विद्वान् लेखक ने भारतीय समाजशास्त्र के एक ऐसे ग्रंथ की रचना की है, जो विगत 77 वर्षों से शासन द्वारा भारतीय बुद्धि को बाधित रखने के कारण निकृष्ट पदावलियों व मुहावरों से आक्रांत चित्त वाले पाठकों की भी समझ में आ सके। ऐसा दुष्कर कार्य वही विद्वान् कर सकता है, जो धर्मशास्त्रों का मर्मज्ञ तो हो ही, पाठकों की सीमाओं से भी भलीभाँति परिचित हो । मिश्रजी इस पुरुषार्थ के लिए साधुवाद के पात्र हैं। मनुष्य के संपूर्ण कल्याण में जिनकी रुचि हो, उनके लिए यह अवश्य पठनीय पुस्तक है।
धर्मशास्त्रों के परम ज्ञाता ऋषि-तुल्य आदरणीय पंकजजी ने संपूर्ण मानवता के उत्थान के लिए प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की है। बौद्धिक वर्ग से अनुरोध है कि वह इस दुर्लभ ग्रंथ का अध्ययन व मनन-चिंतन करे। इस श्रेष्ठ ग्रंथ के निर्माण के लिए मनीषी पंकजजी को साधुवाद।
प्रोडक्ट विवरण :
लेखक के बारे में
प्रो. रामेश्वर मिश्र 'पंकज'
दार्शनिक, समाजवैज्ञानिक एवं इतिहासकार; पूर्व निदेशक, गांधी विद्या संस्थान, वाराणसी; पूर्व परामर्शदाता, संस्कृति विभाग, भारत सरकार; पूर्व निदेशक, धर्मपाल शोधपीठ, भोपाल, पूर्व न्यासी सचिव, भारत भवन, भोपाल, पूर्व निदेशक, निराला सृजनपीठ, भोपाल, पूर्व निदेशक, वागर्थ, भारत भवन, भोपाल।
अनेक महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं का संपादन एवं 3,000 से अधिक लेखों का प्रकाशन ।
प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें हैं-
कभी भी पराधीन नहीं रहा है भारत, सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक गौमाता, भारत : हजार वर्षों की पराधीनता : एक औपनिवेशिक भ्रमजाल, भारत का संविधान और भारत का धर्म, विश्व सभ्यता : भारतीय दृष्टि भाग 1, समृद्धि अहिंसक भी हो सकती है, समृद्धि, संपत्ति और सुख, एकात्म दर्शन भाग 1 एवं भाग 2 इत्यादि ।
संप्रति : निदेशक, हिंदू विद्या केंद्र, राजसूय, परमधाम आश्रम, भोजपाल-462030 (भोपाल)