क्यों चर्चा में हैं राजा राममोहन राय ?
क्या है राजा राम मोहन राय की प्रासंगिकता
- हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने राजा राम मोहन राय की 250वीं जयंती पर उनकी स्मृति में वर्ष भर चलने वाले उत्सव के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया।
- यह उद्घाटन समारोह कोलकाता में ‘राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन’, साल्ट लेक और साइंस सिटी ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।
- यह एक वर्षीय उत्सव है जो अगले वर्ष (22 मई, 2023) तक मनाया जाएगा।
- इस वर्ष राजा राम मोहन राय की 250वीं जयंती और ‘राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन’ का 50वाँ स्थापना दिवस भी है।
- संस्कृति मंत्रालय ने राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन में राजा राम मोहन राय की एक प्रतिष्ठित प्रतिमा का भी अनावरण किया है।
कौन थे राजा राम मोहन राय ?
- राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के जनक और एक अथक समाज सुधारक थे जिन्होंने भारत में ज्ञानोदय एवं उदार सुधारवादी आधुनिकीकरण के युग की शुरुआत की।
- राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों की रचनाओं तथा प्लेटो एवं अरस्तू की पुस्तकों के अरबी संस्करण का अध्ययन किया। बनारस में उन्होंने संस्कृत भाषा, वेद और उपनिषद का भी अध्ययन किया।
- वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
- वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
- नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
- राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
- अपने संबोधन में 'टैगोर ने राम मोहन राय को' भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
क्या थी राजा राम मोहन राय की विचारधारा ?
- राम मोहन राय पश्चिमी आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित थे और बुद्धिवाद तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देते थे।
- राम मोहन राय की तात्कालिक समस्या उनके मूल निवास बंगाल के धार्मिक और सामाजिक पतन की थी।
- उनका मानना था कि धार्मिक रूढ़िवादिता सामाजिक जीवन को क्षति पहुँचाती है और समाज की स्थिति में सुधार करने के बजाय लोगों को और परेशान करती है।
- राजा राम मोहन राय का मानना था कि सामाजिक और राजनीतिक आधुनिकीकरण धार्मिक सुधार की परिधि में ही शामिल हैं।
- राम मोहन राय का मानना था कि प्रत्येक पापी को अपने पापों के लिये प्रायश्चित करना चाहिये और यह प्रायश्चित आत्म-शुद्धि तथा पश्चाताप के माध्यम से किया जाना चाहिये, न कि आडंबर व अनुष्ठानों के माध्यम से।
- वह सभी मनुष्यों की सामाजिक समानता में विश्वास करते थे और इस तरह से जाति व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे।
- राम मोहन राय इस्लामिक एकेश्वरवाद के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने कहा कि एकेश्वरवाद भी वेदांत का मूल संदेश है।
- एकेश्वरवाद को वे हिंदू धर्म के बहुदेववाद और ईसाई धर्मवाद के प्रति एक सुधारात्मक कदम मानते थे। उनका मानना था कि एकेश्वरवाद ने मानवता के लिये एक सार्वभौमिक मॉडल का समर्थन किया है।
- राजा राम मोहन राय का मानना था कि जब तक महिलाओं को अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अमानवीय रूपों से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक हिंदू समाज प्रगति नहीं कर सकता।
- उन्होंने सती प्रथा को हर मानवीय और सामाजिक भावना के उल्लंघन के रूप में तथा एक जाति के नैतिक पतन के लक्षण के रूप में चित्रित किया।
राजा राम मोहन राय का योगदान
राजा राम मोहन राय के धार्मिक सुधार-
- राजा राम मोहन राय का पहला प्रकाशन तुहफ़ात-उल-मुवाहिदीन (देवताओं को एक उपहार) वर्ष 1803 में सामने आया था जिसमें हिंदुओं के तर्कहीन धार्मिक विश्वासों और भ्रष्ट प्रथाओं को उजागर किया गया था।
- वर्ष 1814 में उन्होंने मूर्ति पूजा, जातिगत कठोरता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध करने के लिये कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की।
- उन्होंने ईसाई धर्म के कर्मकांड की आलोचना की और ईसा मसीह को ईश्वर के अवतार के रूप में खारिज कर दिया। प्रिसेप्टस ऑफ जीसस (1820) में उन्होंने न्यू टेस्टामेंट के नैतिक और दार्शनिक संदेश को अलग करने की कोशिश की जो कि चमत्कारिक कहानियों के माध्यम से दिये गए थे।
राजा राम मोहन राय के समाजिक सुधार-
- राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
- उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
- उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
- वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार तथा कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
- उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत व संपत्ति के अधिकार की मांग की।
राजा राम मोहन राय के शैक्षिक सुधार –
- राम मोहन राय ने देशवासियों के मध्य आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने के लिये बहुत प्रयास किये। उन्होंने वर्ष 1817 में हिंदू कॉलेज खोजने के लिये डेविड हेयर के प्रयासों का समर्थन किया, जबकि राय के अंग्रेज़ी स्कूल में मैकेनिक्स और वोल्टेयर के दर्शन को पढ़ाया जाता था।
- वर्ष 1825 में उन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की जहाँ भारतीय शिक्षण और पश्चिमी सामाजिक एवं भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमों को पढ़ाया जाता था।
राजा राम मोहन राय के आर्थिक और राजनीतिक सुधार-
- राम मोहन राय ब्रिटिश प्रणाली की संवैधानिक सरकार द्वारा लोगों को दी गई नागरिक स्वतंत्रता से अत्यंत प्रभावित थे और उसकी प्रशंसा करते थे। वह सरकार की उस प्रणाली का लाभ भारतीय लोगों तक पहुँचाना चाहते थे।
- लेखन और अन्य गतिविधियों के माध्यम से उन्होंने भारत में स्वतंत्र प्रेस के लिये आंदोलन का समर्थन किया।
- जब वर्ष 1819 में लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा प्रेस सेंसरशिप में ढील दी गई तो राम मोहन राय ने तीन पत्रिकाओं- ब्राह्मणवादी पत्रिका (वर्ष 1821); बंगाली साप्ताहिक- संवाद कौमुदी (वर्ष 1821) और फारसी साप्ताहिक- मिरात-उल-अकबर का प्रकाशन किया।
- राम मोहन राय ने बंगाली ज़मींदारों की दमनकारी प्रथाओं की निंदा की और न्यूनतम लगान तय करने की मांग की। उन्होंने कर-मुक्त भूमि व करों के उन्मूलन की भी मांग की।
- उन्होंने विदेशों में भारतीय सामानों पर निर्यात शुल्क में कमी और ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को समाप्त करने का आह्वान किया।
- प्रशासनिक सुधार: उन्होंने बेहतर सेवाओं के भारतीयकरण और न्यायपालिका से कार्यपालिका को अलग करने की मांग की। उन्होंने भारतीयों एवं यूरोपीय लोगों के बीच समानता की मांग की।
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