यूपीएससी में science का दबदबा
अभी हाल ही में यूपीएससी ने अपने 2021 – 22 की रिपोर्ट जारी की है जिसमे एक बहुत ही चौंकाने वला तथ्य सामने आया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2021 में सफल होने वाले छत्रों में सबसे अधिक संख्या मेडिकल साइन्स के students की है। अब तक यह माना जाता था कि यूपीएससी में सफल होने के लिए arts या मानविकी की पढ़ाई करना बेहतर होता है लेकिन इस रिपोर्ट ने इन सारे मिथकों को तोड़ कर रख दिया है। तो क्या है इन आंकड़ों का मतलब, आइए जानते हैं
इस ट्रेंड का सबसे पहला और प्रमुख कारण जो नजर आता है, वह सीएसएटी(सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूट टेस्ट) है। इसे यूपीएससी ने 2011 में लागू किया है। जिसकी वजह से साइन्स के विद्यार्थियों का इस तरफ रूझान बढ़ा है। 2011 में इसे लागू करने से पहले IAAS की परीक्षा कोठारी कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर करवाई जाती रही थी। इसके तहत जनरल स्टडी का पेपर 150 नंबर का और ऑप्शनल सब्जेक्ट का पेपर 300 नंबर का। वहीं इसमें बदलाव करके यूपीएससी ने आईएएस प्रीलिम्स की परीक्षा में CSAT का फॉर्मेट लागू किया। इसका लक्ष्य उम्मीदवार की लॉजिकल रीजनिंग, एनालिटिकल एबिलिटी (analytical ability), इंग्लिश लैंग्वेज का स्किल टेस्ट करना था।
यूपीएससी की इस परीक्षा में 2 ही कंपल्सरी पेपर है, CSAT प्रथम और CSAT द्वितीय, और दोनों में 200-200 अंक के प्रश्न पूछे जाते हैं। जो उम्मीदवार ह्युमैनिटी से आए हैं, उनकी शिकायत है कि सीएसएटी को इस परीक्षा में टेक्नोक्रेट्स की सिफारिश पर टेक्निकल बेकग्राउंड के छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए शामिल किया गया है। सीएसएटी का सारा ढांचा जीमेट, कैट, एक्सएटी और एमबीए एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर तैयार किया गया है। जिसके कारण ही जो स्टूडेंट साइन्स बैकग्राउंड से आए हैं उनके चयन का प्रतिशत एकदम से बढ़ गया है।
यह भी माना जाता रहा है कि ह्यूमैनिटी के विषय आईएएस की परीक्षा में उम्मीदवारों को अच्छे नंबर दिलवाते हैं। इसका फायदा भी इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के छात्रों को मिल रहा है। आईएएस की मुख्य परीक्षा के लिए अमूमन इंजीनियरिंग के विद्यार्थी भी ह्यूमैनिटी से ही विषय चुनते हैं। इससे उन्हें दो तरफा फायदा होता है, तकनीकी के विषय की गहरी समझ होने से ह्यूमैनिटी के विषयों को समझने में उन्हें आसानी तो होती ही है, साथ ही रीजनिंग और एप्टीट्यूड जैसे विषय भी वे आसानी से समझ पाते हैं।
इसके अलावा कंपटीशन science के छात्रों के रग-रग में बहता है। वे graduation में भी कॉम्पीटिटीव एक्जॉम देकर ही पहुंचते हैं। उन्हें इस तरह की परीक्षाओं का पूरा अनुभव होता है। इनमें से कई सारे एम्स और आईआईटी जैसे संस्थानों से निकले हुए होते हैं। अच्छे कॉलेजों में भी एंट्रेंस एग्जाम होता है, इसलिए ये छात्र कंपटीशन के लिए हर समय तैयार रहते हैं। वहीं दूसरी ओर ह्यूमैनिटीज में मेरिट के आधार पर प्रवेश हो जाता है। इन छात्रों को कॉम्पीटिटीव एक्जाम देने का कोई खास अनुभव नहीं होता है। इसलिए वे उनकी तकनीक भी नहीं पकड़ पाते हैं।
साथ हीं साइन्स के छात्रों का नजरिया एकदम पिन-पॉइंट और गोल बेस्ड होता है। इसलिए वे परीक्षा की तैयारी को भी वैज्ञानिक तरीके से करते हैं। साफ शब्दों में कहा जा सकता है कि वे सिलेबस और परीक्षा के पैटर्न को बेहतर तरीके से समझने में सफल होते हैं। साइन्स स्टूडेंट ज्यादा एक्यूरेट जवाब दे पाते हैं। दूसरी ओर ह्युमैनिटी के स्टूडेंट का दृष्टिकोण ज्यादा एनालेटिकल होता है। उनका सिलेबस और एग्जामिनेशन पैटर्न ज्यादा रेफरेंस सेंट्रिक होता है। इसलिए वे प्रतियोगी परीक्षा में पिछड़ जाते हैं। सफलता की तकनीक, परीक्षा का पैटर्न और पढ़ाई करने के तरीके वे यह एग्जाम देने से पहले ही अपने ग्रेजुएशन लेवल पर सीख चुके होते हैं।