृष्‍ठ इतिहास का चतुर्थ स्वर्णिम पृष्‍ठ, मुसलिम शासकों के साथ निरंतर चलते संघर्ष और उसमें मराठों द्वारा मुसलिम सत्ता के अंत को हिंदू इतिहास का प स्वर्णिम पृष्‍ठ कह सकते हैं और अंतिम स्वर्णिम पृष्‍ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाड़कर स्वातंत्र्य प्राप्‍त करना। विश्‍वास है, क्रांतिवीर सावरकर के पूर्व ग्रंथों की भाँति इस ग्रंथ का भी भरपूर स्वागत होगा।


सुधी पाठक भारतीय इतिहास का सम्यक् रूप में अध्ययन कर इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं और घटनाओं से परिचित होंगे।.


Product Description :

About the Author

विनायक दामोदर सावरकर जन्म: 28 मई, 1883 को महाराष्‍ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में। शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्राप्‍त करने के बाद वर्ष 1905 में नासिक से बी.ए.। 9 जून, 1906 को इंग्लैंड के लिए रवाना। इंडिया हाउस, लंदन में रहते हुए अनेक लेख व कविताएँ लिखीं। 1907 में ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ ग्रंथ लिखना शुरू किया।

प्रथम भारतीय, नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई। प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से विपुल साहित्य का सृजन किया और ऐसी सहस्रों पंक्‍तियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियों द्वारा देशवासियों तक पहुँचाया।

प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें—मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही—दो-दो सरकारों ने जब्त कीं। वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे। अंडमान एवं रत्‍नागिरि की काल कोठरी में रहकर ‘कमला’, ‘गोमांतक’ एवं ‘विरहोच्छ्वास’ और ‘हिंदुत्व’, ‘हिंदू पदपादशाही’, ‘उ:श्राप’, ‘उत्तरक्रिया’, ‘संन्यस्त खड्ग’ आदि ग्रंथ लिखे। महाप्रयाण: 26 फरवरी, 1966 को।.